बालदिवस पर विशेष: बच्चों को उड़ने दें उन्मुक्त गगन में

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  आज है 14 नवंबर यानि बाल दिवस ।  बच्चों के प्यारे चाचा कहे जाने वाले देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने अपना जन्मदिन बच्चों के नाम अर्पित किया था । प्राय आज के दिन उनके चित्र पर माल्यार्पण के साथ बाल मेलों आदि का आयोजन किया जाता है और बच्चों के बारे में बहुत बड़ी-बड़ी बातें की जाती हैं लेकिन कड़वा सच यह है कि बच्चों के बीच बच्चा बनकर उनके मन को जानने की कोशिश बहुत कम की जा रही है।

    हमें जानना चाहिए कि बच्चों की भी अपनी एक सोच व सपने होते हैं, अपने तरीके से कुछ करने का मन होता है पर प्रायः हम यह मान लेते हैं कि वें बच्चो को सही ग़लत का ज्ञान नहीं होता मगर बच्चों के बारे में शायद उनसे बेहतर कोई नहीं जानता । इस बाल दिवस पर अगर हम बच्चों की सोच, सपनों और कल्पनाओं व ज़रुरतों को समझ सकें, उन्हें उनके हिस्से का प्यार दे पाएं तो उनके लिए इससे बड़ा बाल दिवस का उपहार कोई और नहीं होगा ।

    आज भी देश में बच्चे को  न स्कूल  वह दे रहे हैं जो उन्हे चाहिए, न ही माता पिता के पास उनके लिए समय है । आज के परिवेश में माता पिता व अभिभावकों को सजग बनाने की ज़रुरत है । हालांकि घर पर बच्चे सबसे ज्यादा सुरक्षित होते हैं  पर आज के  माता – पिता दोनो ही काम करने के लिए बाहर रहने लगे हैं अतः घर भी अब बच्चों के लिए न प्रिय स्थान रह गया है और न ही सुरक्षित । रही बात स्कूल की तो आप उन्हे महंगे से महंगे स्कूल में तो भेज सकते हैं पर यह मान लेना कि इन स्कूलों से बच्चो सुसंस्कृत होकर निकलेंगे तो आप भ्रम में हैं । वहां उन्हे आज की परिस्थितियों से लड़ना व उच्च ग्रेड पाने की कला तो सिखाई जा रही है पर,उनका ‘ई क्यू’ यानी भावनात्मक संवेग बहुत ही कम  होता जा रहा है । इसका मतलब यह हुआ कि स्कूलों ने कमाई की मशीनें तो बना ली पर मानवता के प्रति दायित्व, दया, प्रेम, करुणा, ममता व सहायता करना व लेना तथा किसी से अहसान करवाना, विनम्र बनना जैसे मूलभूत गुण नहीं सिखाए जाते । आते हैं यदि बच्चों को सबसे कीमती तोहफा देना है तो इस बाल दिवस पर उन्हें संस्कार दीजिए।

अधिक से अधिक पाने की चाह, समाज में उच्च स्थान पाने की होड़ व हर समस्या का हल पैसे में ढूंढने की प्रवृत्ति भले ही भौतिक रूप  से हमें समृद्ध बना रही हो, घरों में सुविधाएं व सुख के साधन बढ़ गए हों, पर  इन सब का सबसे बुरा असर यदि किसी पर पड़ा है तो वें हैं बच्चे । बच्चो से उनका बचपन छिन गया है  बच्चो को यदि हम बेफिक्री से खेलने, उछलने-कूदने के दिन लौटा पाएं । आज के बच्चो के लिए सबसे यादगार गिफ्ट होगा ।

 महानगरों में किए गए एक सर्वे की रिपोर्ट बताती है कि अब 8 से दस साल के बच्चो को परियों,महापुरुषों भूतों या जादूगरों की कहानियां व किस्से आकर्षित नहीं करते । तो उनके लिए कुछ सार्थक लिखना साहित्यकारों की ओर से बच्चो को बाल दिवस  का बेहतरीन उपहार बन सकता है ।

 आज शारीरिक विकास के स्तर पर बच्चे कम उम्र में ही ऐसे  लक्ष्ण प्रदर्शित कर रहे हैं जो एक युवा में होते हैं । वें अपनी उम्र के बच्चों के साथ बाहर खेलने-कूदने की बजाय कोई कार्टून या एनीमेशन पिक्चर देखने को ज्यादा प्राथमिकता देते हैं ।बच्चो की पहली पसंद एक्शन व हिंसा पर आधारित रोबोटनुमा वेशभूषा पहने एलियंस व लेजरबीम्स वाले हथियारों से सुसज्जित पात्रों के सिरीयल हो गए हैं । अब यें बच्चे बाल- पत्रिकाएं पढ़ने की बजाय कम्प्यूटर गेम्स खेलना ज्यादा पसंद करते हैं । तो  बच्चों के लिएबनाए जाने वाले गेम्स को  बालमन व नैतिक मूल्यों के अनुरूप  ढालना भी एक शानदार उपहार होगा बच्चों के लिए ।

   आज के बच्चे समय से पहले जवान हो रहे हैं और समय से पहले शारीरिक रूप  से जवान दिखने वाले बच्चो के प्रति मां – बाप को ज्यादा जागरुक रहना होता है, क्योंकि ऐसे बच्चे दिखते भले ही बड़े हों पर मानसिक रूप  से वें अपरिपक्व ही होते हैं और असामाजिक तत्व इसी बात का फायदा उठाते हैं । विशेष रूप  से लड़कियों के मामले तो अब बहुतायत में देखने सुनने में आ रहे हैं अतः समय की मांग है कि हम भी उन्हे “अभी बच्ची ही तो है”  कह कर नजरअंदाज न करें अपितु उनकी जरुरतों का पूरा ख्याल रखें ।

     मां बाप के लिये जरुरी है कि वह बच्चो से मित्रवत् व्यवहार करें। उनकी उत्सुकताओं को शांत करें , बात – बात पर उन्हे डांट – फटकार कर चुप करने से आप का काम तो सरल हो सकता है पर बच्चा अपने गलत हाथों में भी पड सकता है तब आपके सामने सिवाय पछताने के कुछ भी नहीं बचेगा इसलिये बेहतर यही होगा हम अपने बच्चे को उचित समय पर ही संभाल लें, उसे बेझिझक वह सब बताएं जो उसकी जरुरत है  ।

   अच्छा होगा कि हम अपने बच्चो का ख्याल रखें, उन्हे सही दिशा दें, उनकी प्रशंसा करें,  प्रोत्साहित करें, उनमें क्रिएटिविटी पैदा करें उनके विचार सुनें, समझें और उन्हें कुछ नया करने की अनुमति दें और यदि लगे कि गलत दिशा में जा रहे हैं तो उन्हे समझाएं उन्हें आलोचना करने का नैसर्गिक अधिकार दें और भूलकर भी अपने विचार उन पर नहीं थोपें। वें पंछियों की तरह होते हैं उन्हें उड़ने का, अपना आकाश खुद चुनने एवं बनाने काअवसर दें बचपन को जीने व आनंद लेने की छूट दें ।