वायु प्रदूषण समूचे विश्व के लिए बड़ा खतरा बन गया है। वायु प्रदूषण के दुष्प्रभाव ने पेड़, पौधे, पानी, जीव-जंतु और इंसान किसी को नहीं छोड़ा है। हाल में आई एक शोध एक रिपोर्ट न केवल बच्चों के स्वास्थ्य के प्रति चिंता जताती है बल्कि इस बारे में सजग रहने की आवश्यकता भी प्रतिपादित करती है। इस शोध का निष्कर्ष है कि जो बच्चे बचपन में वायु प्रदूषण में अधिक रहते हैं, उन्हें युवावस्था में फेफड़ों की बीमारी घेर सकती है।
बचपन में बच्चों को ऐसे वातावरण की जरूरत होती है, जो उनके स्वास्थ्य के लिए पूरी तरह अनुकूल हो। प्रतिकूल हालात में न केवल बार-बार बच्चे बीमार पड़ते हैं बल्कि उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर पड़ती चली जाती है। अगर सांस लेने के लिए स्वच्छ हवा न मिले तो बड़े भी बीमार पड़ जाते हें, बच्चे तो स्वास्थ्य के मामले में अति संवेदनशील होते हैं। बच्चों के फेफड़े बचपन में विकासशील अवस्था में होते हैं और वायु प्रदूषण की वजह से उनकी वृद्धि और विकास में बाधा उत्पन्न हो सकती है।
विशेषज्ञों का कहना है कि बच्चों की प्रतिरक्षा प्रणाली भी पूरी तरह से विकसित नहीं होती जिससे वे प्रदूषण के असर से अधिक प्रभावित होते हैं। इसकी पुष्टि साउथ कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी (यूएससी) के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए एक शोध अध्ययन से हुई है। यह शोध अमेरिकन जर्नल ऑफ रेस्पिरेटरी एंड क्लिनिकल केयर मेडिसिन में प्रकाशित हुआ है। इस शोध का निष्कर्ष है कि बचपन में वायु प्रदूषण के संपर्क में आने के बाद वयस्क अवस्था में ब्रोंकाइटिस के लक्षणों जैसे पुरानी खांसी, कंजेशन अथवा कफ बनना देखा गया है। शोध का निष्कर्ष है कि हम बचपन में वायु प्रदूषण के संपर्क में आते हैं तो इसका हमारे रेस्पिरेटरी सिस्टम पर ज्यादा सूक्ष्म प्रभाव पड़ता है जो वयस्क होने पर भीं प्रभावित करता है।
शोध का निष्कर्ष है कि वायु प्रदूषण के प्रभावों के प्रति बच्चे खास तौर पर संवेदनशील होते हैं। बचपन में उनका रेस्पीरेटरी और इम्यून सिस्टम विकासशील अवस्था में होता है और वह बड़ों की बनिस्बत अपने शरीर के वजन की तुलना में अधिक सांस लेते हैं। बचपन में नाइट्रोजन डाइऑक्साइड और पार्टिकुलेट मैटर के संपर्क में आने से बच्चों पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। शोध के दौरान उन वयस्क लोगों में ब्रोंकाइटिस के लक्षणों का अधिक प्रभाव पाया गया, जिन्हें बचपन में अस्थमा हुआ था।
वायु प्रदूषण के कारण बच्चों के स्वास्थ्य पर खतरे के बारे में इस महीने में यह दूसरी रिपोर्ट है। इससे पहले बच्चों पर वायु प्रदूषण के दुष्प्रभावों के संबंध में यूनिसेफ और अमरीकी संस्था हेल्थ इफेक्ट्स इंस्टीट्यूट (एईआई) की स्टेट ऑफ द ग्लोबल एयर-2024 रिपोर्ट में वायु प्रदूषण के निरंतर बढ़ते खतरों के प्रति आगाह किया गया है। इस रिपोर्ट से खुलासा हुआ है कि भारत में 2021 में 5 साल से कम उम्र के करीब 1.6 लाख बच्चों को वायु प्रदूषण से संबंधित बीमारियों के कारण जान गंवानी पड़ी है। प्रदूषण के कारण बच्चों की मौतों का यह आंकड़ा बेहद चिंताजनक है।
प्रदूषण अब कोई छिपी हुई समस्या नहीं रहा है। हमारे आसपास विशाल कारखानों, छोटी-बड़ी फैक्ट्रियों, वाहनों, ईन्ट भट्टों आदि के कारण वायु प्रदूषण निरंतर बढ़ता जा रहा है। कोई गांव और शहर इससे अछूता नहीं रहा है। ज्यादातर लोग तो वायु प्रदूषण के खतरों से अनजान हैं लेकिन जो इस बारे में जानते हैं और इसके दुष्परिणामों को महसूस करते हैं, वे भी आम तौर पर इन्हें अनदेखा कर देते हैं। वायु प्रदूषण के दुष्प्रभावों को हम महसूस करते हैं लेकिन मासूम बच्चे तो समझ ही नहीं पाते कि आखिर हो क्या रहा है? ऐसे बच्चों की संख्या बढ़ती जा रही है, जो पहले बीमार होते हैं और फिर अल्पायु में ही मौत के मुंह में चले जाते हैं।
बच्चों को समय से पहले जन्म, कम वजन, अस्थमा और फेफड़ों की बीमारियां यह प्रदूषण संबंधी स्वास्थ्य प्रभावों के असर के कारण ही बढ़ रही हैं। स्टेट ऑफ द ग्लोबल एयर-2024 रिपोर्ट के अनुसार विश्व के 10 वायु प्रदूषित देशों में भारत तीसरे स्थान पर पहुंच गया है। देश के 83 शहरों की हवा वल्र्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन की एयर क्वालिटी गाइडलाइन के हिसाब से खराब है। विश्व में वर्ष 2021 में वायु प्रदूषण के कारण 80 लाख से ज्यादा लोगों को मौत का शिकार होना पड़ा है, इनमें भारत के 21 लाख लोगों की मौत शामिल है। इस रिपोर्ट से पता चलता है कि वायु प्रदूषण का सर्वाधिक असर बच्चों पर ही दिखाई दे रहा है। वायु प्रदूषण से जो बीमारियां होती हैं, उनके प्रति बच्चे बेहद संवेदनशील होते हैं। बच्चों को मां के गर्भ मेंं ही वायु प्रदूषण से होने वाला नुकसान झेलना पड़ सकता है और उन्हें इसका स्वास्थ्य पर प्रभाव जीवन भर झेलना पड़ सकता है। इससे बच्चों को समय से पहले जन्म लेना पड़ सकता है, उनका वजन घट सकता है, उन्हें दमा और फेफड़ों की बीमारियां होने का अंदेशा है। दुनिया भर में नवजात शिशुओं की मृत्यु का 20 प्रतिशत वायु प्रदूषण के कारण होता है, जिनमें से अधिकांश मामले कम वजन और समय से पहले जन्म की जटिलताओं से संबंधित होते हैं।
यह पहला मौका नहीं है, जब प्रदूषण के प्रति चिंता जताने वाली कोई रिपोर्ट आई है। पिछले साल आई एक रिपोर्ट मेंं कहा गया था कि वायु प्रदूषण की वजह से लोग दस साल पहले बूढ़े हो रहे हैं। प्रदूषण के दुष्प्रभावों पर आधारित ऐसी रिपोर्ट समय-समय पर आती रहती हैं लेकिन उन्हें गंभीरता से लेते हुए बढ़ते प्रदूषण को रोकने की अपेक्षित कवायद कहीं नजर नहीं आ रही है। हम बढ़ते प्रदूषण के प्रति जिस तरह लापरवाही बरते रहे हैं, उससे समस्या में इजाफा हो रहा है। प्रदूषित हवा के कारण बच्चों और बड़ों के फेफड़ों को क्षति पहुंच रही है। पहले तो बड़े शहर की प्रदूषित की श्रेणी में आते थे, लेकिन अब तो छोटे शहरों में भी सांस लेना मुश्किल हो गया है। अगर हमने स्वस्थ जीवन जीना है और नौनिहालों को बीमारियों से बचाना है तो वायु प्रदूषण को नियंत्रित करना ही होगा। ऐसे सख्त कदम उठाने होंगे,जिससे हवा को स्वच्छ बनाने मेंं मदद मिले। इसके लिए सरकारों, नीति नियंताओं, औद्योगिक घरानों, पर्यावरण विशेषज्ञों और आम लोगों को मिलकर काम करना होगा। अब जिस तरह के हालात पैदा हो रहे हैं, उन्हें देखते हुए स्वच्छ ऊर्जा समाधानों को बढ़ावा देने, सख्त उत्सर्जन मानकों को लागू करने एवं जन जागरूकता को बढ़ाना ही होगा। हवाओं में मौत का जहर है। ऐसा वातावरण तैयार करना ही होगा, जिसमें हम सांस ले पाएं।