दीपों का पर्व दीपावली: सभी धर्मों की अलग-अलग मान्यताएं

सनातन परंपरा में अंधकार को दूर कर प्रकाश फैलाने वाले दीपावली महापर्व का बहुत ज्यादा महत्व माना गया है।अंधेरे पर प्रकाश की विजय से जुड़े इस पर्व को लेकर अलग-अलग धर्मों में अलग-मान्यताएं हैं।मसलन कोई इसे शुभ और लाभ के देवता भगवान श्री गणेश और धन की देवी मां लक्ष्मी की पूजा के लिए सबसे ज्यादा फलदायी मानता है तो कोई इसे अपने आराध्य के निर्वाण या फिर उसकी वापसी की खुशी में मनाता है। साहित्यकार संजय कुमार सुमन द्वारा लिखित इस आलेख में अलग अलग धर्मों के मान्यताओं पर चर्चा करेंगे।

 

दीपावली का पर्व हर साल कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाता है। इस दिन केवल दिया जलाने और पटाखे फोड़ने का ही प्रथा नहीं है, बल्कि दीपावली मनाने के पीछे कई सारे पौराणिक कथा और प्रथा है। जिससे आज भी बहुत सारे लोग अनजान हैं।

14 वर्ष वनवास पूर्ण कर अवध लौटे थे भगवान राम

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पौराणिक कथाओं के अनुसार कार्तिक मास की अमावस्या को भगवान राम चौदह वर्ष का वनवास पूर्ण करने के बाद अपनी जन्मभूमि अयोध्या वापस लौटे थे। जिसके उपलक्ष्य में हर साल कार्तिक मास की अमावस्या तिथि को दीपावली का पावन पर्व मनाया जाता है। इस दिन पूरी अयोध्या नगरी को दीप के प्रकाश से दुल्हन की तरह सजाया जाता है, कलाकृतियों और रंग रोगन से रामजी की नगरी को सजाया जाता है।

महाभारत काल से जुड़ी है दीपावली मनाने की परंपरा

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दीपावली मनाने की परंपरा महाभारत काल से भी जुड़ी है। हिंदू महाग्रंथ महाभारत के अनुसार इसी कार्तिक मास की अमावस्या को पांडव तेरह वर्ष का वनवास पूर्ण कर वापस लौटे थे। कौरवों ने शतरंज के खेल में शकुनि मामा के चाल की मदद से पांडवो का सब कुछ जीत लिया था। इसके साथ ही पांडवो को राज्य छोड़कर वापस जाना पड़ा था। इसी कार्तिक मास की अमावस्या तिथि को वह वापस लौटे थे। पांडवो के वापस लौटने की खुशी में लोगों ने दीप जलाकर खुशी मनाई थी। इसके बाद प्रत्येक वर्ष दीपावली का पावन पर्व मनाया जाता है।

मां लक्ष्मी का हुआ था जन्म

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धार्मिक ग्रंथो की मानें तो समुद्र मंथन के दौरान इस दिन धन की देवी मां लक्ष्मी का जन्म हुआ था। इसलिए इस दिन गणेश और लक्ष्मी जी की पूजा का विधान है। मान्यता है कि इस दिन मां लक्ष्मी और गणेश जी की पूजा अर्चना करने से सुख-समृद्धि, यश वैभव की प्राप्ति होती है और सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

श्रीकृष्ण जी ने नरकासुर का किया था वध

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जब नरकासुर नामक दैत्य ने अपने आतंक से तीनों लोको में हाहाकार मचा दिया था और सभी देवी देवता व ऋषि मुनि उसके अत्याचार से परेशान हो गए थे। तब श्रीकृष्ण जी ने पत्नी सत्यभामा को अपना सारथी बनाकर उसका वध किया था, क्योंकि उसे वरदान प्राप्त था कि उसकी मृत्यु किसी महिला के हाथो ही होगी। उसका वध कर भगवान श्रीकृष्ण ने 16000 महिलाओं को मुक्त कराया था तथा समाज में सम्मान दिलाने के लिए उनसे विवाह किया था। इस जीत की खुशी को दो दिन तक मनाया गया था। जिसे नरक चतुर्दशी यानि छोटी दीपावली और दीपावली के रूप में मनाया जाता है।

राजा विक्रमादित्य का हुआ था राजतिलक

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राजा विक्रमादित्य भारत के महान शासकों में से एक थे। अपनी बुद्धि, पराक्रम और जुनून से इन्होंने आर्यावर्त इतिहास में अपना नाम अमर किया था। मुगलों को धूल चटाने वाले राजा विक्रमादित्य अंतिम हिंदू राजा था। इतिहासकारों के मुताबिक इसी कार्तिक मास की अमावस्या तिथि को उनका राज तिलक हुआ था।

 

बौद्ध धर्म से जुड़े लोग क्यों मनाते हैं दिवाली

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दिवाली को लेकर बौद्ध धर्म से जुड़ी मान्यता है कि इसी दिन उनके आराध्य भगवान गौतम बुद्ध 18 साल बाद अपनी जन्मभूमि कपिलवस्तु वापस लौटे थे।मान्यता है कि उनके अनुयायियों ने उस दिन उनका दीये जलाकर स्वागत किया था।तभी से इस धर्म से जुड़े लोग इस दिन अपने घर में दीये जलाकर इस पावन पर्व को मनाते हैं।

दिवाली को लेकर जैन धर्म से जुड़ी मान्यता

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जैन धर्म से जुड़े लोगों का मानना है कि उनके 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर दिवाली के दिन ही बिहार के पावापुरी में निर्वाण की प्राप्ति हुई थी।इसी खुशी में इस धर्म से जुड़े लोग भगवान महावीर की पूजा दीया जलाकर करते हैं। हालांकि उनके साथ लोग भगवान गणेश, लक्ष्मी और मां सरस्वती की पूजा भी करते हैं।

सिखों के लिए दीपावली का पर्व है बेहद खास

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सिखों के लिए भी इस पर्व का विशेष महत्व है। सिखों के तीसरे गुरु अमर दास साहब ने इस दिन को विशेष दर्जा दिया था। वहीं इस दिन 1619 ई में मुगल शासक जहांगीर ने सिख धर्म के छठे गुरु हरगोविंद साहब को 52 राजाओं के साथ ग्वालियर किले से आजद किया था। कहा जाता है कि दीपावली के दिन 1577 ई मे पंजाब के अमृसर जिले में स्वर्ण मंदिर का शिलान्यास हुआ था।