आज का मुख्य मुद्दा तेजी से उछल रही चांदी है। चांदी को रजत भी कहा जाता है। रजतपट का नाम तो आपने सुना ही होगा । चांदी इतनी तेजी से उछल रही है कि देखने वाले भौंचक हैं। इतने तेज तो हमारे एथलीट भी नहीं उछल पाते जितनी तेज चांदी उछल रही है। चांदी न खाने के काम आती है न आईस्क्रीम बनाने के काम लेकिन चांदी के भाव आसमान छूकर आसमान से भी ऊपर किसी तीसरे -चौथे ग्रह से आगे निकल गए हैं। कुल मिलाकर आजकल हमारे देश में चांदी की चांदी ही चांदी हो रही है।
चांदी आम आदमी की धातु है । आम आदमी से मतलब गरीब-गुरवों की धातु । आदिवासियों की धातु। दवाओं और मिठाइयों को सजाने के लिए वर्क बनाने के काम आने वाली धातु । लेकिन अब इस चांदी को भी बाजार की नजर लग गयी है। सालों से चांदी,सोना या पीतल हमारे यहां धनतेरस पर खरीदा जाता है। यह परम्परा है पर आजकल तो ज्योतिषी ऐसे योग बता देते हैं कि हैसियत हो या न हो बिना खरीदारी के मन नहीं मानता। अब धनतेरस और दीपावली से पहले जहां सोने की चमक बढ़ती जा रही है, तो वहीं दूसरी कीमती धातु चांदी भी लगातार उछल रही है । सप्ताह के पहले कारोबारी दिन सोमवार को चांदी ने नया मुकाम छू लिया, जी हां, मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज यानी ‘मैक्स ‘ पर एक किलो चांदी का भाव एक लाख रुपये के स्तर को छू गया।
चांदी के बढ़ते दाम ही देश की तरक्की का सबसे बड़ा प्रमाण हैं तो हमारा देश बिला शक तरक्की कर रहा है। इतनी तरक्की देश ने पहले कभी नहीं की। अब नहीं की तो नहीं की । हमें हकीकत को तस्लीम करना ही चाहिए। हम कोई विपक्ष तो हैं नहीं जो इस तरक्की को ख़ारिज कर दें ! हमें हकीकत का समाना करना आता है । हमें पता है कि हमारी हैसियत अपने परिवार की महिलाओं के लिए सोने के आभूषण खरीदने की तो नहीं है लेकिन अब हम शायद चांदी के आभूषण भी खरीदने लायक नहीं रहे। ये बात और है कि आजकल मोटे-ताजे अखबारों में चांदी के आभूषणों का कोई विज्ञापन नहीं छपता । केवल स्वर्ण और हीरे के आभूषणों के विज्ञापन आते हैं।
छात्र जीवन में हमने एक बार चांदी पर निबंध लिखा था । उस निबंध की कुछ पंक्तियाँ हमें आज भी याद हैं। जैसे कि – चांदी सफ़ेद चमकदार धातु है। चांदी ऊष्मा व विद्युत की सबसे अच्छी सुचालक है। चांदी का परमाणु भार 107.88, विशिष्ट घनत्व 10.55 से 9.87 तक, विशिष्ट ऊष्मा लगभग 0.56 तथा रेखीय प्रसारगुणक 1° से 100° सें. के बीच 0.0000194 है। दुनिया का तो पता नहीं किन्तु हमारे देश में चांदी का उपयोग सिक्के,आभूषण व बर्तन बनाने के अलावा , फोटोग्राफी में काम आने वाले सिल्वर ब्रोमाइड बनाने में किया जाता है। चांदी के द्वारा अमलगम बना कर इससे दर्पण बनाये जाते हैं व दाँतों में भरने के काम आता है।चांदी से बनी मिश्रधातुयें अत्यधिक उपयोगी होती हैं। आयुर्वेद वाले स्वर्ण भस्म की तरह चांदी की रजत भस्म बनाकर रोगियों के तमाम रोग भस्म करने का दावा करते है। लेकिन अब चांदी इतनी महंगी हो गयी है कि आप न इसे दांत में भर सकते हैं और न शहद लगाकर चाट सकते हैं । मिठाइयों पर इसके वर्क लगाने का तो ख्वाब भी मत देखिये। चांदी के अक्षरों से कोई इतिहास भी तो नहीं लिखा जाता।
एक लाख रुपए प्रति किलो तक आ पहुंची चांदी हमारे जीवन में ही नहीं बल्कि हमारे साहित्य और कहावतों में भी ससम्मान मौजूद है । हम अक्सर कहते हैं कि – फलां साहब की तो चांदी ही चांदी है। या फलां साहब तो मुंह में चांदी की चम्मच लेकर पैदा हुए है। ये साहब या फिर फलां साहब तो आजकल चांदी काट रहे है। कभी किसी ने नहीं कहा कि फलां साहब का तो सोना ही सोना है या फलां साहब आजकल सोना काट रहे हैं। ये चांदी का वैभव है कि वह लोक जीवन में सोने से भी ज्यादा महत्वपूर्ण है। समाज में चांदी की ‘ सिल्ली ‘ रखी जाती है लेकिन सोना बिस्किट से ज्यादा बड़ा नहीं हो पाया। भले ही किलो के दाम सोने के चांदी से कहीं ज्यादा हों,लेकिन किलो के हिसाब से लोग सोना नहीं चांदी खरीदते है। चांदी आखिर सुरक्षित निवेश का भी तो माध्यम है।
भारत हालांकि कृषि प्रधान देश है लेकिन यहां चांदी की खपत बहुत ज्यादा है। भारत अपनी जरूरत की चांदी पैदा नहीं कर पाता तो उसे विदेशों से चांदी मंगाना पड़ती है। आखिर जनता का ख्याल तो रखना ही पड़ता है ! भारत में इसका बहुत कम उत्पादन होता है। भारत अक्सर बेल्जियम, ब्रिटेन, इटली, पश्चिमी जर्मनी आदि देशों से चांदी का आयात करता हैं। भारत में चांदी – राजस्थान में जावर माइन्स, कर्नाटक में चित्रदुर्ग तथा बेलारी ज़िले, आन्ध्र प्रदेश में कडपा, गुंटूर तथा कुरनूल ज़िले, झारखण्ड में संथाल परगना तथा उत्तराखण्ड में अल्मोड़ा में मिल जाती है। पहले इसका उत्खनन तमिलनाडु के अन्नतपुर में भी किया जाता था जो अब समाप्त हो गया है। पुराने आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 1999-2000 के दौरान देश में कुल 53641 किग्रा. चांदी का उत्पादन हुआ था।
चांदी भी छुई-मुई है। विशेषज्ञ बताते हैं कि चांदी में ये उछाल मध्य पूर्व में बढ़ते जियो-पॉलिटिकल तनाव और आगामी अमेरिकी चुनावों से जुड़ी अनिश्चितताओं के कारण देखने को मिल रहा है। केडिया एडवाइजरी के डायरेक्टर अजय केडिया का अनुमान है कि मार्च 2025 तक चांदी का भाव 1.3 लाख रुपये प्रति किलो तक पहुँच सकता है। यानि चांदी को महंगा करने में हमारे देश की सरकार का कोई हाथ नहीं है, कोई भूमिका नहीं है,इसलिए उसे इसके लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। वैसे भी हमारी सरकार कोई जिम्मेदारी अपने ऊपर कभी लेती नहीं। उसे राम पर भरोसा है और जनता को भी।
हमारी सरकार देश की जनता के लिए कोई दूसरी जरूरी चीज का आयात करे या न करे लेकिन चांदी का आयात जरूर करती है । सरकारी आंकड़े बताते हैं कि भारत ने जनवरी से अप्रैल के दौरान रिकॉर्ड 4,172 मीट्रिक टन चांदी का आयात किया, जो एक वर्ष पहले इसी अवधि के आयात से 455 टन से अधिक है। ये हमारी सरकार की एक बड़ी उपलब्धि जरूर है। पिछले बजट में ही हमारी सरकार ने इसीलिए चांदी पर आयात पर शुल्क बढ़ा दिया था। यानी आम के आम और गुठलियों के दाम जैसी है चांदी। हम सनातनी हिन्दू मुसलमानों की दुकानों से खाने-पीने की चीजें खरीदें या न खरीदें लेकिन चांदी जरूर खरीद लेते है। आप ये जानकर हैरान होंगे कि भारत का अपने मुक्त व्यापार समझौते के साझेदार संयुक्त अरब अमीरात से सोने और चांदी का आयात 2023-24 में 210 प्रतिशत बढ़कर 10.7 अरब डॉलर हो चुका है। जबकि ये इस्लामिक देश है।
चांदी सोने के मुकाबले में झाँकने में भी आगे है और उछलने में भी। सोने के कंगन ही खनकते हैं, वे उछल नहीं सकते,लेकिन चांदी के जेवर ही नहीं बल्कि खुद चांदी भी सोने के मुकाबले 10 फीसदी ज्यादा उछल सकती है । उछल रही है । सोना 20 फीसदी उछला तो चांदी 30 फीसदी उछल गयी।
आप मेरी मानें या न मानें किन्तु जीटीआरआई की रिपोर्ट को तो सच मान लीजिये। इस रिपोर्ट के अनुसार, भारत असीमित मात्रा में चांदी के आयात पर सात प्रतिशत शुल्क या सीमा शुल्क रियायतें और 160 मीट्रिक टन सोने पर एक प्रतिशत रियायत देता है। सीईपीए पर फरवरी 2022 में हस्ताक्षर किए गए और मई 2022 में इसे लागू किया गया। अब ये आपके ऊपर है कि आप आने वाले दिनों में अपनी बचत बैंकों में जमा करें या उसे चांदी में निवेशित करें। आप चांदी के जूते भी बनवा कर रख सकते है। वक्त जरूरत काम आ सकते है। भूलिए मत कि चंदू के चाचा ने, चंदू की चाची को, चांदनी रात में, चांदी के चम्मच से चटनी चटाई थी।