भारतीय संस्कृति का शुभ व पवित्र फल श्रीफल

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भारतीय संस्कृति में श्रीफल अर्थात नारियल को शुभ और सबसे पवित्र फल माना गया है। सामाजिक, धार्मिक अनुष्ठानों, किसी भी प्रकार के पूजा और अन्य कर्मकांडों में श्रीफल का होना अनिवार्य माना जाता है। श्रीफल अर्थात नारियल के बिना पूजा अधूरी मानी जाती है। यही कारण है कि भारतीय परपंरा में शादी, त्योहार और किसी भी महत्वपूर्ण पूजा अथवा पूजन सामग्री में नारियल का अपना एक अलग व विशिष्ट महत्व है। नारियल को फोड़कर पूजा में चढ़ाने की परंपरा है। इसे पूजा के बाद प्रसाद के रूप में वितरित भी किया जाता है। किसी के स्वागत में भी भेंटस्वरूप श्रीफल दिया जाता है। ज्योतिष के कई उपायों में भी नारियल का उपयोग किया जाता है। समुद्र के किनारे अथवा नमकीन स्थानों पर उगने वाले नारियल को संस्कृत में नालिकेरः कहते हैं। कहा गया है- नल्यते केन वायुना ईर्यते इति नालिकेर:। वर्णभ्रंश के कारण सामान्य भाषा में यह नारिकेल बन गया। इससे बंगला शब्द नारिकेल तथा हिन्दी शब्द नारियल निकले हैं। 82 फीट (25 मीटर) तक ऊंचे हो सकने वाले नारियल का बोटनिकल नाम-कोकोस न्यूसीफेरा है।

 

मान्यता है कि श्रीफल अन्य फलों की भांति पृथ्वी पर नहीं आया, बल्कि इसे स्वर्ग से धरती पर लाया गया। मान्यतानुसार नारियल का प्रादुर्भाव धरती से नहीं बल्कि स्वर्ग से होने के कारण इसे स्वर्गलोक का फल भी कहा जाता है। नारियल के बाहरी आवरण को घमण्ड का प्रतीक और आतंरिक आवरण को पवित्रता और शांति का प्रतीक माना जाता है। नारियल को फोड़ने का अर्थ है कि अपने अहंकार और स्वयं को भगवान के समक्ष समर्पित कर देना। मान्यता है कि ऐसा करने से अज्ञानता और अहंकार का नाश होता है। इससे आत्मा शुद्ध और पवित्र हो जाती है। श्रीफल की उत्पत्ति से संबंधित दो पौराणिक कथाएं हैं। एक पौराणिक कथा के अनुसार इस पृथ्वी पर भगवान विष्णु का अवतरण होने पर वह बैकुंठ लोक से तीन चीजें लेकर आए, लक्ष्मी, कामधेनु और श्रीफल अर्थात नारियल। श्रीफल को ब्रह्मा, विष्णु और महेश का प्रिय फल कहा जाता है। इसीलिए नारियल के वृक्ष को पुराणों में कल्पवृक्ष के नाम से भी संबोधित किया गया है। इस वृक्ष पर तीनों देव अर्थात ब्रह्मा, विष्णु और महेश वास करते हैं। नारियल में उनके वास का प्रमाण फल में तीन बीज रूपी संकेत प्रत्यक्षतः दिखाई देना ही तो है। श्रीफल को तोड़ने के बाद इन बीजों को खाया नहीं जाता है, बल्कि भगवान को अर्पित कर दिया जाता है अथवा हवन में आहुति दे दी जाती है। श्रीफल को बलि के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता है। मान्यता है कि समाज में प्रचलित  पूजनोपश्चात पशुओं की बलि देने के प्रचलन को रोकने के लिए भगवान विष्णु श्रीफल लेकर इस धरती पर अवतरित हुए। इसका उद्देश्य जीवहत्या को रोकना था। इसके बाद से नारियल की बलि देने का प्रचलन शुरु हुआ।

नारियल की दूसरी पौराणिक कथा के अनुसार मर्यादा पुरुषोत्तम राम के वशंज राजा पृथु के पुत्र सत्यव्रत परमप्रतापी राजा थे। राजा सत्यव्रत ने अपने जीवनकाल के अंतिम चरण में राजपाठ त्याग दिया था और सम्पूर्ण राजपाठ अपने पुत्र राजा हरिश्चंद्र को सौंप दिया था। सत्यव्रत अपने जीवन के अंतिम समय में स्वर्ग लोक जाने की इच्छा रखते थे, लेकिन उन्हें स्वर्ग तक जाने का मार्ग ज्ञात नहीं था। इसलिए राजा सत्यव्रत ऋषि विश्वामित्र के आश्रम पहुंचे लेकिन ऋषि के उस समय तपस्या पर जाने के कारण वे वहां पर उपस्थित नहीं थे। विश्वामित्र के तपस्या करने के लिए जाने की बात जानकर राजा सत्यव्रत विश्वामित्र की प्रतीक्षा करने के लिए उन्हीं के आश्रम में ठहरकर प्रतीक्षा करने लगे। राजा ने विश्वामित्र के आश्रम में रहते हुए वहां उनके पशुओं की सेवा की, भूखों को भोजन कराया और भी अनेक परोपकारी कार्य किए।

जब तक विश्वामित्र तपस्या करके लौटे तब तक सत्यव्रत की उदारता और दयालु स्वभाव के सभी लोग कायल हो चुके थे। जब विश्वामित्र तपस्या पूर्ण करके वापस आए तो उन्हें ज्ञात हुआ कि उनकी अनुपस्थिति में राजा सत्यव्रत ने उनके पशुओं की सेवा की। यह सुनकर विश्वामित्र अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्होंने सत्यव्रत से कहा कि आपने राजा होने के बावजूद आम लोगों की तरह सेवा की यह देखकर मैं काफी प्रसन्न हुआ। मैं आपको मनचाहा वरदान देना चाहता हूं। मुनि की बात सुनकर सत्यव्रत ने कहा कि मैं धरती पर अपने सभी कर्म और धर्म पूरे कर चुका हूं। मुझे अब स्वर्ग जाने की इच्छा है और आप मेरे स्वर्ग जाने का मार्ग प्रशस्त करें। मुनि ने राजा की इच्छा को पूर्ण किया और धरती से स्वर्ग तक जाने वाली सीढ़ी का रास्ता खोल दिया। सत्यव्रत ने सीढ़ियां देखी और मुनि से आशीर्वाद लेकर चढ़ना शुरु कर दिया। यह देखकर इंद्र और अन्य देवता काफी परेशान हो गए। उन्होंने विश्वामित्र से मदद मांगी लेकिन मुनि अपने वचन से बंधे हुए थे जिसके कारण वे कुछ न कर सके। अंत में इंद्र ने ही स्वर्ग की सीढ़ियों पर चढ़ते राजा सत्यव्रत को धक्का दे दिया और वह सीधे धरती पर आ गिरे। राजा सत्यव्रत गिरते ही ऋषि विश्वामित्र के पास पहुंचे। राजा ने कहा कि देवराज इंद्र नहीं चाहते हैं कि कोई मनुष्य स्वर्ग में प्रवेश करे, इसलिए उन्होंने मुझे धक्का दे दिया। अब आप ही बताएं कि आपके वचन का पालन कैसे होगा?

विश्वामित्र भलीभांति जानते थे कि जब तक इंद्र स्वर्गलोक में हैं तब तक वह सत्यव्रत को स्वर्ग नहीं आने देंगे। विश्वामित्र ने देवताओं को बहुत समझाने की कोशिश की लेकिन वे नहीं माने। अंत में विश्वामित्र ने दूसरा स्वर्ग बनाने का निर्णय लिया। दूसरे स्वर्ग को बनाने के लिए मुनि ने एक मजबूत खंभे का निर्माण किया। इस नींव पर दूसरे स्वर्गलोक का निर्माण हुआ जिसका नाम त्रिशंकु कहलाया। यह स्वर्ग से विपरीत दिशा में स्थित था और इसके राजा सत्यव्रत को बनाया गया। जिस खंभे पर दूसरे स्वर्गलोक की नींव रखी गई वह अनंतकाल के बाद नारियल का पेड़ बना। इस प्रकार जो लोग स्वर्ग तक नहीं पहुंच पाए, उन्हें स्वर्ग का फल नारियल के रूप में मिला।

 

नारियल के उत्पादन में संसार में भारत का दूसरा स्थान है। भारत में लगभग 16 लाख एकड़ भूमि में नारियल उपजता है। उत्पादन के प्रमुख प्रदेश केरल, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, मैसूर, मद्रास और आंध्र हैं। पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, उड़ीसा, असम, अरब सागर, लक्षदीव (लक्कादीव) और बंगाल की खाड़ी के अंडमान एवं निकोबार द्वीपों में भी नारियल उपजता है। भारत के अतिरिक्त लंका, फिलीपाइन्स, इंडोनीशिया, मलेशिया और दक्षिण सागर के द्वीपों, अमरीका के उष्णकटिबंधीय प्रदेशों और प्रशांत महासागर के उष्ण द्वीपों में नारियल प्रचुरता से उपजता है। नारियल एक बेहद उपयोगी फल है। नारियल देर से पचने वाला, मूत्राशय शोधक, ग्राही, पुष्टिकारक, बलवर्धक, रक्तविकार नाशक, दाहशामक तथा वात-पित्त नाशक है। नारियल के पत्तों का उपयोग छाते के रूप में भी किया जाता है।

नारियल की तासीर ठंडी होती है। नारियल का पानी हल्का, प्यास बुझाने वाला, अग्निप्रदीपक, वीर्यवर्धक तथा मूत्र संस्थान के लिए बहुत उपयोगी होता है। नारियल न केवल हमारे भोजन को स्वादिष्ट बनाता है, बल्कि दूध, तेल, और सूखे नारियल के रूप में इसके विभिन्न उपयोग भी हैं। नारियल लोगों को स्वस्थ रहने और उनके पेट को बेहतर ढंग से काम करने में मदद कर सकता है। यह बहुत ज्यादा प्यास लगने से बचाता है और शरीर को पानी से भरा रहने में मदद करता है। नारियल में मौजूद विटामिन सी, मैग्नीशियम और पोटैशियम जैसे तत्व हमारे दिल को मज़बूत रखने में मदद कर सकते हैं। यही कारण है कि प्रतिवर्ष 2 सितम्बर को सम्पूर्ण विश्व में नारियल के महत्व और इसके आर्थिक, पर्यावरणीय और पोषण संबंधी लाभों को उजागर करने के लिए विश्व नारियल दिवस मनाया जाता है। इस दिन का उद्देश्य नारियल के उत्पादन और उपयोग को बढ़ावा देना है, विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जहाँ नारियल एक महत्वपूर्ण आर्थिक संसाधन है।

 नारियल की खेती कई देशों की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है और यह लाखों लोगों की आजीविका से जुड़ी हुई है। नारियल के पेड़ भूमि की कटाव को कम करने और जैव विविधता को बढ़ाने आदि पर्यावरण संरक्षण के कार्य में भी योगदान करते हैं। वर्ष 2024 के लिए विश्व नारियल दिवस की थीम कोकोनट फॉर ए सर्कुलर इकॉनमी : बिल्डिंग पार्टनरशिप फॉर मैक्सिमम वैल्यू रखी गई है। इससे पहले वर्ष 2023 में इस दिवस की थीम सस्टेनिंग कोकोनट सेक्टर फॉर द प्रेजेंट एंड फ्यूचर जनरेशन रखी गई थी।