भाजपा : बस एक कुशल रणनीति की जरुरत है

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समूचे भारत में एक वैचारिक झंझावात उठ खड़ा हुआ है कि आखिर लगातार दो टर्म में अपने अकेले दम पर बहुमत हासिल कर लेने वाली भाजपा इस बार बैसाखियों पर क्यों आ टिकी? किंतु ध्यान देने वाली बात है कि बस तीनेक राज्यों को छोड़ दीजिये तो भाजपा का परचम खूब लहराया है। यहां तक कि धुर दक्षिण केरल में भी उसका खाता खुला और तमिलनाडु में उसके वोट प्रतिशत में बड़ा इजाफा हुआ है। आंध्र प्रदेश ने उसका भरपूर साथ दिया। इससे क्या संकेत मिलता है?

 

संकेत आश्वस्तिदायक है। हिन्दू यथावत जागृत है। यह प्रदर्शन हिन्दू जागृति का है। कोई लप्पो चप्पो करने की जरुरत नहीं है। भारत के हृदय प्रदेश, मध्य प्रदेश ने हिन्दू अस्मिता का मुखर आह्वान किया है। विगत दशक के शासनकाल में तमाम बाह्य और अंतर्विरोधों के बावजूद, पार्टी की नाकामियों, जन संवादहीनता, बढ़ते भ्रष्टाचार के बावजूद हिन्दुओं के एक बड़े हिस्से के मोदी में अटूट विश्वास का ही यह प्रतिफल है कि भाजपा अपने चुनावपूर्व के गठबंधन सहयोगियों के साथ तिबारा सरकार बनाने जा रही है। यह हिन्दू गौरव की विजय है क्योंकि उसे भारत पर आसन्न खतरों का भान है।

 

अब आईये उन प्रदेशों में जहाँ भाजपा का प्रदर्शन निराश करने वाला रहा। बंगाल की क्या बात करें, वह एक तरह से भारत से कटकर जेहादियों के हाथ चला गया है। कोई आश्चर्य नहीं यदि वहां भारत के संघीय ढांचे को धता बताते हुये हिन्दू विरोधी कानून वजूद में न आ जांय। वहाँ पहले ही राष्ट्रपति शासन लगाने के कई अवसर केंद्र सरकार खो चुकी है। वहां भाजपा की ऐतिहासिक पराजय के मूल में कट्टर जेहादी हैं, बांग्लादेशी घुसपैठिये और रोहिंग्या हैं जिनकी तादाद सत्ता हथियाने की हो चुकी है। वहां अभी आगे आगे देखिये होता है क्या? वहां के हिन्दुओं पर दया आती है या वे इसके ही काबिल हैं।

 

अपने उल्टे प्रदेश में भी भाजपा को जो जोर का धक्का लगा है, उसके एक नहीं दर्जन भर कारण हैं जिन्हें अब बिना संकोच के और लाग लपेट के स्वीकारा जाना चाहिए। इस बेहद अप्रत्याशित और घटिया प्रदर्शन की जिम्मेदारी तो लेनी होगी। पहले कारणों पर चल रहे चर्चा बिन्दुओं को रेखांकित कर लिया जाय – नेतृत्व और भाजपा कैडर की नाकामी। इसके नेतागण का आम जनता/मतदाता से कनेक्ट पूरी तरह विच्छेदित हो चुका है। आम भाजपाई नेतागण ही नहीं ,इनके चुने हुये प्रतिनिधि, विधायक और सांसद जीतने या हारने के बाद कुंभकर्णी निद्रा में चले जाते हैं। कभी क्षेत्र में नहीं जाते।

 

आखिर मोदी का चेहरा कब तक इन्हे बचाता? दूसरे शीर्ष कमान को समाजवादी पार्टी की नई और बेहतरीन सोशल इंजीनियरिंग का तनिक भान तक नहीं रहा और ये आत्ममुग्धता में हवाई किले बनाते रहे। जबकि इनके पास इंटेलिजेंस से लेकर सारी मशीनरी थी। या तो इन्हे निरंतर ठकुरसुहाती फीडबैक मिलता रहा और ये गुमराह होते रहे। यह चुनाव भाजपा के चाणक्य का वाटरलू बन गया। ऐसे ऐसे फालतू प्रत्याशी जनता पर आरोपित कर दिये गये जिनकी कोई लोकप्रियता नहीं थी। जनता ने उन्हें नहीं स्वीकारा। रिजेक्ट कर दिया।

 

और विपक्ष ने उधर एक चतुरतापूर्ण समीकरण तैयार किया। कांग्रेस के पक्ष में वोट जिहाद के गुपचुप नारे के साथ मुस्लिम शत प्रतिशत एकजुट हुये और समाजवादी यादवों की एकजुटता तो जानी पहचानी है ही। इसमें सपा सुप्रीमों का लोकसभावार लगभग सभी जगह ऐसे प्रत्याशियों का उतारना जो दलित या अन्य पिछड़ी जाति के वोट बटोर सकें, इनके लिए सोने में सुहागा बन गया। समीकरण हिट हो गया।

 

भाजपाई प्रत्याशी इस आसन्न खतरे को तनिक भी भांप नहीं पाये। आत्मश्लाघा और आत्ममुग्धता में मतदान की तिथि तक डूबे रहे। न तो क्षेत्र में गहन भ्रमण किया न ही प्रचार ही। इसके बावजूद भी भाजपा और कमल को समर्पित मतदाता एकजुट रहा। अन्यथा तो और भी शर्मनाक स्थिति होती। हां स्वजाति के प्रत्याशी के नाम पर पिछड़ी जातियां लोकसभावार लामबंद हुईं। और कांग्रेस के बेहूदे, अनर्गल प्रचार कि ‘बाबा साहब का संविधान’ बदल जायेगा तकरीबन नौ दस फीसदी बसपा का कोर वोटर भ्रमित होकर साईकिल या पंजे पर मुहर लगा बैठा। सुना है कि अब उन्हें ठगे जाने का भान हुआ है और कहीं कहीं पछतावा भी है मगर अब क्या होगा जब चिड़िया चुंग गई खेत।

 

निष्कर्षतः पिछड़ी और अति पिछड़ी तथा दलित वोटों में चालाकीभरी सेंध भाजपा पर भारी पड़ गयी। मुसलमान और मिजारिटी यादव विपक्ष के साथ हैं हीं। मगर भाजपा में इन वर्गों के पदाधिकारी बिलकुल व्यर्थ निस्तेज हो चुके हैं।

 

तो अब क्या? अब विधानसभा चुनाव सामने है। दिन बीतते देर नहीं लगती। देखते देखते 2027 आ जायेगा। समझो आ ही गया है तैयारियों के लिहाज से।यहां अपने सेट अप का भाजपा को जबर्दस्त ओवरहालिंग करनी होगी। पराजय की जिम्मेदारी लेनी होगी और विभिन्न स्तरों के पदाधिकारियों से सख्त जवाबदेही करनी होगी। अनावश्यक बोझ बने पदाधिकारियों को चलता करके जनप्रिय और ऊर्जावान नेतृत्व देने वालों को जिम्मेदारी देनी होगी।

 

योगी जी को मेरी विनम्र राय के अनुसार संगठन में भाजपा के सम्माननीय राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद देकर सारे भारत में हिन्दुत्व की गौरव पताका फहराने का जिम्मा मिले और यहां मध्यप्रदेश के ही हिट फार्मूले के अनुसार सुयोग्य बैकवर्ड /दलित मुख्यमंत्री लाना होगा जो विधानसभा चुनावों को सबल नेतृत्व दे सके। साथ ही भ्रष्टाचार के विरुद्ध कुंद पड़ती धार में तीव्रता लाने , छुट्टा गोवंश की चिरस्थाई हो चुकी समस्या का समाधान करने की परिणामी कार्यवाही भी  इसी बीच करनी होगी। नाराज क्षत्रिय क्षत्रपों को भी मनाना समझाना बुझाना होगा जिनका सहयोग भी अन्यान्य कारणों से भरपूर नहीं मिल पाया। ब्राह्मण देवों का भी आदर सम्मान करना होगा क्योंकि भैय्या जी की नजर इस बड़े वोट बैंक की ओर बस उठने ही वाली है।

 

मुझे लगता है कि इन तैयारियों के साथ भाजपा यदि उप्र के आगामी विधानसभा चुनावों में उतरती है तो वह मौकापरस्त गठबंधन को माकूल चुनौती देगी। आज भी हिन्दुत्व की प्राण शक्ति उसके साथ ही है। बस एक कुशल रणनीति की जरुरत है। न दैन्यं न पलायनम। यतो धर्मः ततो जयः।