बैकुंठ चतुर्दशी पर सृष्टि का भार विष्णु जी को सौंपने होता है अद्भुत हरि-हर मिलन

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बैकुंठ चतुर्दशी पर महाकाल की नगरी उज्जयिनी अनूठे धार्मिक आयोजन का साक्षी बनेगी। भगवान महाकाल लाव लश्कर के साथ शहर के मध्य स्थित श्री द्वारकाधीश गोपाल जी के पास जाएंगे और श्री हरि को संसार के संचालन की व्यवस्था पुन: सौपेंगे। वैदिक मान्यता है कि जब भगवान श्री हरि जब आषाढ़ शुक्ला एकादशी को योग निद्रा में प्रवेश करते है तब संसार के संचालन की व्यवस्था भगवान भोलेनाथ को सौंप देते हैं। चातुर्मास के बाद जब श्री हरि कार्तिक शुक्ला एकादशी को योग निद्रा का त्याग करते है तब महादेव चतुर्दशी को पुन: भगवान विष्णु को सृष्टि का भार सौंप देते हैं। उज्जैन में हरि-हर मिलन की यह परंपरा करीब 100 वर्ष से ज्यादा पुरानी है। इस वर्ष महाकाल मंदिर से 14 नवंबर की रात 11 बजे भगवान महाकाल की सवारी निकलेगी। करीब दो किलोमीटर लंबा सवारी मार्ग तय कर सवारी द्वारकाधीश गोपाल मंदिर पहुचेंगी, देर रात श्रद्धालुओं का सैलाब इस आयोजन में शामिल होने के लिए उमड़ता हैं। सवारी मार्ग पर भक्त हरि हर मिलन की खुशी में जमकर आतिशबाजी करते है।
 
*सृष्टि का भार सौंपने की पौराणिक कथा*
 
राजा बलि ने जब स्वर्ग पर कब्जा कर इंद्रदेव को बेदखल कर दिया था। तब इंद्रदेव ने भगवान व‌िष्‍णु से सहायता मांगी थी। तभी वामन अवतार लेकर व‌िष्‍णु राजा बल‌ि के यहां दान मांगने पहुंचे और उन्होंने तीन पग भूमि दान में मांगी। दो पग में भगवान ने धरती और आकाश नाप ल‌िया। तीसरे पग के लिए राजा बल‌ि ने अपना सिर आगे कर दिया। भगवान विष्णु ने तीनों लोकों को मुक्त करके देवराज इंद्र का भय दूर क‌िया। तब विष्णु ने प्रसन्न होकर राजा बल‌ि से वर मांगने के लिए कहा। 
बल‌ि ने भगवान विष्णु से कहा- आप मेरे साथ पाताल चल कर न‌िवास करें। भगवान व‌िष्‍णु बलि के साथ चले गए। इधर, देवी-देवता और विष्णु की पत्नी लक्ष्मी च‌िंत‌ित हो उठीं। वे राजा बलि के पास पहुंचीं और उन्हें राखी बांधी। इसके उपहार स्वरूप भगवान विष्णु को मुक्त करने का वचन मांग ल‌िया। यही कारण है कि इन चार महीनों में भगवान व‌िष्‍णु योगन‌िद्रा में रहते हैं। वामन रूप में भगवान का अंश पाताल लोक में होता है।
 
इसलिए देवशयनी एकादशी पर भगवान श‌िव को त्र‌िलोक की सत्ता सौंपकर भगवान व‌िष्‍णु राजा बलि के पास चले जाते हैं। इस दौरान भगवान श‌िव  पालनकर्ता का काम  देखते हैं। और फिर देव प्रबोधिनी एकादशी पर चातुर्मास का समापन होता है और भगवान विष्णु पुन: बैकुंठ पधारते हैं। इसके तीन दिन बाद भगवान शिव बैकुंठ चतुर्दशी पर भगवान श्री हरि विष्णु को पुन: सृष्टि का भार सौंपने गोलोक जाते हैं। हर के हरि से मिलने जाने के इसी धर्म प्रसंग को हरि- हर मिलन कहा जाता है।
 
*शिव महापुराण व विष्णु पुराण में उल्लेख*
 
श्री शिव महापुराण व विष्णु पुराण के अनुसार, कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी व चतुर्दशी के संधि काल में हरि-हर मिलन की मान्यता है, इसलिए मध्य रात्रि में हरिहर मिलन होता हैं। यह प्रभाव मुख्यतः उज्जैन में ज्यादा दिखाई देता है। हालांकि संपूर्ण पृथ्वी पर हरि-हर मिलन की यह मध्य रात्रि सभी पुराणों में आंशिक रूप से विद्यमान है, लेकिन उज्जैन में इसका प्रभाव इसलिए विशेष हो जाता है, क्योंकि यहां पर ज्योतिर्लिंग और भगवान नारायण के प्रकट स्थलों के रूप में सप्त सागर व नौ नारायण विद्यमान हैं। इस दृष्टि से यहां की मान्यता विशेष है।
 
*100 साल से अधिक पुरानी परंपरा*
 
सिंधिया देव स्थान ट्रस्ट के श्री द्वारकाधीश गोपाल मंदिर में हरि-हर मिलन की यह परंपरा सौ साल से भी ज्यादा पुरानी है। सिंधिया स्टेट के समय से ही इसका निर्वहन किया जा रहा है। इसमें गोपाल मंदिर के पुजारी द्वारकाधीश गोपालजी की ओर से भगवान महाकाल को तुलसी की माला पहनाते हैं और महाकाल की ओर से गोपालजी को भेंट स्वरूप वस्त्र, फल, मिष्ठान, सूखे मेवे आदि प्रदान किए जाते हैं। महाकाल की ओर से गोपाल जी को बिल्व पत्र की माला अर्पित की जाती है। पूजा अर्चना के उपरांत महाआरती होती है और फिर रात करीब 2 बजे गोपाल मंदिर से अवंतिकानाथ की सवारी पुन: महाकाल मंदिर के लिए रवाना हो जाती हैं।
 
*भस्म आरती में आते हैं गोपालजी*
 
गोपाल मंदिर में हरि-हर मिलन के बाद, तड़के चार बजे भस्म आरती में भी हरि-हर मिलन होता है। भस्म आरती में पुजारी मंदिर परिसर स्थित श्री साक्षी गोपाल मंदिर से गोपालजी को झांझ और डमरू के साथ महाकालेश्वर मंदिर के गर्भगृह में लेकर आते हैं और हरि-हर मिलन कराया जाता है। बताया जाता है गोपाल मंदिर में हरि-हर मिलन की परंपरा से भी पुरानी साक्षी गोपाल की परंपरा है।
 
*यह रहता है सवारी मार्ग*
 
महाकाल मंदिर से शुरू होकर सवारी कोट मोहल्ला, गुदरी चौराहा, पटनी बाजार होते हुए रात करीब 12 बजे गोपाल मंदिर पहुंचती है। यहां पुजारी भगवान महाकाल व गोपालजी को सम्मुख बैठाकर पूजा-अर्चना करते हैं। अनादिकाल से चली आ रही इस परंपरा का निर्वहन उज्जैन में आज भी होता है। हरि हर मिलन की घड़ी का यहां नजारा वाकई देखने लायक होता है।
 

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