डॉ.वेदप्रकाश
महिलाओं के प्रति भिन्न-भिन्न प्रकार के अपराध लगातार बढ़ते जा रहे हैं। लंबे समय से दुष्कर्म, सामूहिक दुष्कर्म, हत्या और निर्मम हत्या की घटनाएं निरंतर बढ़ती जा रही हैं। वारदात को अंजाम देने वाले बेखौफ हैं और कई जगह तो कानून व्यवस्था असहाय दिखाई दे रही है। हाल ही में बंगाल के आईजी कर अस्पताल में प्रशिक्षु डॉक्टर के साथ दुष्कर्म और निर्मम हत्या से देश में रोष व चिंता व्याप्त है। बंगाल महिला अपराध के आंकड़ों में शिखर पर है, जबकि वहां की मुख्यमंत्री स्वयं एक महिला है।
महिला शक्ति राष्ट्र शक्ति है, इसलिए महिलाओं का सशक्तिकरण राष्ट्र का सशक्तिकरण है। किंतु सुरक्षा एवं सम्मान के अभाव में महिला सशक्तिकरण अधूरा है। महिलाओं के प्रति यौन अपराध के मामले निरंतर बढ़ते जा रहे हैं। विडंबना यह है कि वे न तो अपने घर में सुरक्षित हैं और न ही कार्यस्थल पर। समाज में महिलाओं के प्रति अपराध की मनोवृत्ति लगातार बढ़ रही है। यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता के आदर्श और मंत्रों को आत्मसात् करने वाला देश निरंतर महिलाओं के प्रति अपराध और दुष्कर्म जैसी घटनाओं की ओर तेजी से बढ़ रहा है। देश का संविधान बिना किसी लिंग भेद के सभी को सम्मानजनक जीवन के समान अवसर देता है तो फिर यह अधिकार महिलाओं से क्यों छीना जा रहा है? संकुचित मानसिकता के शिकार कुछ लोग महिलाओं के पहनावे, खानपान और रहन-सहन पर ही प्रश्न उठते हैं। हाल ही में बंगाल के कोलकाता के आरजी कर अस्पताल में प्रशिक्षु महिला डॉक्टर से कार्यस्थल पर दुष्कर्म एवं हत्या की घटना ने महिलाओं की सुरक्षा और सम्मान के मुद्दे को उजागर किया है। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में दुष्कर्म के साथ-साथ क्रूरता की बात भी सामने आई है।
दुखद यह है कि राज्य सरकार और स्थानीय प्रशासन का रवैया संतोषजनक नहीं है। इस घटना के बाद से देशभर में रोष है। आरंभ में कोलकाता हाई कोर्ट ने अस्पताल व पुलिस की भूमिका से असंतुष्ट होकर मामले की जांच सीबीआई को हस्तांतरित करने का आदेश दिया। इसके कुछ दिन बाद ही मामले की गंभीरता को देखते हुए माननीय उच्चतम न्यायालय ने इस मामले में स्वत: संज्ञान लिया। विचारणीय यह भी है कि यह महिला कितना संघर्ष और कड़ी मेहनत करने के बाद इस मुकाम पर पहुंची होगी। उसके कितने स्वप्न और संकल्प रहे होंगे, वह चिकित्सा के क्षेत्र में न जाने कितना योगदान करती। उसके साथ दुष्कर्म और हत्या की यह घटना न जाने कितनी बेटियों को चिंतित और हतोत्साहित करेगी।
विगत दिनों से बंगाल के ही संदेशखाली एवं अन्य स्थानों से महिलाओं के प्रति दुष्कर्म व अपराध की घटनाओं के समाचार निरंतर आ रहे हैं। देशभर में दुष्कर्म और सामूहिक दुष्कर्म की बढ़ती घटनाएं कहीं न कहीं कानून व्यवस्था की ढिलाई का भी परिणाम हैं। हाल ही में उत्तर प्रदेश के अयोध्या से नाबालिग किशोरी से दुष्कर्म की घटना, मैनपुरी में एक मुस्लिम युवक की छेड़खानी से क्षुब्ध युवती द्वारा आत्महत्या का मामला, बरेली से हिंदू युवती के अपहरण का मामला, राजस्थान के जैसलमेर से नाबालिग को प्रताड़ित करने का मामला,उत्तराखंड के देहरादून में किशोरी से बस में सामूहिक दुष्कर्म का मामला, हरिद्वार के बहादराबाद स्थित पतंजलि योगपीठ में रक्तदान शिविर के दौरान महिला चिकित्सक से छेड़छाड़ का मामला, बंगाल के सिलीगुड़ी में नाबालिग लड़की से यौन शोषण का मामला, मध्यप्रदेश के झाबुआ में समाज सेविका के यौन शोषण का मामला, बिहार के मुजफ्फरपुर में किशोरी से छेड़छाड़ और हत्या का मामला, महाराष्ट्र के सायन अस्पताल में महिला डॉक्टर पर हमला एवं दुर्व्यवहार और महाराष्ट्र के ठाणे जिला स्थित बदलापुर के एक स्कूल में दो बच्चियों के यौन शोषण का मामला आदि घटनाएं सीधे-सीधे बेटियों और महिलाओं की सुरक्षा व सम्मान की स्थिति को उजागर करती हैं।
क्या लगातार बढ़ रही इस प्रकार की घटनाएं भारत की वैश्विक साख को खराब नहीं कर रही हैं? भारतीय चिंतन तो पर स्त्री को मातृवत मान्यता और सम्मान देता रहा है फिर आज हमारे समाज को क्या हो गया है? यह वही देश है जहां श्री राम ने सीता के अपहरण एवं दुर्व्यवहार के लिए रावण सहित समूची लंका का विध्वंस कर दिया था। क्या अयोध्या सहित देश के विभिन्न हिस्सों में महिलाओं व नाबालिग किशोरियों से दुष्कर्म स्थिति की गंभीरता के संकेत नहीं दे रहे हैं? कुछ समय पहले केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा संसद में लापता महिलाओं के आंकड़े पेश किए गए। आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2019 से 21 के बीच 18 साल से अधिक उम्र की 10,61,648 महिलाएं व उससे कम उम्र की 2,51,430 लड़कियां लापता हुई हैं। यह आंकड़ा राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो द्वारा संकलित किया गया है। अकेले राजधानी दिल्ली से 61,054 महिलाएं और 22,919 लड़कियों के लापता होने का आंकड़ा है। ये महिलाएं कहां गई? क्यों गई? क्या ये आंकड़े केंद्र और राज्यों के लिए चिंता के विषय नहीं होने चाहिए? वर्ष 2019 में दुष्कर्म के कुल 32,033 मामले दर्ज हुए तो वहीं वर्ष 2021 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार यह संख्या 31,677 है। अकेले वर्ष 2019 में नाबालिगों से जबरन विवाह और अपहरण के 15,615 मामले दर्ज हुए हैं। ह्यूमन राइट्स वॉच नामक संस्था ने एक सैंपल सर्वे के आधार पर यह बताया है कि भारतवर्ष में हर साल लगभग 7200 नाबालिग दुष्कर्म की शिकार होती हैं। साथ ही इन्हें पुलिस से दुर्व्यवहार और अपमान भी सहना पड़ता है। जीवनभर की पीड़ा और मानसिक कष्ट एक भिन्न विषय है।
अनेक मामलों में यह भी सामने आया है कि प्रतिशोध और अपमान के डर से कई पीड़िताएं रिपोर्ट दर्ज नहीं करती हैं। महिलाओं के प्रति अपराध एवं दुष्कर्म की घटनाओं में राजस्थान, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश एवं बिहार सबसे ऊपर हैं। गौरतलब है कि घरेलू हिंसा, दहेज, बाल विवाह, लव जिहाद जैसे अनेक मामलों में भी महिलाएं असुरक्षित होने के साथ-साथ उत्पीड़न झेलती हैं। चिंता का विषय यह भी है कि देश की विधानसभा एवं संसद में बैठे अनेक नेता भी महिला उत्पीड़न के दोषी हैं। वर्ष 2023 के एक समाचार के अनुसार देश में 134 सांसद एवं विधायकों के खिलाफ महिला अपराध के मामले दर्ज हैं। इनमें 21 सांसद और 113 विधायक हैं। ध्यातव्य है कि इनमें से चार सांसद और 14 विधायक दुष्कर्म के आरोपों का सामना कर रहे हैं।
क्या यह स्थिति चिंताजनक नहीं है? दुष्कर्म और क्रूरता से हत्या जैसे मामलों में अपराधी को तत्काल फांसी क्यों नहीं होनी चाहिए? यदि माननीय न्यायालय दुष्कर्म अथवा अपराधियों के अधिकारों की चिंता करता है तो फिर दुष्कर्म पीड़िता अथवा जिसकी हत्या की गई है उसके जीवन और अधिकारों की रक्षा कौन करेगा? हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले की प्राचीर से कहा है कि राक्षसी कृत्य करने वालों के मन में फांसी का डर पैदा करना बहुत जरूरी है। विडंबना यह है कि कानूनी दावपेंच और लचीलेपन के कारण राक्षसी कृत्य करने वाले बेखौफ हैं।
भारतीय दंड संहिता में यौन अपराधों के खिलाफ रोकथाम के प्रविधान हैं। आपराधिक कानून संशोधन अधिनियम, 2013 और फिर यौन अपराधों की रोकथाम हेतु आपराधिक कानून संशोधन अधिनियम, 2018 इस दिशा में उठाए गए महत्वपूर्ण कदम हैं। अधिनियम 2018 महिलाओं के प्रति यौन अपराधों की रोकथाम हेतु समयबद्ध जांच, शीघ्र व त्वरित न्याय पर आधारित है, जिसमें 12 वर्ष से कम उम्र की लड़कियों के साथ दुष्कर्म के लिए मृत्युदंड सहित कठोर दंडात्मक प्रविधानों की बात कही गई है। इस अधिनियम में मामले की जांच और सुनवाई दो महीने में पूरा करने का आदेश भी दिया गया है। लेकिन व्यवहार में स्थिति बिलकुल भिन्न दिखाई देती है। अनेक मामलों में पीड़िता भटकती रहती है लेकिन पुलिस राजनीतिक दबाव, बाहुबलियों के रसूख अथवा धनबल में आकर मामला दर्ज नहीं करती। कई बार पीड़िता की आर्थिक स्थिति खराब होने से वह उत्पीड़न को सहकर भी चुप रहती है। अनेक बार यदि मामला दर्ज भी हो गया तो न्यायिक प्रक्रिया इतनी लंबी हो जाती है कि अपराधी सहज ही छूट जाता है। ऐसे में महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराध कैसे रोके जा सकते हैं?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2015 में बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ का मंत्र देते हुए महिलाओं के सशक्तिकरण से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर गंभीरता से काम किया है।वे महिला सशक्तिकरण के लिए उज्ज्वला योजना,पीएम आवास योजना, मातृ वंदना योजना आदि के साथ-साथ करोड़ों महिलाओं को लखपति बनने के उद्देश्य से संकल्पबद्ध होकर काम भी कर रहे हैं। अनेक योजनाओं एवं प्रोत्साहन के फलस्वरूप विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ रही है। हाल ही में स्वतंत्रता दिवस समारोह में विभिन्न मानकों पर चयनित 150 महिला सरपंच, ग्राम पंचायत अध्यक्ष आदि महिला जनप्रतिनिधियों को सम्मानित किया गया है। किंतु महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराध एवं यौन उत्पीड़न की घटनाएं उनके सशक्तिकरण में बड़ी बाधा हैं। अपराधी मानसिकता अथवा उत्पीड़न के भय से अनेक बेटियां पढ़ाई छोड़ देती हैं। सुरक्षा की चिंता में माता-पिता उन्हें पढ़ने बाहर नहीं भेजते हैं, फिर वे कैसे सशक्त हो पाएंगी?
आज जब भारत विकसित भारत और विश्व गुरु भारत का संकल्प लेकर लगातार आगे बढ़ रहा है। देश की अनेक बेटियां भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में राष्ट्रीय और वैश्विक फलक पर कीर्तिमान स्थापित कर रही हैं। तब यह आवश्यक है कि आधी आबादी की सुरक्षा एवं सम्मान हेतु कठोर निर्णय लिए जाएं। दोषियों को तत्काल कड़े दंड के प्रविधान हों। राक्षसी कृत्य करने वालों को तत्काल सार्वजनिक फांसी दी जाए। यदि महिलाओं की सुरक्षा और सम्मान की रक्षा न की गई तो उनके सशक्तिकरण का संकल्प अधूरा ही रहेगा।