हरियाणा में कैसे जीती भाजपा ने हारी हुई बाजी*

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अभी हरियाणा और इससे पहले लोकसभा चुनाव में सही मायने में किसकी हार हुई ? इसका जवाब बीजेपी या कांग्रेस नहीं है बल्कि इसका जवाब है दोनों चुनाव में राजनीतिक विश्लेषकों की हार हुई है। लोकसभा चुनाव में जब भी टीवी चालू की तो सारे चैनल और चुनाव विश्लेषक चार सौ पार कर रहे थे और अभी हरियाणा में भी सारे एक्सपर्ट्स कांग्रेस को साठ से ज्यादा सीटें दे रहे थे लेकिन परिणाम दोनों जगह उल्टा रहा। एक बार संसद में अटल जी ने कहा था कि “भारतीय वोटर का मन पढ़ना सबसे मुश्किल काम है” और यह बात हमेशा सच साबित हुई है । तीन चार चुनाव छोड़ दें तो ज्यादातर चुनावों में चुनाव विश्लेषकों की बात गलत साबित हुई है,इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि भारत का वोटर आखिरी टाइम तक अपना मन और मत बदलता है। अमेरिका या यूरोपीय देशों के विपरीत यहां आज भी पार्टी से ज्यादा व्यक्तिगत आधार पर वोटिंग होती है,पार्टी अच्छी है  लेकिन कैंडिडेट गलत है तो कैंडिडेट हारेगा । सिर्फ 2019 का लोकसभा चुनाव ऐसा रहा जहां लोगों ने सिर्फ और सिर्फ मोदीजी के नाम पर वोट किया फिर कैंडिडेट चाहे कैसा भी हो इसीलिए कांग्रेस से ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे नेता भी हार गए थे । यही हाल 1984 के चुनाव में था जब इंदिरा जी की हत्या के बाद सिम्पैथी की लहर में सारे विपक्षी ध्वस्त हो गए थे । बहरहाल हरियाणा की बात करें तो बीजेपी की जीत का सबसे बड़ा कारण है उन गलतियों में सुधार करना जो उन्होंने लोकसभा चुनाव में की थीं । लोकसभा चुनाव  बेशक मोदीजी के नाम पर लड़ा गया लेकिन कई जगह लोकल कैंडिडेट्स से लोग नाराज थे । कहीं कहीं तो जनता ने खुलकर कैंडिडेट चेंज करने की मांग भी की थी । तब बीजेपी को उम्मीद थी कि चार सौ पार तो होगा ही फिर कैंडिडेट क्यों बदलें? लेकिन जब परिणाम आए तो वे ही लोग जीते जिनकी परफॉर्मेंस अच्छी थी या फिर सामने वाला कैंडिडेट उनसे कमतर था । मध्यप्रदेश की राजगढ़ सीट ऐसी ही थी जहां बीजेपी के कैंडिडेट लोगों की पहली पसंद नहीं थे लेकिन उनके सामने दिग्विजय सिंह थे जिनकी इमेज और भी ज्यादा खराब थी इसलिए वहां दिग्विजय सिंह की हार हुई।  शायद लोकसभा परिणामों से सबक लेते हुए  बीजेपी ने हरियाणा में सबसे पहला काम तो यही किया कि कमजोर कैंडिडेट को बदलने में देरी नहीं की,चालीस उम्मीदवार बदल दिए साथ ही पांच मंत्री और विधायकों के टिकिट भी काट दिए । दूसरा सुधार बीजेपी ने यह किया कि अपने सबसे विश्वस्त सहयोगी आरएसएस की उपेक्षा नहीं की,लोकसभा चुनाव में नड्डा जी ने आरएसएस के बारे में जो टिपण्णी की थी उसका असर गलत हुआ । संघी मतदाताओं ने इसको नकारात्मक समझा और संघ ने भी खुद को उपेक्षित समझा। मैसेज  यह भी  गया कि बीजेपी लीडरशिप को अभिमान हो गया है इसलिए चुनाव के बाद में मोहन भागवत जी ने बीजेपी के बड़े नेताओं को कहा भी था कि “खुद को भगवान न समझें” । खैर बाद में बीजेपी और आरएसएस दोनों में गलतफहमियां दूर हुईं और संघ ने हरियाणा में जमीनी स्तर पर बहुत मेहनत की और हारी हुई बाजी पलट दी । हरियाणा में तीसरा सुधार बीजेपी ने यह किया कि अपने मूल मुद्दे हिंदुत्व को फ्रंट पर लाकर चुनाव लड़ा और हिंदुत्व के सबसे बड़े चेहरे योगी आदित्यनाथ को अपना मुख्य प्रचारक बनाकर सबसे ज्यादा सभाएं करवाई और योगी जी ने भी हिंदुओं से एकजुट होकर वोट करने की अपील की । उन्होंने बड़ा नारा दिया “बटेंगे तो कटेंगे” इसका भी फायदा  हुआ। वैसे पिछले दस पंद्रह सालों का रिकॉर्ड देखें तो हिंदुस्तान में अब बीजेपी ज्यादातर लोगों की पहली पसंद बन चुकी है,मोदी जी की  छवि, बीजेपी शासित राज्यों की गुड गवर्नेंस और कांग्रेस का दिशाहीन नेतृत्व इसके तीन सबसे बड़े कारण हैं जिनकी वजह से बीजेपी अब वोटर्स के बीच मजबूती से स्थापित हो चुकी है, बस कहीं कहीं लोकल कैंडिडेट की कमजोर छवि का नुकसान पार्टी को उठाना पड़ता है ,यदि चुनाव से पहले परफॉर्मेंस और पब्लिक ओपिनियन के आधार पर टिकिट बांटेंगे तो बीजेपी अजेय भी हो सकती है वर्तमान परिणाम तो यही कहते हैं।
 

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