धर्म, विज्ञान, आध्यात्म, सद्भाव पर केन्द्रित भारतीय संस्कृति को उत्सवधर्मिता का प्रतीक माना जाता है। हर मौसम और माहौल के मुताबिक इस गौरवमयी संस्कृति में हर्ष-उल्लास, आनंद का प्रचार-प्रसार करने का उपक्रम विभिन्न पर्वों, त्यौहारों के माध्यम से किया गया है। ये त्यौहार धर्मपथ पर चलने की प्रेरणा देते हुए आपसी भाईचारे के साथ समग्र समाज की प्रगति का संदेश देते हैं। मौज-मस्ती, उल्लास से भरे ये त्यौहार भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए गहरी रुचि का विषय हैं।
इसका प्रमाण यह है कि दुनिया के अनेक देशों में भारतीय देवी-देवताओं को अलग-अलग नाम से पूजा जाता है तथा कई विदेशी तो हमारे देश की गौरवमयी संस्कृति के आकर्षण में बंधकर भारत चले आते हैं। ऐसे अनेक विदेशी लोगों को भारत के विभिन्न इलाकों में घूमते व भारतीयता के रंग में डूबे देखा जा सकता है।
ऐसा ही एक त्यौहार इन दिनों भारत के अधिकांश भागों में पूरी श्रद्धा, उल्लास के साथ मनाया जा रहा है। यह त्यौहार आदिकाल से आज तक घर-घर में लोकप्रिय है। देश की आजादी के लिए भी इसकी भूमिका महत्वपूर्ण रही है। इस जनप्रिय पर्व को जनता गणेशोत्सव के रूप में भक्तिभाव के साथ मनाती है। गणेशोत्सव में बुद्धि, शक्ति, समृद्धि के देवता भगवान श्री गणेश की आराधना होती है। गुणों के देवता गजानन की भव्य झांकियां साकार रूप लेती हैं, जिनको देखकर भक्त आनंदित होते हैं। भक्तों को पूरे साल इस मनमोहक कार्यक्रम का इंतजार रहता है। गणेशोत्सव में नयनाभिराम झांकियों के प्रदर्शन की प्रतिस्पर्धा को छोटे-छोटे गांवों में भी देखा जा सकता है। श्री गणेश की वंदना का यह सिलसिला गणेश चतुर्थी से प्रारंभ होकर अनंत चतुर्दशी तक चलता है।
दरअसल गणेशोत्सव गुणों को ग्रहण करने का पर्व है, क्योंकि गजानन श्री गणेश गुणों के दाता हैं। उनके सम्पूर्ण व्यक्तित्व का दर्शन एवं उसकी विवेचना करें तो ज्ञात होता है कि जीवन में सफलता के लिए कई बातें सीखी जा सकती हैं। सिर से पैर तक भगवान श्री गणेश का दर्शन, चिंतन, मनन करके हम उनसे गुणों को ग्रहण तथा अपनी बुराइयों का विसर्जन कर सकते हैं।
ऋिद्धि-सिद्धि, ऐश्वर्य के दाता भगवान विनायक (श्री गणेश) की स्तुति में उनके गुणों का विस्तार से वर्णन किया गया है। उनकी गुण धर्म के आधार पर बारह विभिन्न नाम से स्तुति की गई है।
श्री गणेश के बारह नामों में पहला वक्रतुण्ड (टेड़े मुख वाले), दूसरा एकदंत (एक दांत वाले), तीसरा कृष्णपिगांक्ष (काली, भूरी आंखों वाले), चौथा गजवक्रं (हाथी के समान मुखवाले), पांचवां लम्बोदर (बड़े पेट वाले), छठा विकट (विकराल), सातवां विघ्न राजेन्द्र (विघ्नों-बाधाओं का विनाश करने वाले), आठवां धू्रमवर्ण (धूसर वर्ण वाले), नौवां भालचंद्र (जिनके ललाट पर चन्द्रमा सुशोभित है), दसवां विनायक (विजय के दाता), ग्यारहवां गणपति (ईश्वरीय दूतों के नायक) और बारहवां गजानन (गजराधिराज) है।
भगवान श्री गणेश के सुदर्शन व्यक्तित्व से हमें यह सीखना चाहिये कि उनके बड़े सिर, बड़े मुख की भांति हम जब भी विचार करें तो अच्छी बातों का विचार करें, जब भी अपने मुख से बोलें तो बड़ी बात बोलें। श्री गणेश के दो बड़े दांत हमें यह प्रेरणा देते हैं कि दुष्टों को भयभीत करना भी जरूरी है। उनके हाथ में सुशोभित सुदर्शन चक्र हमें स्वदर्शन (आत्म अवलोकन) करने की शिक्षा देता है।
उनका बड़ा पेट इस बात का प्रतीक है कि वे अच्छी-बुरी सभी बातों को उदारतापूर्वक स्वयं में समाहित कर लेते हैं। गणनायक भगवान श्री गणेश के बड़े-बड़े कान इस बात का प्रतीक माने जाते हैं कि सबकी बातों को गंभीरता से सुनकर उस पर ध्यान दिया जाये। उनके सिर पर सजा मुकुट यह प्रदर्शित करता है कि वे जिम्मेदारी के साथ अपने उत्तरदायित्व को पूरा करते हुए सबको सुखी एवं संतुष्ट रखते हैं। प्रसंगवश कहना होगा कि मुकुट पहनने का अधिकारी वही होता है, जो सर्वश्रेष्ठ गुणों से युक्त, सबके पालन-पोषण का ध्यान रखने वाला, सबका हितचिंतक होता है। श्री गणेश इस भूमिका पर सौ फीसदी खरे उतरते हैं, इसलिए जो हमारे समाज में महत्वपूर्ण पद या राजकाज में अहम स्थान चाहते हैं, उनको श्री गणेश से प्रेरणा ग्रहण करनी चाहिये। भगवान गजानन का वाहन मूषक भी सीख लेने के काबिल है। वह अपना काम चतुराई और धैर्य के साथ करना जानता है। ये दोनों गुण मनुष्य की प्रगति के लिए जरूरी हैं। श्री गणेश को मोदक (लड्डू) प्रिय हैं, जो कि समाज में मिठासयुक्त आचरण की विचारधारा का प्रसार करते हैं। सर्वगुण सम्पन्न भगवान गणेश केवल दूर्वा चढ़ाने से ही प्रसन्न हो जाते हैं, जिसका आशय यह है कि धन-साधन विहीन व्यक्ति भी उनकी भक्ति कर सकता है। इसी प्रकार यदि कोई श्रद्धापूर्वक जो भी हमें दे उसको सहर्ष स्वीकार कर प्रसन्न रहना चाहिये। श्री गणेश जब आसन पर विराजमान होते हैं तो उनका एक पैर पृथ्वी से कुछ ऊपर रहता है। इसका आशय यह है कि पृथ्वी पर रहते हुए भी उनका ध्यान ऊपर अपने आराध्य की स्तुति में लगा रहता है अर्थात् हमें अपनी दैनिक दिनचर्या को सफलतापूर्वक निभाते हुए सदैव ईश्वर का स्मरण करते रहना चाहिये।
यदि हम भगवान श्री गणेश से इन गुणों को अपने जीवन में ग्रहण कर सकें तो हमारा जीवन सार्थक होगा तथा हम सफलता की नई ऊंचाइयों तक पहुंच सकेंगे। गणेशोत्सव हमें इसी बात का संदेश देता है। गणेशोत्सव का अंतिम दिन ‘अनंत चतुर्दशी’ के रूप में मनाया जाता है। इस दिन गणेश प्रतिमाओं का विसर्जन किया जाता है।
इनके साथ ही यदि हम अपने अवगुणों का विसर्जन कर दें, अपनी बुराइयों को त्याग दें तो हमारे उज्ज्वल भविष्य का मार्ग अवश्य ही प्रशस्त होगा।