मामलों की तत्काल सुनवाई के लिए मौखिक उल्लेख की अनुमति नहीं, ईमेल या पत्र भेजा जाए: प्रधान न्यायाधीश

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नयी दिल्ली, 12 नवंबर (भाषा) प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना ने मंगलवार को कहा कि मामलों को तत्काल सूचीबद्ध करने और उन पर सुनवाई के लिए मौखिक उल्लेख करने की अनुमति नहीं दी जाएगी। उन्होंने वकीलों से इसके लिए ईमेल या लिखित पत्र भेजने का आग्रह किया।

आमतौर पर वकील दिन की कार्यवाही की शुरुआत में प्रधान न्यायाधीश की अगुवाई वाली पीठ के समक्ष अपने मामलों पर तत्काल सुनवाई के लिए उनका उल्लेख करते हैं।

प्रधान न्यायाधीश ने कहा, “अब कोई मौखिक उल्लेख नहीं होगा। केवल ईमेल या लिखित पर्ची/पत्र में ही होगा। बस, तत्काल सुनवाई की आवश्यकता के कारण बताएं।”

प्रधान न्यायाधीश ने न्यायिक सुधारों के लिए नागरिक-केंद्रित एजेंडे की रूपरेखा तैयार की है और कहा है कि न्याय तक आसान पहुंच सुनिश्चित करना और नागरिकों के साथ उनकी स्थिति की परवाह किए बिना समान व्यवहार करना न्यायपालिका का संवैधानिक कर्तव्य है।

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सोमवार को राष्ट्रपति भवन में 51वें प्रधान न्यायाधीश के रूप में न्यायमूर्ति खन्ना को शपथ दिलाई थी। न्यायमूर्ति खन्ना ने लोकतंत्र के तीसरे स्तंभ न्यायपालिका का नेतृत्व करने पर अत्यधिक सम्मान महसूस होने की बात कही।

प्रधान न्यायाधीश ने सोमवार को अपने पहले बयान में कहा, ‘‘न्यायपालिका शासन प्रणाली का अभिन्न, फिर भी अलग और स्वतंत्र हिस्सा है। संविधान हमें संवैधानिक संरक्षक, मौलिक अधिकारों के रक्षक और न्याय के सेवा प्रदाता होने के महत्वपूर्ण कार्य को पूरा करने की जिम्मेदारी सौंपता है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘समान व्यवहार के मामले में न्याय वितरण ढांचे में सभी को सफल होने का उचित अवसर प्रदान करना आवश्यक है, चाहे उनकी स्थिति, धन या शक्ति कुछ भी हो, और ये न्यायपूर्ण और निष्पक्ष निर्णय हो। ये हमारे मूल सिद्धांतों को चिह्नित करते हैं।’’

प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘हमें सौंपी गई जिम्मेदारी नागरिकों के अधिकारों के रक्षक और विवाद समाधानकर्ता के रूप में हमारी प्रतिबद्धता की पुष्टि करती है। हमारे महान राष्ट्र के सभी नागरिकों के लिए न्याय तक आसान पहुंच सुनिश्चित करना हमारा संवैधानिक कर्तव्य है।’’

न्यायमूर्ति खन्ना ने न्यायपालिका के सामने आने वाली चुनौतियों का उल्लेख किया जिनमें लंबित मामलों की संख्या कम करना, मुकदमेबाजी को किफायती बनाना और जटिल कानूनी प्रक्रियाओं को सरल बनाने की आवश्यकता शामिल है।

उन्होंने कहा कि न्याय प्रणाली को सभी नागरिकों की जरूरतों को पूरा करना चाहिए। उन्होंने अदालतों को अधिक सुलभ और उपयोगकर्ता के अनुकूल बनाने के लिए एक दृष्टिकोण की रूपरेखा भी प्रस्तुत की।

उच्चतम न्यायालय ने एक बयान में कहा कि प्रधान न्यायाधीश का उद्देश्य एक आत्म-मूल्यांकन दृष्टिकोण अपनाना है जो अपने कामकाज में फीडबैक के प्रति ग्रहणशील और उत्तरदायी हो।

इसमें कहा गया है, ‘‘नागरिकों के लिए फैसलों को समझने योग्य बनाना और मध्यस्थता को बढ़ावा देना भी प्राथमिकता में होगा।’’

आपराधिक मामलों के प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित करते हुए, न्यायमूर्ति खन्ना ने मुकदमे की अवधि को कम करने, एक व्यवस्थित दृष्टिकोण अपनाने और यह सुनिश्चित करने को प्राथमिकता देने का संकल्प लिया कि नागरिकों के लिए कानूनी प्रक्रियाएं कठिन न हों।

उन्होंने विवादों का प्रभावी तरीके से समाधान निकालने और समय पर न्याय प्रदान करने के लिए मध्यस्थता को बढ़ावा देने के महत्व पर भी प्रकाश डाला।