भारत 55 करोड़ से अधिक युवा आबादी के साथ आज दुनिया का सबसे युवा देश है। पाश्चात्य सभ्यता के प्रभाव से आज अधिकतर भारतीय युवा आबादी लगातार परंपरागत खाद्यान्न से अब विदेशों में अपनायें जाने वाले फास्ट फूड की ओर लगातार अग्रसर हो रही है। सच तो यह है कि रहन-सहन के साथ ही आज भारतीय युवाओं की खाद्य शैली में भी आमूलचूल परिवर्तन आए हैं। भागम-भाग और दौड़-धूप भरी इस जिंदगी में कामकाजी महिलाओं के साथ ही गृहणियों के पास भी आज इतना समय नहीं बचा है कि वे परंपरागत भारतीय खाद्य पदार्थों को अपनी रसोई का हिस्सा बनाएं। हालांकि ऐसा भी नहीं है कि भारतीय रसोईयों में परंपरागत खाद्य पदार्थ आज नहीं बनाए जाते हैं, लेकिन समय के साथ आज हम हमारे परंपरागत खाद्य पदार्थों से दूर होते चले जा रहे हैं और पाश्चात्य सभ्यता में अपनाएं जा रहे खाद्य पदार्थों पर हमारा ध्यान कहीं अधिक हो गया है।
आज दादी-नानी और हमारे बुजुर्गों द्वारा अपनाए जाने वाले व्यंजनों
खीर, चूरमा, हलवा, पुरी, जलेबी व विभिन्न पेय पदार्थों छाछ, लस्सी,दूध, दही पर हमारा ध्यान कम ही है। आज से बीस पच्चीस साल पहले घरों में ज्वार,बाजरा, मकई , रागी का खूब व भरपूर इस्तेमाल होता था,आज बहुत कम है। हम गन्ना नहीं खाते, गन्ने का जूस पीने को वरीयता देते हैं। ठीक इसी प्रकार से हम गुड़ या शक्कर या इसके व्यंजनों को भारतीय रसोईयों में पहले की तुलना में कम इस्तेमाल में ला रहे हैं और चीनी की खपत घरों में बढ़ने लगी है। सच तो यह है कि घरों में आज फास्ट फूड की खपत बढ़ने लगी है। कहना ग़लत नहीं होगा कि आज भारत में सभी आय वर्गों में फास्ट फूड की खपत बढ़ रही है और यह इस देश में गैर-संचारी रोगों (एनसीडी) की बढ़ती प्रवृत्ति में महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है। वैश्वीकरण, बढ़ते शहरीकरण, बढ़ती आय से सामाजिक, सांस्कृतिक परिवर्तन तो आए ही हैं, इससे हमारे घरों की रसोई विशेष तौर पर प्रभावित हुई है। कभी हमारे यहां खाद्य पदार्थों और व्यंजनों की एक समृद्ध विरासत थी, आज इस विरासत को पाश्चात्य संस्कृति लगातार छीन रही है। हम फास्ट फूड संस्कृति में रम और बस गए हैं।
कहना ग़लत नहीं होगा कि आज के समय में फास्ट फूड समाज के सभी वर्गों के आहार का एक अभिन्न और अति महत्वपूर्ण अंग बन गया है। स्कूल जाने वाले बच्चों में फास्ट फूड की अधिक खपत आज हो रही है। फास्ट फूड खाने वाली गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं के बच्चे मोटापे से ग्रस्त होने की अधिक संभावना रखते हैं, जैसा कि ये उच्च वसा और उच्च चीनी आहार होते हैं। इनमें कालेस्ट्राल, कैलोरी और नमक की मात्रा भी काफी उच्च होती है। बर्गर, पिज्जा, चिकन, नूडल्स, स्प्रिंग रोल, पाव भाजी, सैंडविच, टिकिया, हैमबर्गर, होटल डोग, डोनट्स, फ्रेंच फ्राइज़, मोमोज, पाश्ता मोटापे, हमारी स्मृति, भूख न लगना, पाचन संबंधी समस्याओं, अवसाद, अपर्याप्त विकास और वृद्धि समेत अनेक बीमारियों को जन्म दे रहे हैं।
दरअसल, फास्ट फूड वह होता है, जिसे हम किसी रेस्टोरेंट, ठेले या किसी दुकान विशेष से ऑर्डर करते हैं और हमारा यह ऑर्डर कुछ ही मिनट में हमें आसानी से कहीं भी उपलब्ध हो जाता है। वास्तव में इन खाद्य पदार्थों को इस तरह से डिजाइन किया जाता है, जो हमारे अवलोकन में हमें जल्द से जल्द तेजी से उपलब्ध हो जाए। आज के समय में दाल, चावल, रोटी, सब्ज़ी, खिचड़ी, सलाद, फल और दही या छाछ का पेय प्राचीन काल की तुलना में कम ही रसोई घरों का हिस्सा रहा है। आज ढ़ोकला, पोंगल, लिट्टी चोखा, धाम, बिरयानी,रूगरा, छेना पोडा, दाल बाटी और चूरमा, अप्पम, भुट्टे का कीस, बाजरा खिचड़ी को हम लगातार भूलते चले जा रहे हैं और शायद यही कारण है कि हम अनेक बीमारियों के शिकार आज हो रहे हैं। प्राचीन भारतीय शास्त्रों में ‘ अन्नं ब्रह्मम् ‘ का उल्लेख किया गया है जिसका अर्थ है भोजन ईश्वर है। परंपरागत रूप से भारत में भोजन को भगवान की प्रार्थना की तरह सम्मान दिया जाता है लेकिन आज हमारी जीवनशैली पूरी तरह से बदल गई प्रतीत होती है। कहना ग़लत नहीं होगा कि भारतीय पारंपरिक खाद्य पदार्थ न केवल शरीर की ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने पर जोर देते हैं, बल्कि वे हमारे समग्र स्वास्थ्य को और अधिक बेहतर बनाने के साथ ही बीमारियों को रोकने का लक्ष्य भी रखते हैं।
भारतीय पारंपरिक आहार जो मुख्य रूप से शाकाहारी होते हैं, उनमें मुख्य रूप से साबुत अनाज, दालें, मेवे, सब्जियाँ, फल, मसाले, जड़ी-बूटियाँ, डेयरी उत्पाद और किण्वित खाद्य पदार्थ शामिल हैं जिन्हें स्वयं ‘कार्यात्मक’ माना जा सकता है, क्यों कि इनमें विभिन्न पोषक तत्वों की क्षमता वाले कई फाइटोकेमिकल्स शामिल होते हैं। आज कई कारकों के कारण भारतीय आबादी की आहार संबंधी आदतों में बदलाव आया है, खासकर महानगरों में। हालांकि गांव भी इससे अछूते नहीं रहे हैं और आज गांवों में हमें फास्ट फूड स्टॉल आसानी से मिल जाएंगी। जानकारी देना चाहूंगा कि फास्ट फूड का इस्तेमाल करने से अल्पकालिक, दीर्घकालिक और शारीरिक तथा मानसिक प्रभाव पड़ते हैं और शायद यही वजह है कि आज पहले की तरह मनुष्य की औसत आयु में भी कमी आई है। पहले इंसान अस्सी से सौ बरस तक जिंदा रहता था लेकिन आज औसत आयु 60-65 वर्ष के आसपास ही रह गई है।
भारतीयों में आज फास्ट फूड की तलब बढ़ी है और यह हमारे स्वास्थ्य को गंभीर रूप से प्रभावित कर रहा है। प्रतिष्ठित पत्रिका डाऊन टू अर्थ में प्रकाशित एक रिपोर्ट यह बताती है कि फास्ट फूड बहुत ही घातक है और सालाना 1.61 करोड़ लोगों की मौत का कारण फास्ट फूड में इस्तेमाल होने वाले नमक की ओवरडोज है।आजकल पैकेटबंद फास्ट फूड खाने का चलन तेजी से बढा है। यह भी देखा गया है कि ज्यादातर लोग फास्ट फूड के पैकेट पर सोडियम की भ्रामक मात्रा देखे बिना ब्रांडेड कंपनियों के चिप्स-नमकीन, बर्गर-पिज्जा का उपभोग कर रहे हैं। इनमें मौजूद नमक की असंतुलित मात्रा, हमारी सेहत का संतुलन बिगाड़ रही है।
जनरल आफ क्लीनिकल हाइपरटेंशन में प्रकाशित अध्ययन के मुताबिक भारतीय प्रतिदिन औसतन 10 ग्राम नमक का सेवन कर रहे हैं, जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन की सिफारिशों के मुताबिक प्रत्येक स्वस्थ्य व्यक्ति को एक दिन में पांच ग्राम से ज्यादा नमक नहीं खाना चाहिए। जनरल आफ क्लीनिकल हाइपरटेंशन के मुताबिक पांच ग्राम से ज्यादा नमक खाने के कारण 1 करोड़ 65 लाख लोगों को हर वर्ष हृदय रोग हो जाता है। सच तो यह है कि जाने-अनजाने हम आज के समय में नमक की तय मात्रा से दोगुना सेवन कर रहे हैं। नमक ही नहीं, फास्ट फूड में तेज मसाले, हाई कालेस्ट्राल, हाई कार्बोहाइड्रेट हमारे स्वास्थ्य का गणित लगातार बिगाड़ रहे हैं।
यह बहुत ही हैरानीजनक है कि आज फास्ट फूड की आपूर्ति करने वाले तमाम बड़े ब्रांड भारत के छोटे शहरों से लेकर गांवों तक में अपनी पहुंच बना रहे हैं। हालांकि, यहां यह भी एक तथ्य है कि फास्ट फूड चेन भारत के फूड सर्विस मार्केट की अब भी पांच प्रतिशत से कम हैं, जबकि वैश्विक स्तर पर यह करीब 20 प्रतिशत हैं, लेकिन बावजूद इसके भारत को सचेतने की जरूरत इसलिए है क्योंकि भारतीय खाद्य शैली लगातार बदल रही है।