हरियाणा चुनाव परिणाम: भाजपा ने दलितों, जाटों के गढ़ में सेंध लगाकर जीत दर्ज की

चंडीगढ़,  हरियाणा में सत्ता विरोधी लहर को दरकिनार कर जीत की ‘हैट्रिक’ बनाने वाली भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) दलितों और जाटों के गढ़ में महत्वपूर्ण पैठ बनाने में कामयाब रही।

कांग्रेस एक दशक तक सत्ता से बाहर रहने के बाद वापसी के लिए दलित और जाट वोटों पर काफी हद तक निर्भर थी।

इतना ही नहीं, भाजपा अहीरवाल क्षेत्र और जीटी रोड क्षेत्र में भी अपनी सीटें बरकरार रखने में सफल रही, जिससे हरियाणा में कांग्रेस की वापसी की योजना ध्वस्त हो गई। हरियाणा में पांच अक्टूबर को मतदान हुआ और आठ अक्टूबर को नतीजे घोषित किए गए।

भाजपा ने 48 सीटों के साथ अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया जो मौजूदा चुनावों में कांग्रेस द्वारा जीती गई सीटों से 11 अधिक है, जबकि जननायक जनता पार्टी (जजपा) और आम आदमी पार्टी (आप) जैसी पार्टियों का सफाया हो गया और इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) को सिर्फ दो सीटें मिलीं।

एग्जिट पोल में कांग्रेस की आसान जीत के अनुमान को गलत साबित करते हुए भाजपा लगातार तीसरी बार हरियाणा में सरकार बनाने जा रही है।

हरियाणा की 17 अनुसूचित जाति (एससी) सीटों में से भाजपा ने आठ विधानसभा क्षेत्रों नीलोखेड़ी, पटौदी, खरखौदा, होडल, बावल, नरवाना, इसराना और बवानी खेड़ा पर जीत हासिल की। ​​होडल से कांग्रेस की प्रदेश इकाई के प्रमुख उदयभान, भाजपा के हरिंदर सिंह से हार गए।

निर्वाचन आयोग के आंकड़ों के अनुसार, कांग्रेस ने शेष नौ एससी सीटों सढौरा, शाहबाद, रतिया, उकलाना, कलानौर, कालांवाली, झज्जर, गुहला और मुलाना में जीत हासिल की। 2019 के विधानसभा चुनावों में, भाजपा ने पांच एससी सीटों पर जीत हासिल की थी, इस प्रकार 2024 के विधानसभा चुनावों में उसने अपने प्रदर्शन में सुधार किया।

दलित समुदाय को लुभाने के लिए उठाए गए कई कदमों के बीच नायब सिंह सैनी के नेतृत्व वाली सरकार ने हरियाणा अनुसूचित जाति आयोग की रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया, क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि राज्यों को अनुसूचित जातियों के भीतर उप-वर्गीकरण करने का संवैधानिक अधिकार है।

सरकारी नौकरियों में आरक्षण के उद्देश्य से एससी में धानक, बाजीगर, कबीरपंथी, बाल्मीकि, मजहबी और मजहबी सिख को वंचित अनुसूचित जातियों की श्रेणी में तथा चमार, राहगर, रैगड़, रविदासी, रामदासी और मोची को अन्य एससी जातियों में उप-वर्गीकृत करने के फैसले ने भी पार्टी के पक्ष में काम किया।

चुनावी भाषणों में भाजपा नेताओं ने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए उसे दलित विरोधी पार्टी बताया और पिछली कांग्रेस सरकार पर आरक्षण श्रेणी के लोगों को नौकरियों से वंचित करने का आरोप लगाया। अनुसूचित जाति की सीटों के अलावा भाजपा ने सोनीपत, रोहतक और जींद जिलों जैसे जाटों के गढ़ माने जाने वाले निर्वाचन क्षेत्रों में भी बड़ी संख्या में सीटें जीतीं।

जाटों के गढ़ में भाजपा ने पांच सीटें जीतीं। इनमें गोहाना, जींद, सफीदों, सोनीपत और उचाना कलां शामिल हैं। कांग्रेस ने बरोदा, बेरी, गढ़ी सांपला-किलोई, जुलाना, महम और रोहतक में जीत दर्ज की। बहादुरगढ़ और गन्नौर निर्वाचन क्षेत्रों में दो निर्दलीय उम्मीदवारों ने जीत हासिल की।

कांग्रेस काफी हद तक जाट वोटों की एकजुटता और दलित वोटों पर निर्भर थी। लेकिन भाजपा ने इन दोनों वोट बैंकों में महत्वपूर्ण बढ़त हासिल की। राज्य में जाट समुदाय की आबादी लगभग 25 प्रतिशत और दलित समुदाय की आबादी लगभग 20 प्रतिशत है।

दूसरी ओर, भाजपा ने गैर-जाट वोटों तक पहुंच बनाने पर भी ध्यान केंद्रित किया और नायब सिंह सैनी के नेतृत्व वाली सरकार के प्रदर्शन के इर्द-गिर्द अपना विमर्श गढ़ा। भाजपा नीत सरकार ने रोजगार के उद्देश्य से पिछड़े वर्गों के ‘क्रीमी लेयर’ की वार्षिक आय सीमा छह लाख रुपये से बढ़ाकर आठ लाख रुपये कर दी।

पिछले साढ़े नौ साल की सत्ता विरोधी लहर का मुकाबला करने और विभिन्न जातियों को लुभाने के लिए अपना ध्यान केंद्रित करने को लेकर मार्च के महीने में मनोहर लाल खट्टर की जगह ओबीसी चेहरे सैनी को लाना भाजपा का ‘मास्टरस्ट्रोक’ माना जा रहा है। राज्य की आबादी में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की हिस्सेदारी करीब 35 फीसदी है।

दक्षिण हरियाणा के अहीरवाल क्षेत्र, जिसे भाजपा का गढ़ माना जाता है, में पार्टी ने इस बार भी अपना अच्छा चुनावी प्रदर्शन बरकरार रखा तथा उसने नौ सीटें अटेली, बावल, गुड़गांव, कोसली, महेंद्रगढ़, नारौल, पटौदी, रेवाड़ी और सोहना में जीत दर्ज की।

दक्षिण हरियाणा से जीतने वालों में केंद्रीय मंत्री और गुड़गांव से सांसद राव इंद्रजीत सिंह की बेटी आरती सिंह राव भी शामिल हैं। कांग्रेस केवल नांगल चौधरी सीट पर जीत दर्ज कर सकी।

जीटी रोड क्षेत्र में भाजपा ने कई सीटें घरौंडा, इंद्री, इसराना, करनाल, लाडवा, नीलोखेड़ी, पानीपत सिटी, पानीपत ग्रामीण, राई और समालखा में जीत दर्ज की जबकि कांग्रेस को सिर्फ शाहबाद और थानेसर सीटें मिलीं। मुख्यमंत्री सैनी ने लाडवा सीट से जीत दर्ज की।

हरियाणा में भाजपा की शानदार जीत के पीछे एक और बड़ा कारण यह रहा कि इसने बेरोजगारी, किसानों की बदहाली और अग्निपथ योजना सहित प्रमुख मुद्दों पर कांग्रेस के हमले का सफलतापूर्वक मुकाबला किया। कांग्रेस द्वारा अग्निपथ योजना की आलोचना करने पर, भाजपा ने हरियाणा के अग्निवीरों को उनकी सेवा पूरी होने के बाद सरकारी नौकरी देने का आश्वासन दिया।

कृषक समुदाय को संतुष्ट करने के लिए, भाजपा ने हरियाणा में 24 फसलों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) देने के अपने चुनावी वादे को रेखांकित किया और कांग्रेस को विपक्ष शासित राज्यों हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक और तेलंगाना में कृषक समुदाय से संबंधित अपने किसी भी चुनावी वादे को लागू करने की चुनौती दी।

भाजपा ने भूपेंद्र सिंह हुड्डा के 10 साल के कार्यकाल के दौरान सरकारी नौकरियों में ‘खर्ची-पर्ची’ (भ्रष्टाचार और पक्षपात) को लेकर कांग्रेस पर तीखा हमला किया। भाजपा ने हरियाणा में पार्टी के 10 साल के कार्यकाल के दौरान योग्यता के आधार पर पारदर्शी तरीके से सरकारी नौकरियां देने का दावा किया। पार्टी ने युवाओं को बिना ‘खर्ची-पर्ची’ के दो लाख सरकारी नौकरियां देने का भी वादा किया।