क्या 2025 तक टीबी मुक्त हो पाएगा राजस्थान?

अमरपाल सिंह वर्मा

पूरी दुनिया में अनेक बीमारियां चुनौती बनी हुई हैं। तमाम देश इन बीमारियों के खात्मे के लिए प्रयासरत हैं लेकिन विभिन्न कारणों से इन पर काबू पाना मुश्किल होता जा रहा है। ऐसी बीमारियों में मानव इतिहास की सबसे पुरानी बीमारी कही जाने वाली तपेदिक यानी टीबी भी है। भारत का सबसे बड़ा राज्य राजस्थान टीबी की बीमारी की चुनौती का सामना कर रहा है। हालांकि टीबी का इलाज उपलब्ध है, फिर भी  राज्य में अन्य सभी संक्रामक बीमारियों की तुलना में टीबी उन्मूलन के लिए खूब पसीना बहाना पड़ रहा है।

पूरे देश की भांति राजस्थान में भी टीबी की जड़ें बहुत पुरानी और गहरी हैं। विश्व के 26 प्रतिशत टीबी मरीज भारत में हैं और इनमें से छह फीसदी राजस्थान में हैं जिससे टीबी उन्मूलन लंबे समय से चुनौती बना हुआ है। सरकार ने इसके लिए व्यापक कदम उठाए हैं पर इस जानलेवा बीमारी के बारे मेंं आज भी जरूरी जागरूकता का अभाव, संक्रमण से बचने के तौर-तरीकों की जानकारी न होने और रोगियों के समुचित इलाज के प्रति समुदाय में व्याप्त भ्रांतियां, लापरवाही और अंध विश्वास टीबी उन्मूलन में बाधा बने हुए हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने वर्ष 2030 तक टीबी उन्मूलन का लक्ष्य रखा तो उससे भी आगे बढक़र भारत ने 2025 तक टीबी को खत्म करने का लक्ष्य तय कर लिया। केन्द्र सरकार के लक्ष्य के तहत राजस्थान में व्यापक स्तर पर काम आरंभ कर दिया गया लेकिन यहां टीबी के नए मामले कम होने के बजाय लगातार बढ़ते जा रहे हैं। आंकड़ों के मुताबिक राज्य में वर्ष 2015 में एक लाख 2032 मरीज पाए गए थे, जो वर्ष 2016 में बढक़र एक लाख 6756 हो गए। इसी प्रकार वर्ष 2017 में एक लाख 5953 मरीज पाए गए थे, जो वर्ष 2018 में बढक़र एक लाख 79 हजार 168 हो गए।  वर्ष 2019 में एक लाख 75 हजार 218 मरीज पाए गए थे, जो वर्ष 2020 में बढक़र एक लाख 37 हजार 343 हो गए। इसी प्रकार वर्ष 2021 में राज्य में एक लाख 49 हजार 225 मरीज पाए गए थे, जिनकी संख्या वर्ष 2023 में बढक़र एक लाख 69 हजार 522 हो गई है।

राज्य में ज्यादातर मामले फेफड़ों की टीबी के हैं लेकिन एमडीआर टीबी भी स्वास्थ्य के लिए बड़ा संकट बनी हुई है। यह टीबी का एक ऐसा प्रकार है, जिस पर दवाओं का कोई असर नहीं होता। राज्य में हर साल एमडीआर टीबी के करीब डेढ़ हजार रोगी सामने आ रहे हैं।  प्रदेश में प्रति एक लाख लोगों में से 209.3 लोग टीबी से जूझ रहे हैं। टीबी का सर्वाधिक प्रकोप राज्य के ग्रामीण एवं गरीब व वंचित वर्ग के लोगों को झेलना पड़ रहा है।वैसे तो राज्य का कोई जिला टीबी से अछूता नहीं है लेकिन      जयपुर, अजमेर, अलवर, बांसवाड़ा, भरतपुर, भीलवाड़ा, बीकानेर, डूंगरपुर, हनुमानगढ़, श्रीगंगानगर, जोधपुर, करौली, कोटा, नागौर, टोंक, उदयपुर और सीकर जिलों में सर्वाधिक मरीज सामने आ रहे हैं। आदिवासी बहुल बांसवाड़ा, डूंगरपुर जिलों में टीबी रोग चुनौती बना है क्योंकि वहां से सर्वाधिक पलायन होता है। पलायन के कारण चिन्हित रोगियों का उपचार नहीं हो रहा है। उदयपुर स्थित गीतांजलि मेडिकल कॉलेज के एक अध्ययन के अनुसार राज्य के दक्षिणी भाग में उदयपुर के पास खनन क्षेत्र के सिलिकोसिस रोगियों में टीबी की व्यापकता में वृद्धि देखी गई है। श्रीगंगानगर जिले में सूरतगढ़ थर्मल पावर स्टेशन के आसपास के कई गांवों में टीबी का प्रकोप बढ़ा है। राज्य के कई अन्य औद्योगिक और खनन क्षेत्रों में भी टीबी केस बढऩे की रिपोर्ट मीडिया में आई हैं।

 हालांकि राजस्थान में टीबी के उपचार की सफलता की दर बढ़ी है। इंडिया टीबी रिपोर्ट 2023 के अनुसार राज्य में सक्सेस रेट 84.7 प्रतिशत है लेकिन फिर भी टीबी से पीडि़त तीन प्रतिशत लोग प्रति वर्ष मौत के मुंह में चले जाते हैं। वर्ष 2021 में टीबी के कारण 4852 लोगों को जान से हाथ धोना पड़ा है। ये मौतेंं इलाज शुरू करने में देरी के कारण हो रही हैं। टीबी के मरीजों द्वारा इलाज बीच में छोड़ देना, अनेक पंजीकृत मरीजों का थोड़े समय बाद अता-पता नहीं चलना और इलाज नाकाम रहना भी टीबी बढऩे के कारण हैं। ताजा रिपोर्ट के अनुसार राजस्थान में 2.7 फीसदी लोग इलाज बीच में छोडक़र गायब हो जाते हैं, जिससे उनकी बीमारी का फॉलोअप करना ही संभव नहीं रहता। इलाज के अभाव में जहां ऐसे लोगों का मर्ज बढ़ता चला जा रहा है, वहीं वह संक्रमण फैलाने के भी कारण बन रहे हैं। यह बेहद चिंताजनक है क्योंकि टीबी का एक रोगी पन्द्रह लोगों को संक्रमित कर सकता है। इसके अलावा राज्य में 0.6 फीसदी लोगों का उपचार ही बेअसर हो रहा है।

राज्य में सरकार निक्षय पोषण योजना के तहत प्रत्येक रोगी के खाते में पांच सौ रुपये भेज रही है। महंगी दवाइयों एवं जांचों पर सरकार हर साल करोड़ों रुपये व्यय कर रही है लेकिन हर साल बड़ी संख्या में नए रोगी मिलना और टीबी से मौतें होना स्थिति की गंभीरता को दर्शाता है। ऐसे यहां सवाल उठता है कि क्या राजस्थान को 2025 तक टीबी मुक्त करने का लक्ष्य अर्जित किया जा सकेगा?

राजस्थान के चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग में 27 साल तक सेवाएं दे चुके भारतीय प्रशासनिक सेवा के पूर्व अधिकारी डॉ. एसपी सिंह कहते हैं कि डब्ल्यूएचओ, सरकार और विभिन्न एजेंसियों की सक्रियता से निश्चय ही टीबी के खात्मे के लिए प्रयासों में काफी तेजी आई है लेकिन फिर भी 2025 तक टीबी का खात्मा होना संभव नहीं है। भले ही यह जांच का दायरा बढ़ाने के कारण है लेकिन राजस्थान में जिस प्रकार साल-दर-साल टीबी के मरीज बढ़ रहे हैं, उससे तय है टीबी के खात्मे में अभी समय लगेगा। जब तक मरीजों की संख्या में कमी नहीं आएगी, तब तक टीबी खत्म होने की उम्मीद नहीं की जा सकती। अगर समन्वित तरीके से भरसक प्रयास किए जाएं तो टीबी उन्मूलन में तीन से पांच साल तो और लगेंगे।

वर्ष 2001 में विश्व स्वास्थ्य संगठन के रिवाइज्ड नैशनल ट्यूबर क्लोसिस कंट्रोल प्रोग्राम (आरएनटीसीपी) में कंसलटेंट के रूप में चयनित हो चुके डॉ. सिंह कहते हैं कि जरूरी संसाधनों की कमी, ग्रामीण क्षेत्र में खराब स्वास्थ्य ढांचा, गरीबी, पोषण की कमी, अंध विश्वास ऐसे कारण हैं, जो टीबी पर विजयी प्राप्त नहीं होने दे रहे। अतिरिक्त प्रयासों से ही टीबी का अंतिम अध्याय लिखा जा सकता है।

उधर, राज्य सरकार का दावा है कि प्रदेश को टीबी मुक्त करने के लिए व्यापक काम किया जा रहा है। गांवों को टीबी मुक्त करने और ग्राम पंचायत स्तर तक रोगियों को चिन्हित कर उपचार करने के लिए ‘टीबी मुक्त ग्राम पंचायत अभियान‘ चलाया जा रहा है। राजस्थान में गत वर्ष राज्य की ग्राम पंचायतों को टीबी मुक्त करने के लिए 7 हजार ग्राम पंचायतों में ‘टीबी मुक्त ग्राम पंचायत अभियान‘ का दूसरा चरण शुरू किया गया। इस वर्ष 9328 पंचायतों में यह अभियान चलाया जाएगा। अगले वर्ष शेष सभी पंचायतों में यह अभियान चलेगा। वर्ष 2022 में टीबी उन्मूलन की दिशा में उल्लेखनीय कार्य के लिए आठ जिलों को सब नैशनल सर्टिफिकेट ऑफ टीबी एलिमिनेशन अवार्ड प्रदान कर सम्मानित किया गया है। राज्य की 29 ग्राम पंचायतों को टीबी मुक्त  घोषित किया गया है। टीबी रोगियों की पहचान करने, बेहतर इलाज देने और उनकी वित्तीय सहायता करने के मामले में राजस्थान गत वर्ष देश भर में चौथे नंबर पर आ पहुंचा है। संक्रमित मरीजों की जांच, दवा व जांच इत्यादि पर होने वाले खर्च और छह साल तक की उम्र के छोटे बच्चों में टीबी प्रिवेन्टिव थैरेपी (टीपीटी) जैसे 9 इंडेक्स में प्रदेश ने उल्लेखनीय कार्य किया है लेकिन वर्ष 2025 तक राज्य को टीबी मुक्त करने का लक्ष्य अभी काफी दूर ही नजर आ रहा है।

कार्यवाहक स्टेट नोडल अधिकारी (टीबी) डॉ. इन्द्रजीत सिंह कहते हैं कि राज्य में मॉलिक्यूलर टेस्ट की सुविधा को हम सीएचसी तक पहुंचा रहे हैं। इससे सही जांच हो रही है और असामयिक मृत्यु का खतरा टल रहा है। हम प्रदेश में ये टेस्टी तेजी से बढ़ा रहे हैं। वह बताते हैं कि राज्य में टीबी केस इसलिए ज्यादा रिपोर्ट हो रहे हैं क्योंकि राज्य में टीबी रोगियों की सूचनाएं दर्ज करने में प्रगति हुई है। निजी स्वास्थ्य प्रदाताओं को बड़े पैमाने पर मुहिम से जोडक़र सक्रिय टीबी मामलों का पता लगाया जा रहा है।

राजस्थान के वर्ष 2025 तक टीबी मुक्त होने के सवाल पर डॉ. सिंह ने कहा कि हम राज्य में टीबी से किसी की मौत न होने देने, संभावित रोगियों का ध्यान रखने और सुचारू इलाज की  कोशिश कर रहे हैं। इसी से टीबी मुक्त राजस्थान का सपना साकार होगा। जरूरत के अनुसार वर्ष 2025 तक टीबी मुक्त के लक्ष्य को सरकार एक-दो साल आगे बढ़ा सकती है।

डॉ. एसपी सिंह कहते हैं कि टीबी के खात्मे के लिए व्यापक स्तर पर काम करने की जरूरत है। एक ओर जहां टीबी मुक्त राजस्थान के लिए जन आंदोलन के रूप में काम करना होगा, वहीं टीबी संक्रमितों के सम्पर्क में आने वाले व्यक्तियों का पता लगाने और रोग की रोकथाम के लिए उपायों को लागू करने में सफलता को सुनिश्चित करने के लिए समन्वित प्रभावी प्रयास करने होंगे, अन्यथा न केवल राजस्थान में टीबी उन्मूलन के प्रयासों को धक्का लगेगा, बल्कि भारत को टीबी मुक्त करने के सपने के पूरा होने पर भी प्रश्नचिन्ह लग जाएगा।

 (लेखक ने यह आलेख रीच मीडिया फेलोशिप के तहत लिखा है।)