MSME का स्वतंत्र स्टॉक एक्सचेंज बनायेगा भारत को आर्थिक महाशक्ति

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अभी कानपुर में एक मीडिया हाउस ने ट्रांसफॉर्मिंग कानपुर विषय पर एक डायलाग कार्यक्रम आयोजित किया. विषय और मंशा दोनों अच्छे हैं लेकिन यह तभी हो सकता है जब पूरब का मैनचेस्टर कहा जाने वाला शहर भारत में MSME का प्रतिनिधित्व करने वाले प्रदेश उत्तर प्रदेश का यह शहर पूरे भारत के MSME का प्रतिनिधित्व  करे. भारत सरकार के MSME मंत्रालय को यहीं होना चाहिए. तभी इस शहर को और इस विषय को फोकस मिल सकेगा.

दूसरा प्रयास इसके स्वतंत्र स्टॉक एक्सचेंज की स्थापना है।  स्टॉक एक्सचेंज के एक विभाग के रूपये में MSME के लिए विंडो खोल देना MSME द्वारा पूंजी बाजार प्रदान करने का हल नहीं है. यह बड़ी मछली के बीच छोटी मछली के रूप में दब जाना जैसे हो जाता है. इसका समाधान तभी होगा जब रेगुलर स्टॉक एक्सचेंज से इतर एमएसएमई के लिए समर्पित स्वतंत्र स्टॉक एक्सचेंज की स्थापना होगी और एमएसएमई के अंदर ही माइक्रो के लिए एक अलग प्रकोष्ठ की स्थापना होगी. जब तक यह दोनों सुधार नहीं होंगे, इस वर्ग का स्वतंत्र विकास हमेशा संघर्ष करेगा.  हम सबको मालूम ही है एमएसएमई सेक्टर भारतीय अर्थव्यवस्था का मेरुदंड है, एमएसएमई की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार भारत में कुल एमएसएमई 6.33 करोड़ हैं, और उसमें से 6.08 करोड़ लगभग 95.98 फीसदी एमएसएमई एकल व्यवसाय में हैं, यह दर्शाता है कि एमएसएमई द्वारा कॉर्पोरेट फॉर्म या अन्य संगठित रूप बहुत कम पसंद किये जा रहें हैं और यही कारण है की इस सेक्टर की एक बहुत बड़ी संख्या अनमैप्ड और अपंजीकृत हैं।

भारत में यह क्षेत्र अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है क्योंकि यह अन्त्योदय के सिद्धांतों के अनुसार अंतिम छोर के भारतीय के विकास में योगदान देता है. एक रिपोर्ट के अनुसार एमएसएमई अपनी विशाल वितरित उपस्थिति के साथ करीब करीब 11 करोड़ से भी अधिक लोगों को रोजगार और जीडीपी में 29 फीसदी तो जीवीए में 31.83 फीसदी और निर्यात में 48.10 फीसदी का योगदान देता है।

इतना सब होने के बावजूद भी इस सेक्टर की सबसे बड़ी चिंता इसका बड़ी संख्या अनमैप्ड और अपंजीकृत होना ही है. इसमें बड़ी संख्या में लोग एकल व्यवसाय में हैं और लगातार पूंजीगत नकदी संकट से जूझते रहते हैं चाहे वह कार्यशील पूँजी हो या स्थाई पूंजी हो जबकि इनके मुकाबले बड़े उद्यम जो अर्थव्यवस्था में उतना वितरित योगदान नहीं देते हैं उनके लिए कार्यशील पूँजी एवं स्थाई पूंजी की उपलब्धता अधिक है.

एक बड़े संस्थागत प्रयास के रूप में इनके लिए पूँजी बाजार को आकर्षक बनाना जरुरी है जिस कारण ये व्यवसाय के अनौपचारिक फॉर्म छोड़कर औपचारिक फॉर्म में आये और जो बड़ी समस्या इनके अनमैप और अपंजीकृत होने की है, वह भी दूर किया जा सके. इस समस्या को एमएसएमई के लिए समर्पित स्टॉक एक्सचेंज बनाकर दूर किया जा सकता है. आज की तारीख में देश की दो बड़ी स्टॉक एक्सचेंज बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज और नेशनल स्टॉक एक्सचेंज अपनी व्यवस्थाओं के अधीन एमएसएमई के लिए अलग से प्रकोष्ठ खोले हुए हैं लेकिन यह बड़े बरगद के नीचे छोटे पेड़ों के न फूलने फलने लायक परिस्थिति बनती है. एमएसएमई मिनिस्टर नितिन गड़करी भी कुछ साल पहले राष्ट्रीय एमएसएमई स्टॉक एक्सचेंज बनाने की बात कर रहे थे लेकिन वह एक स्वतंत्र स्टॉक एक्सचेंज के बजाय इन बड़े बरगद रूपी बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज या नेशनल स्टॉक एक्सचेंज के अधीन ही बात कर रहे थे.

एमएसएमई को अगर लम्बी अवधि के हिसाब से पूंजीगत मजबूती देनी है और बराबर मैदान देना है तो उन्हें स्टॉक एक्सचेंज की मजबूती देनी पड़ेगी लेकिन यह तब तक संभव नहीं है जब तक एमएसएमई का एक स्वतंत्र स्टॉक एक्सचेंज ना बने बजाय इसके की मौजूदा स्टॉक एक्सचेंज में एक प्रकोष्ठ बनाकर. पूरे देश के करीब 15% एमएसएमई यूपी से आते हैं और बिहार को जोड़ दें तो करीब एक चौथाई इसी दोनों प्रदेश से हैं. इसके लिये मेरा मानना है इसके लिए मुफीद जगह होगी कानपुर . मुंबई बड़े उद्यम का प्रतिनिधि और यूपी एमएसएमई का प्रतिनिधि पूंजी बाजार में करे तो भारत का आर्थिक संतुलन बनाया जा सकता है और शक्ति के सही संतुलन और विकास प्रवाह से भारत को दुनिया का आर्थिक महाशक्ति बना सकते हैं.

हालांकि आज भी छोटी कंपनियां स्टॉक एक्सचेंजों में खुद को सूचीबद्ध कर सकती हैं  लेकिन आमतौर पर वे बीएसई और एनएसई की पात्रता मानदंडों को पूरा करने में अक्षम पाती हैं। दुनिया भर में भी  लगभग सभी प्रमुख पूंजी बाजारों ने एमएसएमई वर्ग के लिए एक अलग एक्सचेंज की आवश्यकता महसूस की है। 20 से अधिक देश अलग एसएमई बाजार संचालित करते हैं। बीएसई और एनएसई ने भी जो एमएसएमई के लिए अपना प्लेटफॉर्म लॉन्च किया उसके तहत सूचीबद्ध एमएसएमई बाद में बिना आईपीओ के ही शेयर बाजार के मेन बोर्ड में जा सकती हैं। यह सुविधा एमएसएमई आईपीओ के लिए एक नया रास्ता हैं और बड़ी कम्पनियों की तुलना में न्यूनतम अनुपालन और लागत के साथ लिस्टिंग का अवसर प्रदान करते हैं।

एम्एसएमई एक्सचेंज की रूपरेखा पहली बार 2008 में सेबी द्वारा सोची गई थी और इस दिशा में एक प्रमुख कदम जनवरी 2010 में एमएसएमई के लिए प्रधान मंत्री टास्क फ़ोर्स द्वारा दी गई रिपोर्ट थी जिसमें एमएसएमई एक्सचेंज की स्थापना की सिफारिश की गई थी जिसके बाद ही  2012 में बीएसई और एनएसई में अलग प्लेटफार्म की स्थापना की गई लेकिन इसका इलाज तभी होगा जब इसे बड़े स्टॉक एक्सचेंज से निकाल एक स्वतंत्र संस्थान के रूप में स्थापित किया जायेगा.

एमएसएमई लिस्टिंग न केवल कंपनियों को लाभ प्रदान करेंगी बल्कि निवेशकों को भी लाभ देंगी,साथ ही प्राइवेट इक्विटी निवेशकों के लिए एक निकास मार्ग प्रदान करने के साथ-साथ ESOP होल्डिंग कर्मचारियों को तरलता देंगी। इनकी लिस्टिंग ग्राहकों, आपूर्तिकर्ताओं, निवेशकों, वित्तीय संस्थानों और मीडिया के बीच इनकी सार्वजनिक छवि मजबूत करेंगी जिससे इन्हें कई तरह के लाभ मिलेंगे।

स्वतंत्र एमएसएमई स्टॉक एक्सचेंज विमर्श के मध्य आइये जानते हैं ये बीएसई या एनएसई में वर्तमान में यह कैसे काम करती हैं. जैसा कि हम जानते हैं, बीएसई और एनएसई प्लेटफॉर्म, जहां कंपनियां अपने शेयर को लिस्ट करती है, आमतौर पर “मुख्य बोर्ड” के रूप में जानी जाती हैं। यह मंच प्राथमिक मंच है जहां आईपीओ होता है और इसके लिए सख्त पात्रता मानदंड हैं लेकिन एमएसएमई प्रकोष्ठ हेतु पात्रता मानदंड इतने कठिन नहीं हैं और इसके लिये काफी रियायत दी गई है.

विश्व स्तर पर, आईपीओ बाजार ई-कॉमर्स, सोशल मीडिया और मोबाइल प्रौद्योगिकी फर्मों के साथ एक नई शुरुआत कर रहा है जबकि भारत में ऐसा नहीं हो रहा कुछेक अपवाद को छोड़. यहां आज भी स्टार्टअप स्टॉक एक्सचेंज की जगह निजी इक्विटी निवेशकों के दरवाजे खटखटा रहे हैं । ये स्टार्टअप कंपनियां भारत में तो सूचीबद्ध नहीं है लेकिन विदेशों में सूचीबद्ध हो रही हैं। भारत में ऐसे कई स्टार्टअप और एमएसएमई हैं जिन्हें ग्रोथ कैपिटल की जरूरत है। बड़े स्टार्टअप तो आगे की पूंजी के लिए निजी इक्विटी निवेशकों को टैप कर सकते हैं, लेकिन छोटे लोगों और एमएसएमई के पास वर्तमान में पूंजी जुटाने के लिए सीमित विकल्प हैं। उनके लिए ही नहीं केवल, निवेशकों के लिए भी समर्पित एमएसएमई स्टॉक एक्सचेंज एक सकारात्मक कदम होगा क्योंकि उन्हें भी ग्रोथ स्टोरी का हिस्सा बनने का अवसर मिलता है। यदि ऐसा होता है तो एसएमई प्लेटफॉर्म स्टार्टअप को पूंजी जुटाने के लिए एक व्यवहार्य विकल्प के रूप में उभरेगा और यहां तक कि स्टार्ट-अप निवेशकों को जल्दी बाहर निकलने का अधिक मौका मिलेगा।

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