नयी दिल्ली, 28 नवंबर (भाषा) राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने बृहस्पतिवार को कहा कि संसदीय अवरोध कोई समाधान नहीं है बल्कि यह एक रोग है जो देश की नींव को कमजोर करता है और संसद को अप्रासंगिकता की ओर ले जाता है।
धनखड़ ने यह टिप्पणी उस वक्त की जब एक बार के स्थगन के बाद दोपहर 12 बजे राज्यसभा की कार्यवाही दोबारा आरंभ हुई। कांग्रेस और अन्य विपक्षी सदस्य अदाणी समूह के खिलाफ आरोपों के मुद्दे पर नियम 267 के तहत चर्चा कराने की मांग कर रहे थे।
सदस्यों से अनुशासन और शिष्टाचार बनाए रखने की अपील करते हुए धनखड़ ने कहा कि कल ही संविधान अपनाये जाने के 75 वर्ष पूरे हुए हैं।
उन्होंने कहा कि यह उच्च सदन के लिए एक ऐसा क्षण था, ‘‘जब हमें राष्ट्रवाद की भावना से प्रेरित होकर 140 करोड़ लोगों को एक शक्तिशाली संदेश देना था। उनकी आकांक्षाओं और सपनों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता की फिर से पुष्टि करना था और विकसित भारत की ओर हमारी यात्रा को आगे बढ़ाना था।’’
उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन यह कहते हुए मुझे गहरा दुख हो रहा है कि हम इस ऐतिहासिक अवसर को चूक गए। जहां सदन में रचनात्मक संवाद और सार्थक बातचीत होनी चाहिए थी, वहां हम अपने नागरिकों की अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतर सके।’’
सभापति ने कहा कि यह सदन केवल बहस का मंच नहीं है बल्कि यहां से राष्ट्रीय भावना गूंजनी चाहिए।
उन्होंने कहा, ‘‘संसदीय अवरोध कोई समाधान नहीं है, यह एक रोग है। यह हमारी नींव को कमजोर करता है। यह संसद को अप्रासंगिकता की ओर ले जाता है। हमें अपनी प्रासंगिकता बनाए रखनी होगी। जब हम इस तरह के आचरण में संलग्न होते हैं तो हम संवैधानिक व्यवस्था से भटक जाते हैं। हम अपनी जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ लेते हैं।’’
उन्होंने कहा, ‘‘यदि संसद लोगों की आशाओं और आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करने के अपने संवैधानिक कर्तव्य से भटकती है तो हमें राष्ट्रवाद को पोषित करना और लोकतंत्र को आगे बढ़ाना चाहिए।’’
सभापति ने सदस्यों से सार्थक संवाद की भावना को अपनाने का आग्रह भी किया।
हालांकि, इसके बावजूद जब हंगामा जारी रहा तो धनखड़ ने सदन की कार्यवाही दिन भर के लिए स्थगित कर दी।