समुद्री जीवों, मानव व पर्यावरण को गंभीर नुकसान पहुंचा रहा माइक्रो प्लास्टिक!
Focus News 24 November 2024 0आज हम सभी प्लास्टिक के युग में सांस ले रहे हैं। प्लास्टिक ने न केवल हमारे पर्यावरण को नुक्सान पहुंचाया है बल्कि प्लास्टिक हमारे स्वास्थ्य को भी लगातार नुकसान पहुंचा रहा है। हाल ही में एक स्टडी में यह दावा किया गया है कि देश के हर नमक और चीनी के ब्रांड में माइक्रो प्लास्टिक के टुकड़े मिले हैं। यदि यह बात सही है तो वास्तव में यह स्वास्थ्य के लिहाज से अत्यंत चिंताजनक है। इस स्टडी के अनुसार यह दावा किया गया है कि एक किलो नमक में माइक्रो प्लास्टिक के 90 टुकड़े तथा एक किलो चीनी में माइक्रो प्लास्टिक के 68 टुकड़े मिले हैं।
अब यहां प्रश्न यह उठता है कि आखिर माइक्रो प्लास्टिक है क्या ? माइक्रो प्लास्टिक किसी भी प्रकार के प्लास्टिक के टुकड़े होते हैं जिनकी लंबाई 5 मिमी (0.20 इंच) से कम होती है। यूएस नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) और यूरोपीय केमिकल्स एजेंसी के अनुसार वे सौंदर्य प्रसाधन, कपड़े, खाद्य पैकेजिंग और औद्योगिक प्रक्रियाओं सहित विभिन्न स्रोतों से प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र में प्रवेश करके प्रदूषण का कारण बनते हैं। एक अन्य परिभाषा के अनुसार माइक्रोप्लास्टिक सिंथेटिक ठोस कण या पॉलिमर मैट्रिक्स हैं जो नियमित या अनियमित रूप के होते हैं जिनका आकार 1 माइक्रोन -5 मिमी होता है, प्राथमिक या द्वितीयक मूल के होते हैं, पानी में अघुलनशील होते हैं।
अब यही माइक्रो प्लास्टिक अप्रत्यक्ष रूप से हमारे भोजन में भी शामिल हो चुका है। पाठकों को जानकर यह हैरानी होगी कि कपड़े, सिगरेट, कॉस्मेटिक्स आदि में भी माइक्रो प्लास्टिक पाया जाता है।यूनाइटेड नेशन्स इंवायरमेंट प्रोग्राम (यूएनईपी) की एक रिपोर्ट बताती है कि इन चीजों के लगातार इस्तेमाल से पृथ्वी पर प्लास्टिक का ढेर बढ़ता जा रहा है क्योंकि इनमें माइक्रो प्लास्टिक पाया जाता है। दरअसल, हाल ही में सामने आई ‘माइक्रोप्लास्टिक्स इन सॉल्ट एंड शुगर’ नाम की इस स्टडी को टॉक्सिक्स लिंक नाम के पर्यावरण अनुसंधान संगठन ने तैयार किया है। जानकारी मिलती है कि इस संगठन ने टेबल सॉल्ट, रॉक सॉल्ट, समुद्री नमक और स्थानीय कच्चे नमक सहित 10 प्रकार के नमक और ऑनलाइन तथा स्थानीय बाजारों से खरीदी गई पांच प्रकार की चीनी का टेस्ट करने के बाद इस स्टडी को प्रस्तुत किया है। इस स्टडी में यह बात सामने आई है कि नमक और चीनी के सभी नमूनों में अलग अलग तरह के माइक्रो प्लास्टिक मिले हैं जो हमारे शरीर के लिए बहुत ही घातक हैं। स्टडी बताती है कि ये सभी माइक्रो प्लास्टिक फाइबर, पेलेट्स और फ्रैगमेंट्स के रूप में मिले हैं और इन माइक्रोप्लास्टिक्स का आकार 0.1 मिमी से 5 मिमी के बीच पाया गया है। अध्ययन में यह बताया गया है कि सबसे अधिक माइक्रोप्लास्टिक्स की मात्रा आयोडीन युक्त नमक में पाई गई, जो मल्टीकलर के पतले फाइबर और फिल्म्स के रूप में थे। हाल ही में जारी इस रिपोर्ट के अनुसार, नमक के नमूनों में प्रति किलोग्राम माइक्रोप्लास्टिक्स की मात्रा 6.71 से 89.15 टुकड़े तक पाई गई। आयोडीन वाले नमक में माइक्रोप्लास्टिक्स की सबसे अधिक मात्रा (89.15 टुकड़े प्रति किलोग्राम) और ऑर्गेनिक रॉक सॉल्ट में सबसे कम (6.70 टुकड़े प्रति किलोग्राम) पाई गई है।
नमक तो नमक, चीनी में भी माइक्रो प्लास्टिक के टुकड़े मिले हैं। चीनी के नमूनों में, माइक्रोप्लास्टिक्स की मात्रा 11.85 से 68.25 टुकड़े प्रति किलोग्राम तक पाई गई जिसमें सबसे अधिक मात्रा गैर-ऑर्गेनिक चीनी में पाई गई है। भारतीय चीनी व नमक दोनों ही का अपने दैनिक जीवन में भरपूर उपयोग करते हैं। इसका अर्थ यह है कि भारतीयों के शरीर में माइक्रो प्लास्टिक भी अधिक मात्रा में जा रहा है। एक अनुमान के अनुसार भारतीय एक दिन में औसतन करीब 11 ग्राम नमक और 10 चम्मच चीनी का सेवन करते हैं और यह विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यू एच ओ) की तय सीमा से काफी अधिक है। पहले भी अनेक रिसर्च में मानव अंगों जैसे फेफड़े, हृदय, यहां तक कि ब्रेस्ट मिल्क और अजन्मे बच्चों में भी माइक्रोप्लास्टिक्स के कण पाए गए हैं। कहना ग़लत नहीं होगा कि मनुष्य वायु, जल और खाद्य श्रृंखला के माध्यम से इन माइक्रो प्लास्टिक के संपर्क में आते हैं।
नमक व चीनी ही नहीं दुनिया भर में परीक्षण किये गये नल के पानी के 81% नमूनों में भी सूक्ष्म प्लास्टिक कण पाए गए हैं, जिनकी औसत मात्रा 5.45 कण प्रति लीटर थी और इनमे अधिकांश कण माइक्रोफाइबर थे। हम जो बोतलबंद पानी पीते हैं, वह तो और भी अधिक दूषित है। पाठकों को जानकारी देना चाहूंगा कि कुछ समय पहले दुनिया भर में 19 स्थानों से लिए गए 11 प्रमुख ब्रांडों के बोतलबंद पानी के नमूनों में से 93% में सूक्ष्म प्लास्टिक पाया गया था, जिसमें प्रति लीटर औसतन 10.4 प्लास्टिक कण थे । अध्ययन बताते हैं कि जब सूक्ष्म और नैनो प्लास्टिक मानव शरीर में प्रवेश करते हैं तो वे मानव स्वास्थ्य को गंभीर नुकसान पहुंचाते हैं। ये मानव की आंतों, यकृत, प्लीहा, श्वसन तंत्र, फेफड़ों, परिसंचरण तंत्र आदि को नुक्सान पहुंचाते हैं। हालांकि इस संबंध में अधिक शोध की आवश्यकता है कि माइक्रो- और नैनो- प्लास्टिक के शरीर में प्रवेश करने के बाद मनुष्यों पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
कहना ग़लत नहीं होगा कि प्लास्टिक हमारे पर्यावरण, समुद्री जीवों के साथ साथ मानव स्वास्थ्य को कहीं न कहीं किसी न किसी रूप में नुकसान पहुंचा रहा है। आज प्लास्टिक के छोटे पार्टिकल्स यानी माइक्रोप्लास्टिक को अनेक फैक्ट्रियां समुद्र में बहा देती हैं। फिर मछलियां या समुद्री जीव इसे निगल लेते हैं। इससे समुंद्री जीवों को कम भूख लगती है। इससे उनके व्यवहार और डीएनए में भी बदलाव दिखाई देने लगता है। कई जीवों को सांस की दिक्कत आती है और यदि कोई इंसान सी-फूड(समुद्री भोजन) खाता है तो ये माइक्रो प्लास्टिक उसके शरीर में भी आ जाते हैं। इससे शरीर में कई खतरनाक बदलाव देखने को मिलते हैं। वैज्ञानिकों ने चिंता जताई है कि माइक्रो-प्लास्टिक के संपर्क में आने से सूजन (कैंसर, हृदय रोग, सूजन आंत्र रोग, रुमेटी गठिया, और अधिक से जुड़ा हुआ),जीनोटॉक्सिसिटी (क्षति जो उत्परिवर्तन का कारण बनती है जो कैंसर का कारण बन सकती है), दीर्घकालिक बीमारियाँ (जैसे एथेरोस्क्लेरोसिस, कैंसर, मधुमेह, हृदय संबंधी बीमारियाँ) और स्वप्रतिरक्षी रोग हो सकते हैं। अंत में यही कहूंगा कि माइक्रो प्लास्टिक को बढ़ने से रोका जा सकता है। लेकिन इसके लिए इस दिशा में काम करना होगा। प्लास्टिक से होने वाले दुष्प्रभावों के प्रति जन-जागरूकता जरूरी है। तभी वास्तव में हम इंसान और जीवों के साथ ही हमारे पर्यावरण का भी संरक्षण कर सकते हैं।
अब यहां प्रश्न यह उठता है कि आखिर माइक्रो प्लास्टिक है क्या ? माइक्रो प्लास्टिक किसी भी प्रकार के प्लास्टिक के टुकड़े होते हैं जिनकी लंबाई 5 मिमी (0.20 इंच) से कम होती है। यूएस नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) और यूरोपीय केमिकल्स एजेंसी के अनुसार वे सौंदर्य प्रसाधन, कपड़े, खाद्य पैकेजिंग और औद्योगिक प्रक्रियाओं सहित विभिन्न स्रोतों से प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र में प्रवेश करके प्रदूषण का कारण बनते हैं। एक अन्य परिभाषा के अनुसार माइक्रोप्लास्टिक सिंथेटिक ठोस कण या पॉलिमर मैट्रिक्स हैं जो नियमित या अनियमित रूप के होते हैं जिनका आकार 1 माइक्रोन -5 मिमी होता है, प्राथमिक या द्वितीयक मूल के होते हैं, पानी में अघुलनशील होते हैं।
अब यही माइक्रो प्लास्टिक अप्रत्यक्ष रूप से हमारे भोजन में भी शामिल हो चुका है। पाठकों को जानकर यह हैरानी होगी कि कपड़े, सिगरेट, कॉस्मेटिक्स आदि में भी माइक्रो प्लास्टिक पाया जाता है।यूनाइटेड नेशन्स इंवायरमेंट प्रोग्राम (यूएनईपी) की एक रिपोर्ट बताती है कि इन चीजों के लगातार इस्तेमाल से पृथ्वी पर प्लास्टिक का ढेर बढ़ता जा रहा है क्योंकि इनमें माइक्रो प्लास्टिक पाया जाता है। दरअसल, हाल ही में सामने आई ‘माइक्रोप्लास्टिक्स इन सॉल्ट एंड शुगर’ नाम की इस स्टडी को टॉक्सिक्स लिंक नाम के पर्यावरण अनुसंधान संगठन ने तैयार किया है। जानकारी मिलती है कि इस संगठन ने टेबल सॉल्ट, रॉक सॉल्ट, समुद्री नमक और स्थानीय कच्चे नमक सहित 10 प्रकार के नमक और ऑनलाइन तथा स्थानीय बाजारों से खरीदी गई पांच प्रकार की चीनी का टेस्ट करने के बाद इस स्टडी को प्रस्तुत किया है। इस स्टडी में यह बात सामने आई है कि नमक और चीनी के सभी नमूनों में अलग अलग तरह के माइक्रो प्लास्टिक मिले हैं जो हमारे शरीर के लिए बहुत ही घातक हैं। स्टडी बताती है कि ये सभी माइक्रो प्लास्टिक फाइबर, पेलेट्स और फ्रैगमेंट्स के रूप में मिले हैं और इन माइक्रोप्लास्टिक्स का आकार 0.1 मिमी से 5 मिमी के बीच पाया गया है। अध्ययन में यह बताया गया है कि सबसे अधिक माइक्रोप्लास्टिक्स की मात्रा आयोडीन युक्त नमक में पाई गई, जो मल्टीकलर के पतले फाइबर और फिल्म्स के रूप में थे। हाल ही में जारी इस रिपोर्ट के अनुसार, नमक के नमूनों में प्रति किलोग्राम माइक्रोप्लास्टिक्स की मात्रा 6.71 से 89.15 टुकड़े तक पाई गई। आयोडीन वाले नमक में माइक्रोप्लास्टिक्स की सबसे अधिक मात्रा (89.15 टुकड़े प्रति किलोग्राम) और ऑर्गेनिक रॉक सॉल्ट में सबसे कम (6.70 टुकड़े प्रति किलोग्राम) पाई गई है।
नमक तो नमक, चीनी में भी माइक्रो प्लास्टिक के टुकड़े मिले हैं। चीनी के नमूनों में, माइक्रोप्लास्टिक्स की मात्रा 11.85 से 68.25 टुकड़े प्रति किलोग्राम तक पाई गई जिसमें सबसे अधिक मात्रा गैर-ऑर्गेनिक चीनी में पाई गई है। भारतीय चीनी व नमक दोनों ही का अपने दैनिक जीवन में भरपूर उपयोग करते हैं। इसका अर्थ यह है कि भारतीयों के शरीर में माइक्रो प्लास्टिक भी अधिक मात्रा में जा रहा है। एक अनुमान के अनुसार भारतीय एक दिन में औसतन करीब 11 ग्राम नमक और 10 चम्मच चीनी का सेवन करते हैं और यह विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यू एच ओ) की तय सीमा से काफी अधिक है। पहले भी अनेक रिसर्च में मानव अंगों जैसे फेफड़े, हृदय, यहां तक कि ब्रेस्ट मिल्क और अजन्मे बच्चों में भी माइक्रोप्लास्टिक्स के कण पाए गए हैं। कहना ग़लत नहीं होगा कि मनुष्य वायु, जल और खाद्य श्रृंखला के माध्यम से इन माइक्रो प्लास्टिक के संपर्क में आते हैं।
नमक व चीनी ही नहीं दुनिया भर में परीक्षण किये गये नल के पानी के 81% नमूनों में भी सूक्ष्म प्लास्टिक कण पाए गए हैं, जिनकी औसत मात्रा 5.45 कण प्रति लीटर थी और इनमे अधिकांश कण माइक्रोफाइबर थे। हम जो बोतलबंद पानी पीते हैं, वह तो और भी अधिक दूषित है। पाठकों को जानकारी देना चाहूंगा कि कुछ समय पहले दुनिया भर में 19 स्थानों से लिए गए 11 प्रमुख ब्रांडों के बोतलबंद पानी के नमूनों में से 93% में सूक्ष्म प्लास्टिक पाया गया था, जिसमें प्रति लीटर औसतन 10.4 प्लास्टिक कण थे । अध्ययन बताते हैं कि जब सूक्ष्म और नैनो प्लास्टिक मानव शरीर में प्रवेश करते हैं तो वे मानव स्वास्थ्य को गंभीर नुकसान पहुंचाते हैं। ये मानव की आंतों, यकृत, प्लीहा, श्वसन तंत्र, फेफड़ों, परिसंचरण तंत्र आदि को नुक्सान पहुंचाते हैं। हालांकि इस संबंध में अधिक शोध की आवश्यकता है कि माइक्रो- और नैनो- प्लास्टिक के शरीर में प्रवेश करने के बाद मनुष्यों पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
कहना ग़लत नहीं होगा कि प्लास्टिक हमारे पर्यावरण, समुद्री जीवों के साथ साथ मानव स्वास्थ्य को कहीं न कहीं किसी न किसी रूप में नुकसान पहुंचा रहा है। आज प्लास्टिक के छोटे पार्टिकल्स यानी माइक्रोप्लास्टिक को अनेक फैक्ट्रियां समुद्र में बहा देती हैं। फिर मछलियां या समुद्री जीव इसे निगल लेते हैं। इससे समुंद्री जीवों को कम भूख लगती है। इससे उनके व्यवहार और डीएनए में भी बदलाव दिखाई देने लगता है। कई जीवों को सांस की दिक्कत आती है और यदि कोई इंसान सी-फूड(समुद्री भोजन) खाता है तो ये माइक्रो प्लास्टिक उसके शरीर में भी आ जाते हैं। इससे शरीर में कई खतरनाक बदलाव देखने को मिलते हैं। वैज्ञानिकों ने चिंता जताई है कि माइक्रो-प्लास्टिक के संपर्क में आने से सूजन (कैंसर, हृदय रोग, सूजन आंत्र रोग, रुमेटी गठिया, और अधिक से जुड़ा हुआ),जीनोटॉक्सिसिटी (क्षति जो उत्परिवर्तन का कारण बनती है जो कैंसर का कारण बन सकती है), दीर्घकालिक बीमारियाँ (जैसे एथेरोस्क्लेरोसिस, कैंसर, मधुमेह, हृदय संबंधी बीमारियाँ) और स्वप्रतिरक्षी रोग हो सकते हैं। अंत में यही कहूंगा कि माइक्रो प्लास्टिक को बढ़ने से रोका जा सकता है। लेकिन इसके लिए इस दिशा में काम करना होगा। प्लास्टिक से होने वाले दुष्प्रभावों के प्रति जन-जागरूकता जरूरी है। तभी वास्तव में हम इंसान और जीवों के साथ ही हमारे पर्यावरण का भी संरक्षण कर सकते हैं।