जम्मू-कश्मीर में दस साल बाद विधानसभा चुनाव हो रहे हैं। ऐसे में सभी की निगाहें माता वैष्णो देवी विधानसभा सीट पर लगी हैं। ये सीट अनुच्छेद-370 के बाद हुए परिसीमन से अस्तित्व में आई है। इससे पहले ये क्षेत्र रियासी सीट का हिस्सा था। माता वैष्णो देवी सीट पर भाजपा और कांग्रेस दोनों ने पूरी ताकत झोंक रखी थी । भाजपा के लिए ये सीट इसीलिए अहम हो गई , क्योंकि यह धार्मिक लिहाज से हिंदुओं के लिए महत्वपूर्ण स्थान है। अयोध्या और बद्रीनाथ जैसा सियासी हश्र भाजपा का माता वैष्णो देवी की सीट पर न हो जाए, इसके लिए किसी तरह कोई भी रिस्क लेने के मूड में नहीं थी ।
भाजपा 2024 के लोकसभा चुनाव में अयोध्या और नासिक जैसी धार्मिक नगरी वाली सीट जीत नहीं सकी। यही नहीं, उपचुनाव में उत्तराखंड की बद्रीनाथ और हरिद्वार की मंगलोर सीट पर मिली हार से भाजपा की काफी किरकिरी हुई थी। इतना ही नहीं ,प्रयागराज और चित्रकूट जैसी लोकसभा सीट भाजपा हार गई थी। भाजपा को अयोध्या में तब चुनावी मात खानी पड़ी, जब रामलला की प्राण प्रतिष्ठा हो गई थी। अयोध्या में भगवान श्रीराम का भव्य राम मंदिर बनकर तैयार हो रहा है। ऐसे में मिली चुनावी शिकस्त से भाजपा को शर्मिंदगी झेलनी पड़ी है। यही वजह है कि भाजपा अब श्री माता वैष्णो देवी सीट किसी भी सूरत में गंवाना नहीं चाहती है।
जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद-370 के खत्म होने के बाद हुए परिसीमन से माता वैष्णो देवी विधानसभा सीट अस्तित्व में आई है। पहले यह इलाका रियासी सीट में ही आता था। 2008 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को हराकर भाजपा ने अपना कब्जा जमाया था। इसके बाद 2014 में भी भाजपा जीतने में सफल रही। बीते 16 सालों से भाजपा का ही वर्चस्व बना हुआ है। इसी दबदबे को बनाए रखने के लिए भाजपा ने बलदेव राज शर्मा पर दांव खेला है तो कांग्रेस ने भूपेंद्र जामवाल को मैदान में उतारकर मुकाबले को रोचक बना दिया ।
माता वैष्णो देवी के नाम से विधानसभा सीट बनवाने का श्रेय भाजपा को जाता है। 2016 से वह इसे विधानसभा क्षेत्र बनाने को लेकर अच्छी खासी मेहनत की थी और आखिरकार मेहनत रंग लाई। कटरा में बनने वाले विश्व स्तरीय आईएमएस यानी कि इंटर मॉडल स्टेशन, दिल्ली-अमृतसर-कटरा सिक्स लेन कॉरिडोर और केंद्र सरकार द्वारा स्वीकृत प्रसाद परियोजना जिसके तहत करोड़ों रुपये की लागत से कटरा के समग्र विकास की दुहाई लेकर भाजपा वोट मांग रही है। माना जा रहा है कि भाजपा के लिए यह सियासी मुफीद साबित हो सकता है।
अब जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण में बुधवार को 26 सीटों के लिए हुए मतदान में 56 प्रतिशत से अधिक मतदाताओं ने मताधिकार का प्रयोग किया। कई स्थानों पर उत्साह से भरे मतदाताओं की लंबी कतारें देखी गईं।इस दौरान सबसे अधिक वोटिंग हॉट सीट में शुमार वैष्णो देवी सीट पर हुई, जहां 79.95 प्रतिशत मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। नई सीट परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई है। भाजपा ने इस सीट को लेकर पूरी ताकत झोंक रखी थी और खुद प्रधानमंत्री मोदी इस सीट को लेकर प्रचार के लिए कटरा पहुंचे थे।
19 सितंबर को प्रधानमंत्री मोदी ने कटरा में करीब दो किलोमीटर लंबा रोड शो किया था। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि यहां (जम्मू-कश्मीर में) एक ऐसी सरकार की जरूरत है, जो हमारी आस्था का सम्मान करे और हमारी संस्कृति को बढ़ावा दे।प्रधानमंत्री मोदी की वैष्णो देवी मंदिर को लेकर आस्था किसी से छिपी नहीं है। 2014 में जब उन्हें भाजपा ने प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया तो उन्होंने लोकसभा अभियान की शुरुआत करने से पहले मंदिर में प्रार्थना की थी। इस बार, महत्व दोगुना हो गया है, क्योंकि 2022 के परिसीमन के बाद, अब श्री माता वैष्णो देवी विधानसभा सीट है, जो रियासी और उधमपुर विधानसभा क्षेत्रों से अलग हो गई है।
गौरतलब है कि भाजपा हाल के लोकसभा चुनावों में उत्तर प्रदेश की फैजाबाद (अयोध्या) सीट हार गई थी और फिर विधानसभा उपचुनाव में उत्तराखंड की बदरीनाथ की सीट भी नहीं जीत पाई थी। इन दो सीटों को लेकर विपक्ष ने भाजपा पर जमकर हमला बोला था। ऐसे में अब श्री माता वैष्णो देवी सीट भाजपा के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बन गई है और यही वजह है कि पार्टी ने प्रचार में यहां कोई कमी नहीं छोड़ी।
हालाकि, भाजपा की राह यहां आसान नहीं दिख रही है क्योंकि उसके उम्मीदवार बलदेव राज शर्मा, जो पूर्व में रियासी से विधायक रह चुके हैं, उन्हें यहां कई तरह से चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। उनके सामने कुल सात उम्मीदवार हैं जिसमें कांग्रेस से भूपेंद्र सिंह भी शामिल हैं।भाजपा के लिए चुनौती इसलिए भी है क्योंकि उसने इस सीट पर अपना उम्मीदवार बदला है। पहले इस सीट पर रोहित दुबे को उम्मीदवार बनाया गया था लेकिन बाद में उनकी जगह बलदेव शर्मा को टिकट दे दिया गया। इसके बाद रोहित दुबे के समर्थक नाराज हो गए और सड़कों पर उतरकर अपनी नाराजगी जाहिर की थी।
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, वैष्णो देवी मंदिर के पूर्व संरक्षक बारीदार भाजपा के लिए इस सीट पर सबसे बड़ा सिरदर्द साबित हो सकते हैं। पहले भाजपा का समर्थन करने वाले इस समुदाय ने इस बार अपने उम्मीदवार शाम सिंह को मैदान में उतारा है। यदि शाम सिंह को समुदाय से 14,000 वोट मिलते हैं, तो वह भाजपा को बड़ा नुकसान पहुंचा सकते हैं।
पीढ़ियों से वैष्णो देवी मंदिर में आरती करने वाले बारीदार, मंदिर में पूर्ण पूजा करने के अपने अधिकारों की बहाली और श्राइन बोर्ड में अपने परिवार के सदस्यों के लिए नौकरियों में आरक्षण की मांग कर रहे हैं। समुदाय के सदस्य अपनी समस्याओं का “स्थायी समाधान” नहीं होने के लिए भाजपा पर विश्वासघात करने का आरोप लगा रहे हैं।भाजपा के लिए सबसे बड़ी टेंशन यही मां वैष्णो देवी के पूर्व बारीदारों के हक की मांग है। 2014 के लोकसभा चुनावों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा उधमपुर में आयोजित रैली में बारिदरों को हक दिलवाने का वायदा किया था, जो अभी तक पूरा नहीं हुआ है। बारीदार मतदाता नतीजे को प्रभावित करने की ताकत रखते हैं। बारीदार माता वैष्णो देवी को अपनी कुल देवी मानते हैं और कहते हैं कि श्रीधर उन्हीं के वंशज थे। श्रीधर को ही माता ने दर्शन दिए और त्रिकुट पर्वत पर बसने की बात बताई थी। इसके बाद से बारीदार माता की पूजा करते हैं।
देखा जाय तो फैजाबाद (अयोध्या) लोकसभा सीट पर भाजपा की हार की सबसे बड़ी वजह शहर में विकास कार्यों के लिए बड़ी संख्या में तोड़े गए मकान और जमीनों का उचित मुआवजा नहीं मिलना था। माना जाता है कि अयोध्या के लोगों ने इसी के चलते भाजपा के खिलाफ वोट किए थे। ऐसी ही स्थिति श्री माता वैष्णो देवी विधानसभा सीट पर भी दिख रही है। बारीदारनाराज हैं और लंबे समय से अपने हक की मांग कर रहे हैं।
दरअसल, 1986 में 30 अगस्त को बारीदारों को गुफा से बाहर कर दिया गया और सारे अधिकार श्राइन बोर्ड को दे दिए थे। ऐसे में बारीदारों की मांग है कि गुफा में चढ़ावा का एक तिहाई हिस्सा बारीदारों को दिया जाए। इसके अलावा बारीदारों को श्राइन के हॉस्पिटल और कॉलेज में नौकरी दी जाए। प्रधानमंत्री मोदी ने बारीदारों को हक दिलाने की भरोसा दिया था जो कि पूरा नहीं हो सका है।
भाजपा के बलदेव शर्मा सामने कांग्रेस के भूपेंद्र सिंह भी मजबूत दावेदार हैं जो कटरा और वैष्णो देवी मंदिर के बीच ट्रैक पर काम करने वाले पोनीवालों और पिठुओं के संघ के अध्यक्ष रह चुके हैं। शर्मा को इस सीट पर लगभग 9,000 मुस्लिम मतदाताओं के समर्थन की उम्मीद है।पूर्व मंत्री जुगल किशोर, जो कांग्रेस छोड़कर गुलाम नबी आज़ाद के नेतृत्व वाली डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आज़ाद पार्टी में शामिल हो गए थे, वह निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं और उन्हें भी प्रचार अभियान के दौरान ठीक-ठीक समर्थन मिला था। ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि इस धार्मिक नगरी में जनता किसे अपना प्रतिनिधि चुनकर विधानसभा में भेजती है।
एक बात और श्री माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड द्वारा मां वैष्णो देवी के नए ताराकोट मार्ग पर बनाए जा रहे रोपवे केबल कार परियोजना को लेकर मतदाता नाराज हैं। उन्हें यह चिंता सता रही है कि उनका सारा व्यापार इस परियोजना को लेकर बुरी तरह से प्रभावित हो गया है। कांग्रेस इसे मुद्दा बनाने में जुटी है और माता वैष्णो देवी सीट पर बारीदारों को साधने की कोशिश में है। कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव में बारीदारों के मुद्दे के साथ ही केबल कार परियोजना का मुद्दा जोर-जोर से उठाया था।
माता वैष्णो देवी विधानसभा सीट पर कुल 74 हजार मतदाता हैं। इसमें से करीब 15 हजार बारीदार हैं। बारीदार संघर्ष समिति के अध्यक्ष श्याम सिंह माता वैष्णो देवी सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं। इसके चलते मुकाबला काफी रोचक हो गया है। बारीदार वोटों बिखराव होता है तो फिर भाजपा के लिए यह सीट जीतना आसान नहीं होगा लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने माता के दर पर माथा टेककर सियासी समीकरण साधने का दांव चल दिया है। ऐसे में देखना है कि भाजपा माता वैष्णो देवी सीट पर जीत दर्ज कर पाएगी?