अदाणी को जिस कॉलेज ने नहीं दिया था दाखिला, उसी ने व्याख्यान के लिए बुलाया

नयी दिल्ली, छह सितंबर (भाषा) देश के जाने-माने उद्योगपति गौतम अदाणी ने 1970 के दशक में शिक्षा के लिए मुंबई के एक कॉलेज में पढ़ने के लिए आवेदन किया था, लेकिन कॉलेज ने उनके आवेदन को अस्वीकार कर दिया। इसके बाद उन्होंने आगे की पढ़ाई पूरी करने की बजाय कारोबार का रुख किया और लगभग साढ़े चार दशक में 220 अरब डॉलर का साम्राज्य खड़ा किया।

‘शिक्षक दिवस’ पर उसी कॉलेज में अदाणी को छात्रों को व्याख्यान देने के लिए बुलाया।

जय हिंद कॉलेज के पूर्व छात्रों के संघ के अध्यक्ष विक्रम नानकानी ने भारत के सबसे धनाढ्य व्यक्तियों में शामिल अदाणी का परिचय देते हुए कहा कि वह 16 साल की उम्र में मुंबई चले गए थे और हीरे छंटाई का काम करने लगे थे। उन्होंने 1977 या 1978 में शहर के जय हिंद कॉलेज में प्रवेश के लिए आवेदन किया था, लेकिन उनके आवेदन को खारिज कर दिया गया।

उन्होंने जय हिंद कॉलेज में इसलिए आवेदन किया था क्योंकि उनके बड़े भाई विनोद उसी कॉलेज में पढ़ते थे।

ननकानी ने गौतम अदाणी को ‘पूर्व छात्र’ का दर्जा देते हुए कहा, ‘‘ सौभाग्य से या दुर्भाग्य से, कॉलेज ने उनके आवेदन को स्वीकार नहीं किया और उन्होंने अपना काम करना शुरू कर दिया और एक वैकल्पिक करियर अपनाया।’’

उन्होंने करीब दो साल तक हीरा छांटने का काम किया। उसके बाद पैकेजिंग कारखाना चलाने के लिए अपने गृह राज्य गुजरात लौट गए। उस कारखाने को उनके भाई चलाते थे।

अदाणी ने 1998 में जिंसों में व्यापार करने वाली अपनी कंपनी शुरू करने के बाद कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। अगले ढाई दशक में, उनकी कंपनियों ने बंदरगाह, खदान, बुनियादी ढांचा, बिजली, सिटी गैस, नवीकरणीय ऊर्जा, सीमेंट, रियल एस्टेट, डेटा सेंटर और मीडिया जैसे क्षेत्रों में कदम रखा।

आज अदाणी की कंपनियां विभिन्न कारोबार से जुड़ी हैं। बुनियादी ढांचा क्षेत्र की उनकी कंपनी देश में 13 बंदरगाहों और सात हवाई अड्डों का भी संचालन करती है। आज उनका समूह बिजली के क्षेत्र में भी निजी क्षेत्र की सबसे बड़ी इकाई है। इतना ही नहीं, उनकी कंपनी सबसे बड़ी नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादक है, देश की दूसरी सबसे बड़ी सीमेंट कंपनी चलाती है, एक्सप्रेसवे का निर्माण कर रही है और एशिया की सबसे बड़ी झुग्गी-बस्ती का पुनर्विकास कर रही है। कुछ लोगों ने इसे भारत की नई पीढ़ी के उद्यमियों में सबसे आक्रामक बताया है।

‘ब्रेकिंग बाउंड्रीज़: द पावर ऑफ पैशन एंड अनकन्वेंशनल पाथ्स टू सक्सेस’ विषय पर व्याख्यान देते हुए अदाणी (62) ने कहा कि वह केवल 16 वर्ष के थे जब उन्होंने अपनी पहली सीमा लांघने का फैसला किया।

उन्होंने कहा, ‘‘ इसके लिए उन्होंने पढ़ाई-लिखाई छोड़ मुंबई में एक अनजाने से भविष्य की ओर कदम बढ़ाया। लोग अब भी मुझसे पूछते हैं, आप मुंबई क्यों चले गए? आपने अपनी शिक्षा पूरी क्यों नहीं की?’’

अदाणी ने कहा, ‘‘इसका उत्तर सपने देखने वाले हर युवा के दिल में है जो सीमाओं को बाधाओं के रूप में नहीं बल्कि चुनौतियों के रूप में देखता है जो उसके साहस की परीक्षा लेती हैं।’’

उन्होंने कहा, ‘‘मुझे यह जानना था कि क्या मुझमें हमारे देश के सबसे महत्वपूर्ण शहर में अपना जीवन जीने का साहस है।’’

कारोबार के लिए मुंबई उनका प्रशिक्षण स्थल था क्योंकि उन्होंने हीरों की छंटाई और व्यापार करना वहीं सीखा था।

अदाणी ने कहा, ‘‘कारोबार करने का क्षेत्र एक अच्छा शिक्षक बनाता है। मैंने बहुत पहले ही सीख लिया था कि एक उद्यमी अपने सामने मौजूद विकल्पों का अत्यधिक मूल्यांकन करके कभी भी स्थिर नहीं रह सकता। यह मुंबई ही है जिसने मुझे सिखाया कि बड़ा सोचने के लिए। आपको पहले अपनी सीमाओं से परे सपने देखने का साहस करना होगा।’’

अदाणी ने 1980 के दशक में संघर्षरत लघु उद्योगों को आपूर्ति के वास्ते पॉलिमर आयात करने के लिए एक व्यापारिक संगठन का गठन किया। उन्होंने कहा, ‘‘जब मैं 23 साल का हुआ, तो मेरा कारोबारी उद्यम अच्छा कर रहा था।’’

उन्होंने 1991 के आर्थिक उदारीकरण के बाद पॉलिमर, धातु, कपड़ा और कृषि-उत्पादों में काम करने वाले एक वैश्विक कारोबारी घराने की स्थापना की। उस समय वह सिर्फ 29 साल के थे।

अदाणी ने कहा, ‘‘दो साल के भीतर, हम देश में सबसे बड़ा वैश्विक कारोबारी घराना बन गये। तब मुझे गति और पैमाने दोनों का संयुक्त मूल्य समझ में आया।’’

अदाणी ने कहा, ‘‘इसके बाद 1994 में हमने फैसला किया कि यह सूचीबद्ध होने का समय है और अदाणी एक्सपोर्ट्स आईपीओ (आरंभिक सार्वजनिक निर्गम) लेकर आई। इसे अब अदाणी एंटरप्राइजेज के नाम से जाना जाता है। आईपीओ लाने का निर्णय सफल रहा और इससे मुझे सार्वजनिक बाजारों का महत्व समझ में आया।’’

उन्हें एहसास हुआ कि आगे की सीमाओं को तोड़ने के लिए, उन्हें सबसे पहले अपनी यथास्थिति को चुनौती देकर शुरुआत करनी होगी और एक ठोस आधार प्रदान करने के लिए परिसंपत्तियों में निवेश करना होगा।

अदाणी ने 1990 के दशक के मध्य में, वैश्विक जिंस व्यापारी कारगिल ने उनसे गुजरात के कच्छ क्षेत्र से नमक के निर्माण और स्रोत के लिए साझेदारी के लिए संपर्क किया था।

उन्होंने कहा, ‘‘हालांकि, साझेदारी सफल नहीं हो पाई, लेकिन हमारे पास लगभग 40,000 एकड़ दलदली भूमि और नमक के निर्यात के लिए मुंदड़ा (गुजरात में) में निजी उपयोग को लेकर जेट्टी (घाट) बनाने की मंजूरी रह गई।’’

जिसे अन्य लोग दलदली बंजर भूमि के रूप में देखते थे, उसे उन्होंने कायाकल्प का इंतजार कर रहे एक बड़े क्षेत्र के रूप में देखा। वह क्षेत्र अब भारत का सबसे बड़ा बंदरगाह है।

उन्होंने कहा, ‘‘मुंदड़ा में आज भारत के सबसे बड़े बंदरगाह, सबसे बड़े औद्योगिक विशेष आर्थिक क्षेत्र, सबसे बड़े कंटेनर टर्मिनल, सबसे बड़े तापीय बिजली संयंत्र, सबसे बड़ी सौर विनिर्माण सुविधा केंद्र, सबसे बड़े तांबा संयंत्र और सबसे बड़ी खाद्य तेल रिफाइनरी है। इतना ही नहीं, मुंदड़ा अंत में जो बनेगा, हम उसका केवल 10 प्रतिशत ही उपयोग कर रहे हैं।’’

अदाणी ने कहा कि अब वह कच्छ में दुनिया का सबसे बड़ा नवीकरणीय ऊर्जा पार्क बना रहे हैं और मुंबई में धारावी झुग्गी-बस्ती का पुनर्विकास कर रहे हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘हालांकि, हमने हवाई अड्डों, बंदरगाहों, लॉजिस्टिक, औद्योगिक पार्कों और ऊर्जा में भारत के बुनियादी ढांचे को फिर से परिभाषित करने में मदद की है, लेकिन यह जीत नहीं है जो हमें परिभाषित करती है। यह चुनौतियों का सामना करने और उन पर काबू पाने की मानसिकता है जिसने अदाणी समूह की यात्रा को खूबसूरत आकार दिया है।’’