क्षेत्रीय सहयोग में बाधा बन रहे आतंकवाद और उग्रवाद : जयशंकर

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इस्लामाबाद, 16 अक्टूबर (भाषा) विदेश मंत्री एस जयशंकर ने पाकिस्तान को उसी की धरती से परोक्ष संदेश देते हुए बुधवार को कहा कि यदि सीमा पार की गतिविधियां आतंकवाद, उग्रवाद और अलगाववाद की ‘‘तीन बुराइयों’’ पर आधारित होंगी तो व्यापार, ऊर्जा और संपर्क सुविधा जैसे क्षेत्रों में सहयोग बढ़ने की संभावना नहीं है।

जयशंकर ने शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के एक सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि व्यापार और संपर्क पहलों में क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता को मान्यता दी जानी चाहिए और भरोसे की कमी पर ‘‘ईमानदारी से बातचीत’’ करना आवश्यक है।

विदेश मंत्री ने इस्लामाबाद में आयोजित एससीओ देशों के शासन प्रमुखों की परिषद (सीएचजी) के 23वें शिखर सम्मेलन में भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व किया। इस सम्मेलन की अध्यक्षता पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने की। जयशंकर मंगलवार को इस्लामाबाद पहुंचे। वह करीब एक दशक में पाकिस्तान की यात्रा करने वाले पहले भारतीय विदेश मंत्री हैं।

शरीफ ने एससीओ के सम्मेलन को सबसे पहले संबोधित किया जिसके तुरंत बाद जयशंकर ने सम्मेलन में अपनी बात रखी। इस सम्मेलन में चीन के प्रधानमंत्री ली कियांग भी शामिल हुए।

जयशंकर ने ये टिप्पणियां पूर्वी लद्दाख में भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच जारी सैन्य गतिरोध और हिंद महासागर एवं अन्य रणनीतिक जलक्षेत्रों में चीन की बढ़ती सैन्य ताकत को लेकर चिंताओं के बीच की।

उन्होंने कहा, ‘‘यदि सीमा पार की गतिविधियां आतंकवाद, उग्रवाद और अलगाववाद से जुड़ी हैं तो उनके साथ-साथ व्यापार, ऊर्जा प्रवाह, संपर्क और लोगों के बीच आपसी लेन-देन को बढ़ावा मिलने की संभावना नहीं है।’’

सम्मेलन से पहले प्रधानमंत्री शरीफ ने जयशंकर से हाथ मिलाया और शिखर सम्मेलन स्थल ‘जिन्ना कन्वेंशन सेंटर’ में उनका और एससीओ के अन्य सदस्य देशों के नेताओं का गर्मजोशी से स्वागत किया।

जयशंकर ने कहा कि सहयोग आपसी सम्मान और संप्रभुता की समानता पर आधारित होना चाहिए। उन्होंने कहा कि यदि समूह आपसी भरोसे के आधार पर मिलकर आगे बढ़ता है तो एससीओ सदस्य देशों को काफी लाभ हो सकता है।

विदेश मंत्री ने एससीओ के प्रत्येक सदस्य राष्ट्र द्वारा समूह के चार्टर का सख्ती से पालन किए जाने की आवश्यकता पर बल दिया तथा आपसी विश्वास, मित्रता और अच्छे पड़ोसी के भाव को मजबूत करने के इसके सार पर प्रकाश डाला।

उन्होंने कहा, ‘‘इसमें क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता को मान्यता दी जानी चाहिए। इसे वास्तविक साझेदारी पर आधारित होना चाहिए, न कि एकतरफा एजेंडे पर। अगर हम वैश्विक व्यवस्थाओं, खासकर व्यापार और पारगमन के क्षेत्रों में अपने फायदे के हिसाब से चयन करेंगे तो यह (सहयोग) आगे नहीं बढ़ सकता।’’

उनकी इस टिप्पणी को व्यापार एवं संपर्क सुविधा जैसे अहम मुद्दों पर चीन के आक्रामक व्यवहार के परोक्ष संदर्भ के रूप में देखा जा रहा है।

जयशंकर ने कहा, ‘‘लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हमारे प्रयास तभी आगे बढ़ेंगे जब चार्टर के प्रति हमारी प्रतिबद्धता दृढ़ रहेगी। यह स्वत: सिद्ध है कि विकास एवं वृद्धि के लिए शांति एवं स्थिरता अनिवार्य है। जैसा कि चार्टर में स्पष्ट किया गया है, इसका अर्थ है- ‘‘तीन बुराइयों’’ का मुकाबला करने में दृढ़ रहना और समझौता नहीं करना।’’

जयशंकर ने कहा कि इस बात पर आत्मावलोकन करने की आवश्यकता है कि कहीं ‘‘अच्छे पड़ोसी’’ की भावना गायब तो नहीं है और भरोसे की कमी तो नहीं है।

उन्होंने कहा, ‘‘यदि हम चार्टर के सूत्रपात से लेकर आज की स्थिति पर तेजी से नजर डालें तो ये लक्ष्य और ये कार्य और भी महत्वपूर्ण हो जाते हैं। इसलिए यह आवश्यक है कि हम ईमानदारी से बातचीत करें।’’

विदेश मंत्री ने कहा, ‘‘यदि भरोसे की कमी है या पर्याप्त सहयोग नहीं है, यदि मित्रता कम हो गई है और अच्छे पड़ोसी की भावना गायब है तो निश्चित रूप से आत्मावलोकन करने और समाधान खोजने की आवश्यकता है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘इसी तरह, यदि हम चार्टर के प्रति अपनी प्रतिबद्धता की पूरी ईमानदारी से पुष्टि करें, तभी हम उस सहयोग और एकीकरण के उन लाभों को पूरी तरह से हासिल कर सकते हैं जिनकी इसमें परिकल्पना की गई है।’’

जयशंकर ने कहा कि एससीओ का उद्देश्य आपसी विश्वास, मित्रता और अच्छे पड़ोसी के रूप में संबंधों को मजबूत करना है।

उन्होंने कहा, ‘‘इसका उद्देश्य खासकर क्षेत्रीय प्रकृति का बहुआयामी सहयोग विकसित करना है। इसका मकसद संतुलित विकास, एकीकरण और संघर्ष की रोकथाम के मामले में एक सकारात्मक शक्ति बनना है।’’

जयशंकर ने कहा, ‘‘चार्टर में यह भी स्पष्ट था कि मुख्य चुनौतियां क्या थीं। मुख्य रूप से तीन चुनौतियां थीं जिनका मुकाबला करने के लिए एससीओ प्रतिबद्ध था: पहली- आतंकवाद, दूसरी- अलगाववाद और तीसरी चुनौती-उग्रवाद।’’

जयशंकर ने ऋण की चुनौती को भी गंभीर चिंता बताया।

विदेश मंत्री ने वैश्विक मुद्दों पर चर्चा करते हुए कहा कि वैश्विक संस्थाओं को बदलावों के साथ तालमेल बनाए रखने की जरूरत है और उन्होंने ‘‘सुधार के साथ बहुपक्षवाद’’ की आवश्यकता को रेखांकित किया।

उन्होंने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी और अस्थायी दोनों श्रेणियों के स्तरों पर व्यापक सुधार की आवश्यकता पर भी बल दिया, ताकि वैश्विक निकाय को अधिक प्रतिनिधित्वपूर्ण, समावेशी, पारदर्शी और कुशल बनाया जा सके।

उन्होंने कहा, ‘‘एससीओ को इस तरह के बदलाव की वकालत करने में पीछे हटने के बजाए सबसे आगे रहना चाहिए।’’

जयशंकर ने विभिन्न वैश्विक चुनौतियों का भी उल्लेख किया।

उन्होंने कहा, ‘‘हम ऐसे समय में सम्मेलन कर रहे हैं जब दुनिया कठिनाई के दौर से गुजर रही है। दो बड़े संघर्ष जारी हैं, जिनका पूरे विश्व पर असर पड़ रहा है। कोविड महामारी ने विकासशील देशों में कई लोगों को बुरी तरह तबाह कर दिया है।’’

जयशंकर ने कहा, ‘‘जलवायु की चरम परिस्थितियों से लेकर आपूर्ति शृंखला संबंधी अनिश्चितताएं और वित्तीय अस्थिरता तक विभिन्न प्रकार के व्यवधान विकास को प्रभावित कर रहे हैं।’’

उन्होंने कहा, ‘‘प्रौद्योगिकी में बहुत संभावनाएं हैं, लेकिन यह नयी चिंताओं को भी जन्म देती है।’’

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