माँ गंगा : संस्कृति और संस्कार

0

पूरे विश्व की भौगोलिक पृष्ठभूमि को देखा और समझा जाए तो हर एक देश में खेतों की सिंचाई और पीने के पानी के लिए नदियों का बहुत बड़ा महत्व है। नदियां किसी भी देश की जीवन दायिनी शक्तियां हैं। जहां नदियां नहीं है वहां पीने के पानी का पवित्र जल स्रोत है। लोग उन स्रोतों को पवित्र मानते हैं और उसकी स्वच्छता तथा रख-रखाव का ध्यान रखते हैं। कोई भी बड़ी नदी छोटे-छोटे पहाड़ी झरनों, नालों आदि से मिलकर अपना विराट स्वरूप बना लेती है तथा जन जीवन को खुशहाल बनाती है। विचार करें तो नदी का स्वरूप हम सभी के लिए एक सुंदर संदेश भी है। हमें सभी छोटे-बड़े, ऊंचे-नीचे आदि अच्छे स्वभाव के लोगों को इकट्ठा करके चलना चाहिए। जिससे समाज के लिए अच्छा कार्य हो सके। इसी से जीवन में विशालता और समृद्धि आती है।

भारतवर्ष की बात करें तो हमारे देश में बहुत सारी पवित्र नदियाँ हैं। यह नदियां शहरों या बड़े महानगरों के किनारे से होकर गुजरती हैं। वास्तव में सत्य यह है कि यह नगर और महानगर बसे ही इन नदियों के किनारे हैं। किसी भी जीव की बड़ी आवश्यकताओं में पानी सबसे बड़ी आवश्यकता है। भारतवर्ष की सनातनी संस्कृति में नदियों को पूजा जाता है। इन नदियों को माता के स्वरूप में देखा-समझा-जाना गया है। अविरल कल-कल बहती यह पवित्र नदियां जन-जन से सीधे जुड़ी हुई हैं। इन नदियों के किनारे पूज्य संत-महात्माओं के आश्रम हैं तथा आज भी इन्हीं नदियों के किनारे यहाँ संत-महात्मा अपनी भक्ति-तप-साधना करते रहते हैं। ऋषिकेश में परम पूज्य चिदानंद मुनि जी माँ गंगा के किनारे संध्या आरती के समय अपने सुविचार जन के सामने रखते हैं। जन साधारण का जीवन सरल सरस बने, इसका सुंदर संदेश भी मुनि जी देते हैं। अपना आशीर्वाद लोगों को देते हैं। वास्तव में हमारी पवित्र नदियां ध्यान का बहुत बड़ा केंद्र भी हैं। इन पवित्र नदियों के किनारे ही कुंभ-महाकुंभ लगने के साथ-साथ मेले भी लगते हैं। यहीं से जन के अंदर संस्कृति और संस्कार का प्रचार-प्रसार किया जाता है। हमारी पवित्र कथाएँ, वेद-शास्त्र-पुराण आदि ग्रंथ इन पवित्र नदियों के किनारे ही बैठकर लिखे गये हैं। इसके कितने ही उदाहरण दिए जा सकते हैं।

मां गंगा भारत की जीवन दायिनी और पवित्र नदियों में सबसे लंबी नदी है। मां गंगा के जल की पवित्रता और शुद्धता को विदेशी भूमि के कितने ही वैज्ञानिकों ने जांचा तथा परखा है। सभी इसकी पवित्रता-शुद्धता को प्रणाम करते हैं। मां गंगा की पवित्रता और शुद्धता भारतीय जनमानस के अंदर रची-बसी हुई है। मां गंगा के पवित्र जल में स्नान करने से मुक्ति मिल जाती है। मां गंगा के जल का रोजाना आचमन करने से मन-मस्तिष्क के कुविचार समाप्त हो जाते हैं। मां गंगा का स्पर्श ही मानव को  इहलोग और परलोक का ज्ञान करा देता है। मां गंगा की गोद में जो भी जाने-अनजाने पहुंचता है, मां गंगा उसका बेड़ा पार कर देती है।

मां गंगा की पवित्रता-शक्ति-भक्ति हर क्षण, हर पल देखी-समझी-जानी जा सकती है। सावन मास में गोमुख और हरिद्वार का नजारा कुछ और ही होता है। भक्तों का इतनी भारी संख्या में वहां पर पहुंचना अपने आप में एक चमत्कार है। इसमें बड़े, छोटे, जवान, बच्चे, स्त्री-पुरुष आदि सभी मां गंगा का पवित्र जल अपने हिसाब से अलग-अलग पत्रों में भरते हैं। कोई दौड़ लगाते हुए, कोई पैदल चलते हुए, कोई लेटकर, इस पवित्र जल को अपने ग्राम देवता, तीर्थ स्थल आदि स्थानों पर लेकर जाते हैं और शिव को अर्पित करते हैं। एक कठिन व्रत का पालन करते हुए यह श्रद्धालु अपनी भक्तिमय यात्रा को पूर्ण करते हैं। मां गंगा के जल की पवित्रता और गरिमा को बनाए रखने के लिए यह भक्त कठिन व्रत को धारण कर अपनी मनोकामना भी पूरी करते हैं। मां गंगा सभी का उद्धार करती है।

दूसरी दृष्टि से विचार करें तो यह श्रद्धालु भक्त समाज, देश और विश्व को जल संरक्षण तथा नदियों को बचाने का संदेश भी देते हैं। लेकिन कुछ लोगों ने इसे गलत रूप से प्रस्तुत भी कर डाला है। सही मायनों में गलत हो रही चर्चा को ही सही करना हम लोगों की जरूरत है। दो-चार लोगों की गलत बात को बड़ी बात बनाकर दिखाना बहुत बुरी बात है। हमें सही तथ्य और बात को जानना चाहिए। इतनी बड़ी कांवड़ यात्रा में कितने ही लाख लोग आते हैं। भगवान शिव की और मां गंगा की कृपा से कहीं कोई अप्रिय घटना नहीं घटती है, यह बड़ी बात है। हमें ऐसी एकता की सफल यात्रा को हृदय से धन्यवाद करना चाहिए। जिस देश में मां गांगा के जल को शिव पर अर्पित करने वाले भक्तों की इतनी बड़ी शक्ति है, वहां जल के संरक्षण का संदेश बहुत तेजी से दिया और समझा जा सकता है।

पतित पावनी मां गंगा का कछार अथाह शांति का स्थल है। शिव की जटाओं से निकली मां गंगा लोक के शोक-तप-पाप आदि सभी को हर लेती है। सनातनी संस्कृति में मनुष्य शरीर की यात्रा पूरी होने पर उसकी अस्थियां मां गंगा में ही बहाई जाती है। हम मां के गर्भ से जन्म लेकर फिर वापस मां गंगा की गोद में चले जाते हैं। यह अद्भुत अलौकिक ज्ञान भारतवर्ष की भूमि पर ही दिखाई देता है। मां गंगा का ध्यान हमेशा अपने मन मस्तिष्क में बनाए रखो, सत्य का वास्तविक स्वरूप यही है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *