पैरालंपिक चैंपियन तीरंदाज हरविंदर ने एक बार में एक तीर पर दिया ध्यान

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पेरिस, पांच सितंबर (भाषा) अप्रत्याशित परिस्थितियों से निपटना हरविंदर सिंह के लिए कोई बड़ी बात नहीं है, फिर चाहे यह तीरंदाजी हो या सामान्य जीवन। उन्होंने कठिन सबक सीखकर इस खेल में महारत हासिल की है।

हरियाणा के 33 वर्षीय हरविंदर ने पैरालंपिक स्वर्ण जीतने वाला पहला भारतीय तीरंदाज बनकर इतिहास रचा है। जब वह सिर्फ एक साल के थे तब डेंगू का इलाज गलत हो गया था जिसके कारण उनके पैर खराब हो गए लेकिन अपनी किस्मत पर विलाप करने के बजाय उन्होंने इससे लड़ना चुना।

हरविंदर की पैरालंपिक में सफलता की यात्रा की शुरुआत तीन साल पहले तोक्यो में हुई जहां वह कांस्य पदक के साथ इन खेलों में पदक जीतने वाले पहले भारतीय तीरंदाज बने।

बुधवार को हरविंदर ने ना तो थकान दिखाई और ना ही घबराए तथा एक दिन में लगातार पांच जीत हासिल करके रिकर्व व्यक्तिगत ओपन श्रेणी में अपना लगातार दूसरा पैरालंपिक पदक जीता। उनकी ये सभी उपलब्धियां भारतीय तीरंदाजी में पहली बार हैं। और जब वह पदक पर निशाना नहीं लगा रहे होते तो हरविंदर अर्थशास्त्र में पीएचडी करने में व्यस्त रहते हैं।

खेल की वैश्विक संचालन संस्था ‘वर्ल्ड आर्चरी’ ने हरविंदर के हवाले से कहा, ‘‘पिछले कुछ महीनों में मैं अभ्यास में बहुत अच्छा प्रदर्शन कर रहा था, क्वालिफिकेशन में विश्व रिकॉर्ड से भी ज्यादा अंक बना रहा था। यहां मैं नौवें स्थान पर रहा (रैंकिंग दौर में) और मेरा आत्मविश्वास थोड़ा कम हो गया। फिर भी मैंने मैचों पर ध्यान केंद्रित किया क्योंकि कुछ भी हो सकता था।’’

उन्होंने कहा, ‘‘तीरंदाजी अप्रत्याशित खेल है। सब कुछ हो सकता है। मैंने हर तीर पर ध्यान केंद्रित किया। केवल अगला तीर मायने रखता है।’’

हरविंदर ने अपना सर्वश्रेष्ठ फाइनल के लिए बचाकर रखा था जहां उन्होंने अपने अंतिम चार तीर में तीन 10 अंक पर मारे और पोलैंड के अपने 44 वर्षीय प्रतिद्वंद्वी लुकास सिजेक को 6-0 (28-24, 28-27, 29-25) से हराया।

शीतल देवी और राकेश कुमार के मिश्रित टीम कांस्य पदक जीतने के बाद मौजूदा खेलों में तीरंदाजी में भारत का यह दूसरा पदक है।

हरविंदर का मानना है कि वर्तमान में बने रहने और बहुत आगे की नहीं सोचने से उन्हें फायदा मिला।

उन्होंने कहा, ‘‘मैं सिर्फ अपने अगले मैच पर ध्यान केंद्रित कर रहा था। सिर्फ इसी तरह से मैं अगले दौर में पहुंच सकता था और एक-एक करके मैं फाइनल में पहुंच गया और आखिरकार स्वर्ण पदक जीता।’’

हरियाणा के कैथल जिले के अजीतनगर के रहने वाले हरविंदर स्वर्ण पदक जीतने के अपने सपने को तीन साल पहले तोक्यो में साकार नहीं कर पाए थे।

उन्होंने कहा, ‘‘तोक्यो में मैंने कांस्य पदक जीता इसलिए मुझे खुशी है कि मैं अपने पदक का रंग बदल सका। (पेरिस) खेलों से पहले सभी ने मेरे से कहा था कि मेरे पास स्वर्ण पदक तक पहुंचने का मौका है और मुझे खुशी है कि मैं ऐसा कर सका।’’

एक किसान परिवार से ताल्लुक रखने वाले हरविंदर का मंत्र हमेशा अपने अंतिम तीर से ‘10’ अंक हासिल करना है। उन्होंने कहा कि इसी से उन्हें पेरिस में अपना लक्ष्य हासिल करने में मदद मिली।

उन्होंने कहा, ‘‘कभी-कभी यह नौ पर लगता है लेकिन आपको हमेशा 10 के साथ खत्म करना होता है क्योंकि यह आपका आखिरी तीर होता है। मैंने मैचों और कई परिस्थितियों में अपना आखिरी तीर 10 पर लगाया। मैंने अपने आखिरी तीर पर ध्यान केंद्रित किया।’’

इस चैंपियन तीरंदाज ने स्वर्ण पदक को देश और अपनी दिवंगत मां को समर्पित किया जिनकी मृत्यु जकार्ता में 2018 एशियाई पैरा खेलों के शुरू होने से ठीक पहले हुई थी। अपनी मां को श्रद्धांजलि देते हुए उन्होंने छह साल पहले महाद्वीपीय खेलों में स्वर्ण पदक जीता था।

हरविंदर ने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि मैंने यह भारत के लिए किया है। मैं अपने मैचों से पहले और यहां स्वर्ण जीतने के बाद अपनी मां के बारे में भी सोच रहा था।’’

उन्होंने कहा, ‘‘मैं कल्पना कर सकता हूं कि अगर वह यहां होती तो कितनी खुश होती। जब मैं पदक (दौर) तक पहुंचता हूं, तो वह हमेशा मेरे दिमाग में रहती हैं।’’