महापर्व दीपावली

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कार्तिक मास प्रारंभ होते ही शुरू हो जाता है पर्वो-उत्सवों का क्रम, जिससे वातावरण में बहने लगती है उमंग व उल्लास की चंचल बयार। इस मास के कृण्णपक्ष की त्रयोदशी से शुक्लपक्ष की द्वितीया तक पंच पर्वो की श्रृंखला का महापर्व दीपावली मनाया जाता है।
ये पांच पर्व क्रमश: धनतेरस, रूप चौदस या नरक चौदस, महालक्ष्मी पूजन, गोवर्धन पूजा तथा भाईदूज है।
धनतेरस- धनतेरस के दिन से दीपोत्सव की शुरूआत होती है। इस दिन जो विधिपूर्वक यम की पूजा तथा दीपदान करता है वह मृत्यु के भय से मुक्त हो जाता है।
इस दिन धन्वंतरी पूजन तथा नए बर्तन व सोना-चांदी, रत्न आदि खरीदने का विशेष महत्व है। शाम को नदी के घाट, बावड़ी-कुएं पर तथा गौशाला व मंदिर में दिए जलाए जाते हैं।
रूप चौदस- इस दिन सूर्योदय से पहले उठकर तेल-उबटन से मालिश करके नहाने का विशेष महत्व है।
शाम के समय दीपक जलाए जाते हैं। दीपक अमावस्या तक जलाए जाते हैं। मान्यता है कि इन तीन दिनों तक दीपक जलाकर विधिपूर्वक यम की प्रार्थना करने से मृत्यु के बाद यम यातना नहीं भोगनी पड़ती।
दीपमालिका- अमावस्या का यह दिन महालक्ष्मी पूजन का होता है। यह सबसे महत्वपूर्ण पर्व है। ब्रह्म पुराण मेें दीपावली उत्सव के संबंध में कथन है कि इस दिन आधी रात को लक्ष्मी जी घर घर विचरण करती हैं। लक्ष्मी मैया को प्रसन्न करने के लिए सूर्यास्त के बाद विधिपूर्वक धूप-दीप, पुष्प, नैवेद्य सहित लक्ष्मीजी का पूजन करना चाहिए। घर आंगन को सजा-संवारकर दीपों की पंक्तियां लगानी चाहिए। आज के दिन व्यापारी लक्ष्मी पूजन के साथ अपने बही खाते बदलते  हैं। इस दिन आकाश दीप जलाने से पितर पथभ्रष्ट नहीं होते।
गोवर्धन पूजा- दीपावली के दूसरे दिन यानी कार्तिक मास के शुक्लपक्ष की प्रतिपदा को गोवर्धन व अन्नकूट पूजा होती है। इस दिन गोबर के गोवर्धन बनाकर उनकी पूजा की जाती है। कई मंदिरों में अन्नकूट होते हैं। लोग मिष्ठान व पकवान का भी पहाड़ बनाकर बीच में श्रीकृष्ण की मूर्ति रखकर पूजा करते  हैं। गाय-बैलों की विशेष पूजा भी की जाती है।
भाई दूज-पांच पर्वो की श्रृंखला का अंतिम पर्व है भाई दूज, इसे ‘यम द्वितीया’ भी कहते हैं। भाई-बहन के प्रेम को बढ़ाने वाले इस पर्व के दिन बहनें अपने भाईयों को भोजन कराकर तिलक करती हैं एवं अपने भाईयों के कल्याण व दीर्घायु की प्रार्थना करती हैं। भाई भी बहनों को आशीष देकर भेंट देते हैं।  इस दिन यम व यमुना के पूजन का विशेष महत्व है। कहा जाता है कि इस पर्व का प्रारंभ इन्हीं दोनों के प्रेम के कारण हुआ था। इस दिन चित्रगुप्त जी सहित लेखनी, दवात व पुस्तकों की पूजा भी होती है। इस प्रकार भाई-दूज के साथ विदा ले लेता है-पांच पर्वो की श्रृृंखला का यह महापर्व।