यह समझ लेना कि त्यौहार तो आते जाते ही रहते है और प्राय: सभी का एक जैसा माहौल रहता है, यह विचार सम्यक नहीं माना जा सकता। त्यौहार समय एवं विधि के अनुसार मनाये जाते है। हमारा भारतवर्ष ही एक ऐसा देश है जहां त्यौहारों की भरमार रहती है। वैसे, अन्य देशों में भी त्यौहार मनाये जाते हैं। हर त्यौहार समय के महत्व को प्रदर्शित करता हुआ अपना एक विशेष स्थान रखता है। स्वत: एक ऐसा अवसर आता है तब इन पर्वों में विज्ञान की स्पष्ट झलक देखने को मिलती है।
त्यौहार की अनुकूलता का, समय आने पर तिथि या वार की आवृत्ति पर, मुक्त प्रेरणा-स्मृति की जागृति के लिये, प्रकृति का उपहार मानते हुए ये पर्व देवी-देवता या महापुरूष की शुभाकृति के समक्ष हमारे अपने सौभाग्यवर्धन में लाभदायक बन जाते है। त्यौहार मनाना प्राचीन लकीर पर चलना अथवा अन्ध परंपरा है ऐसा सोच इनके महत्व की अनभिज्ञता का द्योतक है। त्यौहार समाज में एकरसता, भाई चारा एवं सौहार्द बढ़ाने हेतु परस्पर मिलजुलकर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करते हैं। यह खुशी का एक ऐसा अवसर होता है कि जब हम उदासीनता का परित्याग करके सभी से गले मिलकर सालभर में भूल-चूक से हुई कटुता व भेदभाव से दूर होकर लौकिक जीवन को सुखमय बनाने की ओर अग्रसर करता है।
कार्तिक मास में दीपावली का त्यौहार धनतेरस (त्रयोदशी) से प्रारंभ होकर नरक चतुर्दशी, (रूप चौदस) दीपावली अमावस्या (लक्ष्मीपूजन) तथा द्वितीय पक्ष (शुक्ल पक्ष) की प्रतिपदा (प्रथमा) गोवर्धन पूजा एवं अन्नकूट प्रसादी का दिन, द्वितीया को भैयादूज (यम द्वितीया) तथा लेखनी पूजन के पश्चात त्यौहार का समापन माना जाता है। इन दिवसों में प्रत्येक दिन से धार्मिक आस्था जुड़ी हुई है। त्रयोदशी से अमावस्या तक तीन दिन सांयकाल में ब्रह्मा-विष्णु और महेश आदि देवताओं की पूजन कर दीपदान करने की परंपरा है। गुप्त गृहों, रसोई व निवास घर, देववृक्षों के तले, जलाशयों, गौशाला, बगीचा पार्क में तथा भवन की चहारदीवारी के सभी मुख्य स्थानों पर जलते दीप रखे जाते हैं और इससे हम आशा प्रकट करते हैं कि यमराज के पास जाने की विपत्ति से मुक्ति मिले तथा श्री महालक्ष्मी सदैव हमारे घर पर अक्षय निवास करती रहें।
धनतेरस के दिन यमराज के निमित्त घर के मुख्य दरवाजे पर सांयकाल दीपदान किया जाता है। इसके साथ यह धारणा है कि असामयिक मृत्यु कदापि न हो। आज के ही दिन भगवान धन्वतरी की जयंती मनायी जाती है। इस पवित्र दिन व्रत करके सूर्यवंशी राजा दिलीप को कामधेनु (गौ) की पुत्री नंदिनी की सेवा से पुत्र की प्राप्ति हुई थी। धनतेरस पर सौभाग्य वृद्धि हेतु घर के टूटे-फूटे बर्तनों के बदले नवीन बर्तन क्रय किया जाना अत्यंत शुभ माना जाता है। बर्तनों के साथ कुछ लोग चांदी का बर्तन या नवीन वस्तु चांदी की खरीद कर लाते है और दीपावली की रात्रि को लक्ष्मी पूजन के समय में उन्हें प्रथम पूजा के पात्र के रूप में रखा जाता है, तब बाद में घरेलू कार्य के उपयोग में लाया जाता है। इस उत्सव में चांदी, सोने, सिक्के आदि के साथ आधिभौतिक लक्ष्मी का अधिदैविक लक्ष्मी से संबंध स्वीकार करके पूजन किया जाता है। धनतेरस के सूर्योदय से पूर्व यमुना में स्नान करने का भी महात्म्य माना गया है।
दीपावली पंच दिवसीय त्यौहार है जिसका सामाजिक, आर्थिक एवं वैज्ञानिक महत्व है। यह ऐसा समय है जब हमारे कृषि प्रधान देश में फसल खलिहानों से घरों पर लायी जाती है। नवान्न की प्राप्ति में खरीफ के अन्न धान एवं दलहन (लक्ष्मी) के आने पर प्रसन्नता का होना स्वाभाविक है। इस त्यौहार पर अनेक प्रकार के भोज्य पदार्थों का बनाना और परस्पर वितरण करना सामाजिक दृष्टि से न केवल धार्मिक प्रदर्शन है अपितु समानता व प्रेम भाव उत्पन्न करने वाला है।
धर्म शास्त्री सनत्सुजात कृषि का कथन है कि प्रमादी और आसुरी संपत्ति वाले मनुष्य मृत्यु (यमराज) से पराजित हुये है परंतु अप्रमादी, दैवी सम्पदावाले महात्मा ब्रह्मा स्वरूप हो जाते हैं। प्रमाद से भिन्न यम को मृत्यु कहते है और हृदय से दृढ़ता पूर्वक पालन किये हुए ब्रह्मचर्य को ही अमृत मानते है। यम देवता पितृलोक में शासन करते हैं। वे पुण्य कर्म वालों के लिए सुखदायक और पाप कर्म वालों के लिए भयंकर है। आगे यह भी कहा है कि दीपावली के त्यौहार वाली त्रयोदशी शुभाचरण की देहरी है जो जीवन में बढऩे का मार्ग प्रशस्त करती है। हमें यह जानने का अवसर मिलता है कि पुण्य व पाप जो स्वर्ग-नरक के रूप में दो अस्थिर फल है उनका भोग करके मनुष्य जगत में जन्म लेता हुआ तदनुसार कर्मों में लग जाता है। फिर भी धर्म ही अति बलवान है। धर्माचरण कर्ता को समयानुसार अवश्य ही सिद्घि प्राप्त होती है। इस त्यौहार को मनाने से जीवन के सार्थक भाव का दर्शन होता है। लोक मे ऐश्वर्य रूपी लक्ष्मी सुख का घर मानी गयी है। उनका समुद्र मंथन से इसी दिन प्रादुर्भाव हुआ माना जाता है।