हिन्दू धर्म के प्रथम पूजनीय देवता भगवान गणेश माने गये है और हर शुभ कार्य को करने से पहले उन्हीं की पूजा की जाती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान गणेश को गजमुख या गजानन के नाम से भी जाना जाता है, क्योकि उनका मुख गज यानि हाथी का है। कहा जाता है कि भगवान गणेश का यह स्वरूप बड़ा ही विलक्षण और मंगलकारी है। हालांकि भगवान गणेश का हमेशा से ही मुख गज का नहीं था। धार्मिक कथाओं के अनुसार भगवान गणेश का असली मस्तक कट जाने के बाद गजमुख लगाया गया था। ऐसा माना जाता है कि पूज्य भगवान गणेश का जन्म माउंटआबू में हुआ था और माता पार्वती ने अर्बुद पर्वत के इशान शिखर पर बैठकर पुत्र की कामना के लिए पुन्यंक नामक, व्रत किया था। एक पौराणिक मान्यता के मुताबिक स्कन्द पुराण के अर्बुद खंड के अनुसार गौरी शिखर पर्वत पर भगवान गणेश का जन्म हुआ था। गौरी शिखर यानि अर्बुद पर्वत और भगवान गणेश के जन्म स्थान पर बना मंदिर और उनकी निशानियां आज भी मौजूद हैं।
माउंटआबू के अर्बुद पर्वत सहित है अरावली पर्वत के सभी धर्म ग्रंथों में देवी देवताओं के निवास स्थान होने का उल्लेख है। स्कन्द पुराण के तीसरे अध्याय में अर्बुद खंड के अनुसार माउंटआबू के गौरी शिखर जिसे अब गुरु शिखर कहते है भगवान गणेश के जन्म होने के प्रमाण मिलते हैं।
करीब 200 साल पहले जाने माने संत रामदास ने भी आबू कल्प में लिखा है कि महाविनायक का जन्म गौरी शिखर पर पश्चिम दिशा में हुआ था। माउंटआबू में गोबर गणेश की के प्रतिमा दुनिया भर में मशहूर है।
गणेश की ये मूर्ति दुनिया भर में भगवान गणेश की इकलौती मूर्ति है जो गोबर से बनी हुई है। इस प्राचीन मूर्ति के बारे में ये मान्यता है कि यहां जो भी मांगा जाता है गणपति उसकी मुराद ज़रूर पूरी करते है।
भगवान गणपति पूरे अर्बुदांचल में विराजते है और जो भी भक्त उनसे जो भी वर मांगता है वो पूरी करते है। माउंटआबू में गणपति महाविनायक मंदिर के महंत नरसिंह दास महाराज के मुताबिक गौरी शिखर पुराणों में मां पार्वती के निवास स्थान के रूप में वर्णित है। उनके अनुसार ही प्रारंभ में इस स्थान का नाम अर्बुदांचल था।
माउंट आबू में महाविनायक तीर्थ होने का वर्णन भी अर्बुद खंड में आता है, इसके अनुसार यह 32 तीर्थो में पहला मुख्य तीर्थ है। स्कन्द पुराण में वर्णन है कि इस पर्वत पर गणेश का जन्म होने के कारण इसके दर्शन मात्र से पापो का नाश होता है और व्यक्ति वैकुंठ लोक को प्राप्त होता है। यही वजह है कि श्रद्धालुओं में इस जगह को लेकर गहरी आस्था है। माउंटआबू को अर्धकाशी भी कहा जाता है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक एक कथा यह भी है कि इसी अर्बुद पर्वत यानि अर्बुदारण्य पर भगवान गणेश का जन्म हुआ था। वास्थान जी तीर्थ वो पूरा इलाका है जहां भगवान शंकर अपनी पत्नी पार्वती और गणेश के साथ रहते थे। स्कंद पुराण के अर्बुद खंड में गणेश के प्रादुर्भाव की कथा इस प्रकार है। मां पार्वती ने भगवान शंकर से पुत्र प्राप्ति का वर मांगा। भगवान शंकर ने उन्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया। 33 करोड़ देवी देवताओं के साथ भगवान शंकर ने अर्बुदारण्य की परिक्रमा की तथा ऋषि मुनियों ने देवी-देवताओं के सहयोग से गोबर गणेश की प्रतिमा स्थापित की जो आज सिद्धिगणेश के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर को लंबोदर मंदिर, सिद्धिविनायक मंदिर, गोबर गणेश मंदिर या फिर सिद्धि गणेश मंदिर के नाम से जाना जाता है। भगवान शिव ने पूरे परिवार के साथ इस जगह पर वास किया इसलिए इसे वास्थान जी तीर्थ के नाम से जाना जाता है। गोबर गणेश की ये प्रतिमा आज भी भव्य रूप में विराजमान है। गोबर से बनी हुई भगवान गणेश की ये प्रतिमा पूरी दुनिया में इकलौती है। यह प्रतिमा 4,500 साल पुरानी मानी जाती है। गणेश की प्रतिमा यहां बालरुप में विराजमान है। भगवान के दर्शन के लिए भक्तो को 200 सीढ़ियों की चढ़ाई चढ़नी होती है। गणेश विघ्नकर्ता भी है लिहाजा उनके बारे में ये कहा जाता है कि इस मूर्ति के दर्शन और नमन मात्र से ही श्रद्धालु के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। वो भय के बंधनों से मुक्त होकर मोक्ष को प्राप्त होता है।