रहस्य इच्छाधारी नागों का

नाग भारतीय सभ्यता और संस्कृति के अविभाज्य अंग है। हमारे देश में नागों की पूजा भी होती है तथा देवताओं की भांति उन्हें भोग-राग भी लगाया जाता है। संभव है, ऐसी धार्मिक-भावना के पीछे ‘टोटमवादÓ या अंधविश्वास मात्र हो। आदि मानस भय-मिश्रित भावना से प्रेरित होकर प्रकृति की अनेक शक्तियों, नदी, पर्वतों, वृक्षों के साथ पशु-पक्षियों की भी पूजा करता था।
 ऐसी ही प्रक्रिया के दौरान नागों की भी पूजा की परम्परा शुरु हुई होगी। नाग जहरीले प्राणी होते हैं। अंत: स्वाभाविक है कि मनुष्य-जाति उनसे भयभीत हो। इस सत्य को स्वीकार करने के बावजूद नागों की पूजा को महज अंधश्विास नहीं कहा जा सकता। इसके पीछे निश्चित रूप से तत्व-दर्शन है।
नाग सांपों की एक प्रजाति है। सभी वर्गों के सर्प के फन नहीं होते और न ही हर सांप कुंडली मार कर बैठ सकता है। लेकिन नागों के फन होते हैं वे कुंडली मारकर बैठ सकते हैं। इन नागों को दिव्य कोटि का माना जाता है। किसी शाप या पाप के कारण जीव को ऐसी योनि में आना पड़ता है। शाप या पाप की अवधि समाप्त होने पर वे जीव फिर अपने दिव्य रूप को प्राप्त हो जाते हैं। कुछ नागों के फन   में ‘ऊँ’ अंकित होता है अनेक रंगों के  ऐसे नागों को साक्षात् शिव स्वरूप माना जाता है।  
भारतीय समाज में ऐसा विश्वास किया जाता है  कुछ पितर-देवता भी नाग-योनि को प्राप्त हो जाते हैं और अपने पूर्वजों की धन-सम्पत्ति की रखवाली करते हैं। अनादि काल से भारतवासियों के मन में यह भावना रही है कि धरती के अंदर गुप्त खजानों की नाग ही रक्षा करते हैं। जिस खजाने के ऊपर नाग वास होता है, तब तक उसे प्रसन्न न कर लिया, जब तक कोई खजाने को प्राप्त नहीं कर सकता।
ऐतिहासिक परम्पराओं में नाग एक वंश भी रहा है,जिसके सम्राटों ने भारतीय सभ्यता और संस्कृति के निर्माण में बड़ा योगदान दिया है। महाभारत तथा हिंदू पुराणों में जहां नागों का वर्णन किया गया है, उन्हें सर्प की आकृति में भी और मनुष्यों (या देवों ) की आकृति में भी दर्शाया गया है। सर्वत्र ऐसा प्रतीत होता है जैसे वे सब इच्छाधारी है तथा मनोनुरुप स्वरूप धारण करने में सक्षम है। शेष, वासुकि, तक्षक आदि नागों की विशेष कोटियां कहीं गई है। शेष नाग के फनों पर तो इस पृथ्वी को ही अधिष्ठित माना गया है। वासुकि नाग वे कहे गये हैं जिन्हें रज्जू बनाकर देवताओं तथा असुरों ने समुद्र-मंथन किया था एवं तक्षक नाग वह थे, जिन्होंने महाभारत के अंतिम सम्राट परीक्षित के तत्काल प्राण हर लिए थे।
जिस तक्षक नाग ने राजा परीक्षित को डसा था, वह इच्छाधारी था तथा अपनी इच्छा के अनुरुप वह कोई भी रुप धारण कर सकता था। श्रृंगीऋषि के शाप की शक्ति के वशीभूत होकर वह राजा परीक्षित को डसने उनके महल की ओर जा रहा था। तभी उसने कश्यप नामक एक ब्राह्मण को देखा, जो दु्रतगति से राजा परीक्षित की सहायता करने जा रहा था।
 कश्यप सर्प-विष के विशेषज्ञ थे तथा उनके पास ऐसी औषधि थी कि कितना ही भीषण विषधर सर्प क्यों न हो, वे उसका विष-दंश प्रशमित कर सकते थे, तथा मृत प्राणी को भी जीवन दान देने में सक्षम थे। तक्षक इच्छाधारी तो था ही, कश्यप को देखतेे ही उसने एक ब्राह्मण का रूप धारण कर लिया और कश्यप से कहा-‘मैं तक्षक नाग हूं और राजा परीक्षित को दंड देने जा रहा हूं। मेरा विष कालकूट की तरह भयंकर है। मेरे डसते ही राजा की तुंरत मृत्यु हो जाएगी।‘  
कश्यप को अपनी विद्या का अभिमान था। उन्होंने कहा-‘तुम यदि तक्षक नाग हो तो सुनो, मैं भी कश्यप हूं। मेरे पास ऐसी औषधि और मंत्र-शक्ति है कि मैं किसी भी विष के प्रभाव को तत्काल समाप्त कर सकता हूं।‘  
तक्षक ने सगर्व कहा-‘तुम्हें मेरे विष की भयंकरता का अनुमान नहीं है। मैं चाहूं तो अपने विष दंश से हरे भरे वृक्ष को भी झुलसा कर ठूंठ में परिवर्तित कर सकता हूं।‘
कश्यप ने उत्तर दिया-‘तुम्हें मेरी औषधि और मंत्र-शक्ति का कोई अनुमान नहीं है। अपने विष-दंश से जिस वृक्ष को तुम ठूँठ में परिवर्तित कर सकते हो मैं उसमें पुन: नव-जीवन का संचार कर सकता हूं और पुन: उसे हराभरा कर सकता हूं।‘  
तक्षक नाग यह सुनकर आश्चर्य चकित रह गया। उसने सोचा यदि सचमुच इसका दावा सत्य है तो वह श्रृंगी के शाप को कभी फलीभूत नहीं कर सकेगा। अत: इसकी शक्ति का परीक्षण कर लेना आवश्यक है। उसने कहा-‘तुम्हें यदि अपनी औषधि और मंत्र-शक्ति का इतना गर्व है तो आओ इसका प्रमाण दो। यह जो सामने हरा-भरा वृक्ष है, मैं उसे डसता हूं तुम उसे स्वस्थ करके दिखाओ।‘  
कश्यप ने देखा उनके सामने जो ब्राह्मण खड़ा था वह तत्क्षण नाग में परिवर्तित हो गया है। सामने ही एक विशाल हरा भरा वृक्ष था। क्रोध से फुंफकारते हुए तक्षक उस वृक्ष की और बढ़ा और उसके  तने को उसने डस लिया। सचमुच बड़ा भीषण था, उसका विष! वह हरा-भरा वृक्ष पलों में ही जल कर ऐसे ठूंठ हो गया, जेसे चारों तरफ से दावानल ने उसे दग्ध कर दिया हो।
तक्षक नाग की चुनौती को कश्यप ने स्वीकार किया और तत्क्षण उन्होंने कोई मंत्र पढ़ते हुए एक औषधि का विलेपन ठूंठ के तने पर कर दिया। तक्षण ने देखा देखते ही देखते उस ठूंठ में हरीतिमा और रस का फिर से संचार हो गया-वृक्ष पुन: हरा भरा हो गया था।
तक्षक नाग ने पुन: क्रोधित होकर उस वृक्ष का डस लिया। वृक्ष फिर झुलस गया। कश्यप ने पुन: अपनी शक्ति का प्रयोग किया और वृक्ष को फिर हरा-भरा कर दिया। अब तो तक्षक नाग यह समझ गया कि वह कश्यप पर विजय प्राप्त नहीं कर सकता।  जैसे ही वह राजा परीक्षित को डसेगा, कश्यप उन्हें फिर जीवित कर देंगे। उसने पूछा-‘आप राजा परीक्षित को क्यों जीवन दान देना चाहते हैं?’  
कश्यप ऋषि ने उत्तर दिया ‘केवल धन के लिए। राजा परीक्षित के पास अकूत धन-सम्पत्ति है। मैं जब उन्हें जीवन दान दूंगा तो वे प्रतिदान स्वरूप मुझे अपार-धन सम्पत्ति देंगे।‘  
तक्षक नाग ने कुछ सोचकर कहा-‘यदि आप केवल धन के लिए राजा के प्राणों की रक्षा करना चाहते हैं तो वह धन मैं आपको दे सकता हूं। देखिए, जिस वृक्ष पर हम अपनी-अपनी शक्ति का परीक्षण कर रहे हैं उसकी जड़ों में एक गुप्त खजाना है। वह खजाना मेरा है, जिसे मैं आपको प्रदान करता हूं।
 आप वह खजाना लेकर यहां से लौट जाए और मुझे अपने कत्र्तव्य का पालन करने दें।‘ यह सुनकर कश्यप बड़े प्रसन्न हुए। वे धन के लिए ही तो राजा परीक्षित के पास जा रहे थे। उन्होंने तक्षक नाग के निर्देशों पर उस वृक्ष की जड़ों को खोदा तो सचमुच वहां एक खजाना मिला। कश्यप उसे प्राप्त कर संतुष्ट हो गए और वहां से लौट गए। तब तक्षक नाग ने वहां से राजा परीक्षित के महल की और प्रस्थान किया और वहां पहुंच कर राजा परीक्षित को अपने विष-दंश से पीडि़त कर उनके प्राण हर लिए।
यह पुराण-कथा एक जीवंत प्रमाण है इच्छाधारी नागों के रहस्य की। भारत की सास्कृतिक परम्परा में नागों को इच्छाधारी ही माना गया है। भारत के अनेक मानव-सम्राटों ने नाग-कन्याओं से विवाह किए हैं। महाभारत के नायक अर्जुन की अनेक पत्नियों में एक ‘उपली’   थी जो नाग कन्या ही थी। इसी ‘उपली’   के गर्भ से वीर बबूवाहन का जन्म हुआ था। यह भीम के पुत्र घटोत्कच की तरह ही पराक्रमी था।
आधुनिक युग के वैज्ञानिक तथा सर्प-विशेषज्ञ इस तरह के तथ्यों को केवल गप्प अथवा कपोल कल्पनाएं मात्र मानते हैं। ऐसे लोगों की मान्यता है कि विषधर होते हुए भी सर्प एक अत्यंत भयभीरु प्राणी होता है। अपनी इस वृत्ति के कारण सर्प जन-समूह से छिपते-फिरते हैं। सर्प न तो दुग्ध-पान करते हैं और न ही उनके मोहित करने की बात भी मिथ्या है। इस वैज्ञानिक सत्य के बावजूद सर्पों को दुग्ध का ही भोग लगाया जाता है तथा बीन बजाकर उन्हें वश में करने का दावा भी किया जाता है। ऐसा विश्वास करने वाले लोग इच्छाधारी  नाग-नागिनों के अस्तित्व से इंकार नहीं करते।
भारतवर्ष में आधुनिक समाज विकास के संदर्भ में ऐसे उदाहरणों का अभाव नहीं है, जिनमें इच्छाधारी नाग-नागिनों के देखे जाने और उनके चमत्कारों का उल्लेख किया जाता है। लटन-लाइब्रेरी में संरक्षित एक डायरी में हेमिल्टन नामक एक लेखक ने सन् 1857 के आसपास अपनी भारत-यात्रा के दौरान एक इच्छाधारी नागिन से साक्षात्कार का वर्णन किया है। हेमिल्टन कर्नल स्मिथ का मित्र था और उन्हीं के साथ भारतवर्ष में गुप्त विधाओं का अध्ययन करने आया था। उन दिनों कर्नल स्मिथ को औंरगाबाद की फौजी-छावनी में पदस्थ किया गया था। हेमिल्टन के उल्लेखों के अनुसार कर्नल स्मिथ एक प्रगतिशील अंग्रेज अफसर था। वह भारतवासियों के अंध-विश्वास का मजाक उड़ाया करता था। औरंगाबाद क्षेत्र में उन्हीं दिनों एक साधू ‘सिद्धिनाथÓ की बड़ी चर्चा थी। लोग उससे मिलने से घबराते थे। क्योंकि वह सदैव अपने पास एक नागिन को गुप्त-रूप से रखता था। जब भी उसकी इच्छा होती थी, वह उस नागिन को सुंदर नारी के रूप में प्रकट कर देता था। कर्नल स्मिथ ने जब यह खबर सुनी तो सिद्धिनाथ को अपने बंगले पर पकड़ मंगवाया और उसे आदेश दिया कि वह नागिन को स्त्री बनाकर प्रकट करे।
सिद्धिनाथ ने इच्छाधारी नागिन का आह्वान किया और एक अत्यंत काम-विमोहिका नर्तकी के रूप में प्रकट कर दिया। यह देखकर कर्नल स्मिथ ने उस नर्तकी पर अपनी पिस्तौल से फायर कर दिया। नर्तकी अदृश्य हो गई तथा सिद्धिनाथ कर्नल स्मिथ को शाप देता हुआ वहां से चला गया।
हेमिल्टन ने अपनी डायरी में यह रहस्योद्घाटन किया है। उसी रात्रि सिद्धिनाथ द्वारा पोषित इच्छाधारी नागिन कर्नल स्मिथ के बंगले में प्रकट हुई और उसे काट खाया, जिससे कर्नल स्मिथ की मौत हो गई।
फौजी छावनी में पदस्थ अंग्रेज अधिकारियों तथा अन्य लोगों ने कर्नल स्मिथ की मौत का कारण सर्प-दंश माना, किंतु हेमिल्टन ने दावा किया है कि उसने इच्छाधारी नागिन का साक्षात्कार किया था तबा कर्नल स्मिथ की मौत का कारण वह सुंदरी थी, जो नागिन के रूप में सिद्धिनाथ के पास रहती थी।
जब वह नागिन सुंदरी के रूप में स्मिथ के सामने प्रकट हुई थी, तब कर्नल स्मिथ विक्षिप्त हो उठा था और चिल्ला रहा था-‘ओ सुंदरी मेरे पास आओ। मुझे अपने आलिंगन में ले लो।‘ सचमुच उस सुंदरी ने कर्नल स्मिथ को अपनी भुजाओं में पकड़ लिया और उसका मुख चूम लिया। तत्क्षण कर्नल स्मिथ धराशायी हो गया था। तड़प-तड़प कर उसके प्राण पखेरु उड़ गए थे।
इससे भी अधिक सनसनी-खेज और चमत्कारिक घटना सन् 1980 में भेड़ाघाट  (जबलपुर म.प्र.) में स्थित चौंसठ योगिनी मंदिर में घटित हुई थी। वहां साधना करते हुए ‘देवदत्त’नामक एक तांत्रिक की सर्पदश से मौत हो गई थी। देवदत्त अपने पीछे तंत्र-मंत्र की साधनाओं से संबंधित कुछ दस्तावेज छोड़ गया था, जिनमें उसने अपने पूर्व जन्म की घटनाओं का उल्लेख किया था तब इच्छाधारी नागिन के काटने की भविष्यवाणी की थी।
भेड़ाघाट में स्थित चौंसठ योगिनी मंदिर के जीर्णावशेष आज भी यह इंगित करते हैं कि कभी वह अत्यंत भव्य रहा होगा। वर्तुलाकार में निर्मित इस मंदिर के मध्य में शिव-पार्वती की युगल मूर्ति है। ऐसा विश्वास किया जाता है कि शिव-पार्वती की इस प्रतिमा पर कभी इच्छाधारी नाग-नागिन अपने फन काढ़कर छत्र का काम करते थे। देवदत्त ने अपने दस्तावेजों में लिखा है कि उसने कामांध होकर पूर्व जन्म में इच्छाधारी नागिन को प्राप्त करने के लिए उसने जोड़े नाग का वध कर दिया था। इसी का प्रायश्चित्त करने देवदत्त इस जन्म में ‘चौसठ योगिनीÓ मंदिर में प्रस्तुत हुआ था। अमावस्या की रात्रि में जबकि वह साधनारत था, इच्छाधारी नागिन प्रकट हुई और देवदत्त को डस लिया, जिससे उसकी मौत हो गई थी। जन-श्रुतियों के अनुसार उक्त इच्छाधारी नागिन पवित्र नर्मदा में लुप्त हो गई थी।