विकसित भारत: जन भागीदारी से ही साकार होगा यह सपना

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प्रो. महेश चंद गुप्ता

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी लंबे समय से विकसित भारत की बात कर रहे हैं। हाल के अमरीका दौरे में भी मोदी ने इस बात को दोहराया है। देश का सपना एक

विकसित राष्ट्र बनने का है और इसके लिए चलाए जा रहे अभियान के पीछे भारतकी आर्थिक, सामाजिक और तकनीकी प्रगति को तेज गति देने का उद्देश्य निहित है। इसमें कोई दो राय नहीं कि विकसित भारत अभियान का मुख्य उद्देश्य देश की समग्र प्रगति को सुनिश्चित करना है जिससे सभी नागरिकों को समान अवसर

और सुविधाएं मिल मिलना संभव हो सके। अभियान के तहत बुनियादी ढांचे,

शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, उद्योग, विज्ञान और प्रौद्योगिकी आदि कई प्रमुख क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है।

मोदी बार-बार भारत को विकसित बनाने के अपने संकल्प को दोहराते हैं लेकिन

बड़ा सवाल यह है कि क्या देश की जनता  इस सपने को साकार करने में मन से जुड़ी हुई है? सरकार की कोशिश अपनी जगह है पर हम लोग इस सपने को

साकार करने के लिए क्या योगदान दे रहे हैं ?  क्या सचमुच इस अभियान से हमारा उतना जुड़ाव है, जिसकी जरूरत महसूस की जा रही है? इन सवालों पर गहन चिंतन करने की जरूरत है। कोई भी काम जनता की भागीदारी के बिना पूरा नहीं किया जा सकता है। हमारे लिए विकसित भारत का सपना केवल सिर्फ आर्थिक दृष्टि से नहीं, बल्कि सामाजिक, शैक्षिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। इस सपने को तभी साकार किया जा सकता है, जब इसमें जन-जन का जुड़ाव हो। विकसित भारत के लिए जन आंदोलन की आवश्यकता है। जन आंदोलन बनने पर ही इसमें हर नागरिक की भागीदारी सुनिश्चित कर पाना संभव है।

अगर हम अतीत पर नजर डालते हैं तो हमें जन भागीदारी के सफल उदाहरण दिखाई पड़ते हैं। एक समय ऐसा था, जब हमारे देश में लोगों का पेट भरने के लिए भी अनाज उत्पादन नहीं होता था। देशवासियों का पेट भरने के लिए अनाज का आयात अपरिहार्य था मगर याद कीजिए, जब देश ने अन्न उत्पादन में आत्मनिर्भर बनने की ठान ली तो जन-जन की भागीदारी इसमें हुई तो वह सपना साकार होने में देर न लगी।  दुग्ध क्रांति का सपना भी ऐसा ही एक उदाहरण है। अन्न व दूध उत्पादन में सफलता के पीछे व्यापक जन जुड़ाव रहा है।

सरकार समय-समय पर अनेक योजनाएं बनाती है, विकास कार्यक्रम तैयार करती है, अनेक सुधारों की पैरवी करती है, अनेक कानून बनाए जाते हैं लेकिन अकेले सरकारी प्रयासों या कानूनों के दम पर क्या सभी काम हो पाने संभव हैं? जब हर छोटे-बड़े काम के लिए समन्वित प्रयासों की जरूरत पड़ती है तो भारत को विकसित बनाने का मिशन तो बहुत बड़ी सोच है। इसे जन आंदोलन बनाए बिना यथार्थ के धरातल पर कैसे उतारा जा सकता है?

देश को विकसित बनाने के लिए जन-जन को जागरूक करना ही होगा। नागरिकों को उनके कर्तव्यों के प्रति जागरूक करना आवश्यक है। जब लोग अपने आसपास की समस्याओं, जरूरतों को समझेंगे, तभी वे बदलाव की दिशा में कदम बढ़ा सकेंगे। इसके लिए तमाम युवाओं, सामाजिक व राजनीतिक संगठनों से जुड़े लोगों और शिक्षण संस्थानों की महत्वपूर्ण भूमिका परिहार्य होगी।

विकसित भारत सामाजिक न्याय और समानता की नींव पर ही खड़ा हो सकता है। जातिवाद, भेदभाव और असमानता के खिलाफ जन आंदोलन आवश्यक हैं। ऐसे आंदोलनों में युवाओं की भागीदारी विशेष रूप से जरूरी होगी। इसके साथ-साथ शिक्षा और रोजगार के अवसरों में समानता सुनिश्चित करना भी आवश्यक है। इसके लिए शिक्षा प्रणाली में सुधार की दरकार है ताकि सभी वर्गों के बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त हो सके। रोजगार के अवसरों को बढ़ाना भी उतना ही जरूरी होगा। शिक्षा प्रत्येक देश के विकास का आधार होती है लेकिन भारत की शिक्षा प्रणाली में अभी बहुत से सुधारों की दरकार है। हालांकि सरकार ने नई शिक्षा नीति बनाकर इस दिशा में काम शुरू किया है मगर ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच शिक्षा का असंतुलन, उच्च गुणवत्ता वाले शिक्षकों की कमी, और बुनियादी ढांचे की कमी एक बड़ी समस्या है जिसका समाधान करने की जरूरत है। वहीं, स्कूली शिक्षा के साथ ही व्यावसायिक और तकनीकी शिक्षा तथा श्रम शक्ति के कौशल विकास पर भी ध्यान केंद्रित करना होगा। हमारे विश्वविद्यालयों की वैश्विक रैकिंग में सुधार करना सबसे जरूरी काम है, जिसे विशेष अभियान के रूप में लिया जाना चाहिए।

विकसित भारत के एक महत्वपूर्ण पहलू के रूप में पर्यावरण  को भी देखना चाहिए। औद्योगिक क्रांति के बिना विकसित भारत की कल्पना कर पाना बेहद मुश्किल है। अब छोटे-बड़े उद्योगों की स्थापना के लिए कदम बढ़ाने होंगे। आधुनिक तकनीक का सही उपयोग विकसित भारत की भावना को मजबूत करेगा। ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव और शहरी क्षेत्रों में बेहतर सेवाओं की ऊंची कीमतें एक बड़ी समस्या हैं। भारत की बड़ी आबादी के लिए पर्याप्त स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करना एक चुनौती है।

भारत में आर्थिक असमानता एक बड़ी बाधा है। अमीर और गरीब के बीच की खाई तेजी से बढ़ रही है। एक ओर जहां कुछ क्षेत्रों में लोगों की आय और जीवन स्तर में वृद्धि हुई है, वहीं दूसरी ओर बड़ी संख्या में लोग गरीबी झेल रहे हैं। ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच आर्थिक असमानता भी स्पष्ट है।

विकसित भारत के लिए हम जितना करें, उतना ही कम है।  एक मजबूत और विकसित राष्ट्र बनने के लिए बुनियादी ढांचा आवश्यक है, लेकिन भारत इस क्षेत्र में अभी भी काफी पीछे है। चिकित्सा, सडक़, बिजली, पानी, और इंटरनेट जैसी बुनियादी सुविधाओं की कमी देश के कई हिस्सों में विकास को रोकती है। ग्रामीण क्षेत्रों में इन सुविधाओं की उपलब्धता और भी कम है। यदि भारत को विकसित देशों की सूची में शामिल होना है, तो उसे अपने बुनियादी ढांचे को तेजी से सुधारना होगा। विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धा के लिए प्रौद्योगिकी और नवाचार के क्षेत्र में और अधिक प्रयास करने होंगे।

विकसित भारत की परिकल्पना को साकार करने के लिए देश के प्रशासनिक ढांचे में भी सुधार अपेक्षित है क्योंकि भ्रष्टाचार, नौकरशाही और निर्णय लेने में देरी से विकास परियोजनाओं में बाधाएं आती हैं। सरकार की विभिन्न नीतियों और योजनाओं का प्रभावी कार्यान्वयन न होने से भी विकास दर पर असर पड़ता है। अगर राजनीतिक और प्रशासनिक प्रक्रियाओं में पारदर्शिता और दक्षता बढ़ाई जाए तो यह देश के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।  

हमारे देश की बड़ी आबादी खेती पर निर्भर है, इसलिए यह सुनिश्चित बनाना होगा कि किसानों की आय को बढ़ाया और उन्हें आधुनिक कृषि तकनीकों से लैस किया जाए। कृषि उत्पादन और गुणवत्ता में सुधार के लिए कृषि क्षेत्र में नवाचार और वैज्ञानिक शोध को प्रोत्साहित करना तथा ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी सुविधाओं का विस्तार कर ग्रामीण विकास को गति देना भी उतना ही जरूरी है।

भारत की तेजी से बढ़ती जनसंख्या देश के विकास के समक्ष एक प्रमुख चुनौती और बाधा है। बढ़ती जनसंख्या के कारण देश के संसाधनों पर अत्यधिक दबाव पड़ रहा है। वर्तमान मेंं देश की जनसंख्या 140 करोड़ है, यूनाइटेड नेशन के अनुसार जिसके  2050 मेंं 167 करोड़ हो जाने का अनुमान है। इसके विपरीत चीन की जनसंख्या 130 करोड़ रह जाएगी क्योंकि चीन अपनी जनसंख्या पर तेजी से नियंत्रण कर रहा है। इसके विपरीत हम जनसंख्या के मुकाबले मेंं चीन को पीछे छोड़ आए हैं। जनसंख्या के दबाव में स्वास्थ्य सेवाएं, शिक्षा, रोजगार, और अन्य बुनियादी सुविधाओं की मांग में वृद्धि हो रही है, लेकिन उपलब्ध संसाधन बढ़ती जनसंख्या के मुकाबले अपेक्षित गति से नहीं बढ़ पा रहे हैं।

जनसंख्या के दबाव के कारण हमें अनेक समस्याएं झेलनी पड़ रही हैं। किसी भी विकसित देश में उच्च प्रति व्यक्ति आय, क्वालिटी ऑफ लाइफ, बेहतर शिक्षा व स्वास्थ्य, स्टैंडर्ड ऑफ लिविंग महत्वपूर्ण है लेकिन हमारे देश की जीडीपी अभी पांच ट्रिलियन भी नहीं है जबकि अमेरिका की 30 ट्रिलियन और चीन की 20 ट्रिलियन है। अमेरिका में प्रति व्यक्ति आय 77 हजार डॉलर और चीन में 13 हजार डॉलर है जबकि भारत में प्रति व्यक्ति आय 2400 डॉलर यानी करीब नब्बे हजार रुपये ही है। आने वाले सालों मेंं भारत में प्रति व्यक्ति आय 15 से 20 हजार डॉलर हो, तभी हम स्टैंडर्ड ऑफ लिविंग की बात कर सकते हैं। अभी तो हमारे यहां क्वालिटी ऑफ लाइफ कमजोर है। स्टैंडर्ड ऑफ लिविंग नहीं है। ह्यूमन डवलपमेंट इंडेक्स में 193 देशों में भारत 134 वें नंबर पर है। अगर जनसंख्या इसी रफ्तार से बढ़ती रही तो हम कभी भी विकसित भारत नहीं बन पाएंगे।

भारत को विकसित राष्ट्र बनाने के लिए हमारी जीडीपी में आठ से नौ प्रतिशत की बढ़ोतरी आवश्यक है। पिछले दस सालों में 25 करोड़ लोगों को गरीबी की रेखा से ऊपर लाने में सफलता मिली है लेकिन अभी बहुत बड़ी तादाद में लोग गरीबी की रेखा से नीचे जीवन-यापन कर रहे हैं। विकसित भारत बनने की राह में जो भी बाधाएं हैं, उन्हें दूर करना होगा। जहां नीतिगत सुधार जरूरी हों, वहां सरकार को आगे आना होगा। जहां जनता के काम करने की जरूरत हो, वहां जनता को स्वत: स्फूर्त खड़ा होना होगा। ऐसा होने पर ही भारत विकसित देशों की श्रेणी में शामिल हो सकेगा और अपनी पूरी क्षमता का उपयोग कर सकेगा। विकसित भारत का सपना भारत के लोगों द्वारा भारत के लोगों के लिए ही देखा जा रहा है, यह अहसास हर किसी को होना चाहिए।
(लेखक प्रख्यात शिक्षाविद्, चिंतक और वक्ता हैं। वह 44 सालों तक दिल्ली यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर रहे हैं।)

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