नयी दिल्ली, राष्ट्रपति भवन, साउथ ब्लॉक और संसद भवन सोमवार को ‘डिस्लेक्सिया’ के बारे में जागरुकता पैदा करने के लिए लाल रोशनी में नहाए नजर आए।
डिस्लेक्सिया से पीड़ित बच्चे अक्सर शब्दों के उच्चारण को गलत समझते हैं, और जो पढ़ते हैं उसे समझने में उन्हें समस्या होती है।
कार्यक्रम के आयोजक ने कहा कि यह रोशनी राष्ट्रव्यापी ‘एक्ट4डिस्लेक्सिया अभियान’ का प्रतीक है, जिसका उद्देश्य सीखने संबंधी अक्षमताओं के बारे में जागरुकता बढ़ाना है। अनुमान है कि भारत की 20 प्रतिशत आबादी, जिसमें 3.5 करोड़ छात्र शामिल हैं, इस दिव्यांगता से प्रभावित है।
‘चेंजइंक फाउंडेशन’ की सह-संस्थापक और ट्रस्टी नूपुर झुनझुनवाला ने कहा, ‘‘डिस्लेक्सिया के बारे में जागरुकता फैलाने की दिशा में एक साहसिक कदम उठाते हुए, यूनेस्को एमजीआईईपी और चेंजइंक फाउंडेशन के सहयोग से रविवार को दिल्ली में सरकार के सर्वोच्च कार्यालयों और प्रमुख स्मारकों – जिनमें राष्ट्रपति भवन, नॉर्थ और साउथ ब्लॉक, संसद और इंडिया गेट शामिल हैं – को डिस्लेक्सिया के प्रति जागरुकता के लिए लाल रंग से रोशन किया गया।’’
इसी तरह का आयोजन पटना, रांची, जयपुर, कोहिमा, शिमला और मुंबई में भी किया गया।
झुनझुनवाला की 16 वर्षीय बेटी डिस्लेक्सिया से पीड़ित है। उन्होंने कहा, ‘‘अपने शहरों को रोशन करके और साथ-साथ चलते हुए, हम एक अधिक समावेशी समाज की ओर बढ़ने के लिए प्रेरित करना चाहते हैं, जहां हर व्यक्ति, सीखने की अक्षमताओं के बावजूद, न केवल जीवित रहे बल्कि फलता-फूलता रहे।’’
अक्सर ‘धीमी गति से सीखने वाले सिंड्रोम’ के रूप में गलत समझे जाने वाले, सीखने संबंधी दिव्यांगता से पीड़ित लोग समझने, बोलने, पढ़ने, लिखने, वर्तनी या गणितीय गणना करने में संघर्ष करते हैं, लेकिन उनके पास तार्किक क्षमता, आलोचनात्मक सोच, समस्या समाधान और नवाचार सहित उच्च-स्तरीय सोच के लिए जरूरी कौशल भी होता है।
‘चेंजइंक फाउंडेशन’ के अनुसार अपने दम पर करोड़पति बनने वाले 40 प्रतिशत से अधिक कारोबारी डिस्लेक्सिया से पीड़ित हैं, वहीं अल्बर्ट आइंस्टीन जैसे कई जानेमाने आविष्कारक भी डिस्लेक्सिया के शिकार थे।