बेटियां शुभकामनाएं हैं

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कुछ दिनों से सोशल मीडिया पर बेटियों से सम्बंधित  वीडियों और ऑडियो अत्यधिक चल रहे है। हाल ही में एक ऑडियो चल रहा है, जिसमें एक व्यक्ति स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉक्टर से बोलता है। मुझे मेरी पत्नी का गर्भपात कराना है। डॉक्टर उस व्यक्ति पर अत्यधिक क्रोधित होकर बोलती हैं – शर्म नहीं आती गर्भपात कराते हुए। उस पर  वह बोलता है- जन्म लेने के बाद भी कहां सुरक्षित हैं बेटियां? छोटी-छोटी बच्चियों का रेप हो रहा है। उसकी दिल दहला देने वाली मौत से तो अच्छा है वह पेट में ही मर जाए। डॉक्टर भी नि:शब्द जाती हैं। अखबार या टीवी समाचार चैनल सभी पर रोज कम से कम 25 खबरें तो बलात्कार व छेडख़ानी की आती ही हैं। कुछ दशकों पहले लड़की को जन्म इसलिए नहीं दिया जाता था, क्योंकि दहेज देना पड़ेगा। वंश नहीं चलेगा इसलिए लड़की को पेट में ही मार देते थे या जन्म के बाद अफीम देकर मार दिया जाता था और आजकल लड़की को इसलिए जन्म नही दिया जा रहा है क्योंकि वह सुरक्षित नहीं है।

आखिर हमारे समाज में लड़कियां सुरक्षित क्यों नहीं है? यह एक विचारणीय प्रश्न बनता जा रहा है। नारी जाति के लिए सरकार ने इतने सारे कानून बना दिये हैं, फिर भी सुरक्षित क्यों नहीं है? इतिहास को हम देखते हैं तो कई महिलाओं ने अपने नाम का परचम लहराया है। उनको हम कभी नहीं भूल सकते हैं। जैसे- सरोजिनी नायडू, झांसी की रानी, देवी अहिल्या बाई, इंदिरा गांधी, अवंति बाई, सुगरा बी आदि ऐसी महिलाएं हैं जिन्हें कभी नहीं भूल सकते हैं, इसी तरह आज भी महिलाएं किसी भी क्षेत्र में पीछे नहीं हैं। धरती से लेकर आसमां तक छाई हुई हैं। आसमान में हवाई जहाज से लेकर लड़ाकू विमान तक उड़ा रही हैं। राजनीतिक क्षेत्र में भी पूरी तरह से सक्रिय हैं।  कला का क्षेत्र हो या घर सभी जगह वह पूर्ण रूप से सक्रिय है। आज की महिला हाई टेक्नोलॉजी से लेकर घर की सारी जिम्मेदारी अच्छी तरीके से निभा रही है। नारी ही संस्कार,संस्कृति को समेटते हुए बहुत खूबसूरती के साथ पीढ़ी-दर-पीढ़ी आगे बढ़ाती जाती है।

आज हम जितनी भी उन्नति करलें किंतु वह उन्नति नहीं कहलाएगी, क्योंकि हमारे समाज का आधा वर्ग अर्थात महिला वर्ग आज भी असुरक्षित है। महिलाएं कहीं भी सुरक्षित नहीं है। सरकारी कार्यालय, निजी दफ्तर बस, ट्रेन, निजी वाहन,बाग-बगीचा, सड़कें। यहां तक की घर में भी सुरक्षित नहीं है। महिलाओं के साथ मानसिक, शारीरिक छेडछाड़,  बलात्कार आजकल आम घटना हो गई है। घरों में भी घरेलू हिंसा की पीडि़त महिलाओं की भी कमी नहीं है। स्कूल,कॉलेज जाती हुईं लड़कियों को रोज कुछ न कुछ कमेंट सुनते हुए जाना पड़ता है। कुछ वारदातें रिश्ते-नातों को भी धूमिल कर रही है। जैसे- भाई ने बहन के साथ छेडछाड़, बाप ने बेटी के साथ या ससुर ने बहू के साथ। ऐसे कई वारदातें हम आए दिन अखबारों में पढ़ते रहते हैं।

अगर नारी जाति का सम्मान नहीं किया गया या उसे नहीं सहेजा गया तो नारी जाति समाप्त हो जाएगी।  सृष्टि का सृजन ही समाप्त हो जाएगा। नारी जाति को आदिकाल-अनादिकाल से ही पूज्यनीय माना गया है। आज भी हमारे समाज में मां दुर्गा-काली के रूप में पूजा की जाती है। भगवान शिव तो स्वयं अर्धनारिश्वर हैं। अगर नारी-पुरूष दोनों में से एक भी कम हुआ तो मानव जाति का अस्तित्व ही खत्म हो जाएगा। मानव जाति व समाज के सृजनकर्ता ही -पुरुष हैं। आज समाज में, परिवार में रिश्ते-नाते सदियों से चल रहे है उनको बनाने वाले भी प्रारी-पुरुष है।

आज हमारा समाज व देश सर्व भौतिक सुविधाओं से सम्पन्न हो गया है। हमारा देश दिन दूगनी-रात चोगुनी उन्नति कर रहा है। आसमान में कई सैटेलाईट पहुंचा दिये है, कई परमाणु बम बना लिये गए है।

 बड़ी-बड़ी बिल्डिंगों का निर्माण कर लिया है। बाहरी दुश्मनों से लडऩे के लिए कई आधुनिक हथियार बना दिये गए हैं, किंतु हमारे देश की महिलाओं की सुरक्षा के लिए आज भी हम पूरी तरह से सक्षम नहीं हो पाए हैं।

स्कूल,कॉलेज और अन्य संस्थानों में लड़कियों को जूडो-कराते, लाठी चलाने के गुर सिखाने चाहिए। प्राथमिक स्कूल से ही सभी बच्चियों को स्वयं की सुरक्षा हेतु ऐसे पेंतरे सिखाने चाहिए जिससे वे अपनी रक्षा कर सकें। सरकार कितने ही कानून बना ले किंतु महिलाएं स्वयं अपनी रक्षा नहीं करेगी तब तक वे सुरक्षित नहीं हो सकती हैं। आज महिलाओं को स्वयं तन-मन से मजबूत  व सबल बनना होगा। महिलाओं को हर छेडख़ानी का मुंहतोड़ जवाब देना होगा। 2017 में एक थीम चली थी, बी बोल्ड फॉर चेंज यानी महिलाओं की स्थिति में सुधार लाने के लिए महिलाओं को स्वयं बोल्ड होना होगा। प्रत्येक व्यक्ति अगर यह मानसिकता बना ले  कि नारी को सम्मान देना ही हमारा धर्म है तो शायद बहुत हद तक  वस्तुस्थिति सुधर सकती है।  

बेटी,बहू कभी मां बनकर

सबके ही सुख-दुख को सहकर

अपने सब फर्ज निभाती है।

तभी तो नारी कहलाती है।

साहित्यकार अजहर हाशमी जी की कविता

बेटियां शुभकामनाएं हैं,
बेटियां पावन दुआएं हैं।
बेटियां जीनत हदीसों की,
बेटियां जातक कथाएं हैं।

बेटियां गुरुग्रंथ की वाणी,
बेटियां वैदिक ऋचाएं हैं।
जिनमें खुद भगवान बसता है,
बेटियां वे वन्दनाएं हैं।

त्याग, तप, गुणधर्म, साहस की
बेटियां गौरव कथाएं हैं।
मुस्कुरा के पीर पीती हैं,
बेटी हर्षित व्यथाएं हैं।

लू-लपट को दूर करती हैं,
बेटियाँ जल की घटाएं हैं।
दुर्दिनों के दौर में देखा,
बेटियां संवेदनाएं हैं।

गर्म झोंके बने रहे बेटे,
बेटियां ठंडी हवाएं हैं।