भारत पिछले कई वर्षों से संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में अपने लिए स्थायी सीट की मांग कर रहा है जो कि अभी केवल पांच देशों के पास है जिसमें अमेरिका, रूस, चीन, फ्रांस और ब्रिटेन शामिल हैं । सुरक्षा परिषद के इन पांच स्थायी सदस्य देशों के पास ही वीटो पावर है । भारत द्वारा लगातार संयुक्त राष्ट्र में सुधार की मांग उठाई जा रही है और सुरक्षा परिषद में भारत और कुछ अन्य देशों को शामिल करने की मांग की जा रही है । 27 अगस्त को संयुक्त राष्ट्र में भारत के उप-स्थायी प्रतिनिधि, भारत की राजदूत योजना पटेल ने सुरक्षा परिषद में सुधार के लिए अधिक निर्णायक और पारदर्शी दृष्टिकोण अपनाने की अपील की है ।
1 सितम्बर को सिंगापुर के एक पूर्व राजनयिक किशोर महबूबानी जो कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के चीफ भी रह चुके हैं, ने संयुक्त राष्ट्र में भारत को स्थायी सीट देने का समर्थन कर दिया है । उन्होंने कहा है कि ब्रिटेन को अब अपनी सुरक्षा परिषद की सीट छोड़ देनी चाहिए क्योंकि ब्रिटेन अब महान नहीं रहा है । इसके साथ ही उन्होंने कहा है कि संयुक्त राष्ट्र में अब जरूरी सुधार हो जाने चाहिए और कहा है कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि आज भारत अमेरिका और चीन के बाद दुनिया का तीसरा सबसे शक्तिशाली देश है । इसके पीछे उन्होंने एक वजह यह भी बताई है कि ब्रिटेन ने दशकों से अपनी वीटो पावर का इस्तेमाल नहीं किया है । ब्रिटेन को यह डर लगता है कि वीटो पावर इस्तेमाल करने से उसको विरोध का सामना करना पड़ेगा । उनका कहना है कि ऐसे में तार्किक बात यह है कि ब्रिटेन अपनी सीट भारत को दे दे । उनका यह भी कहना है कि 20वीं सदी की शुरूआत में राष्ट्र संघ के पतन से संयुक्त राष्ट्र के संस्थापकों ने जो सबक सीखा है, वह यह है कि यदि कोई महान शक्ति चली जाती है तो संगठन ध्वस्त हो जाता है । उनका कहना है कि आपके पास आज की महान शक्तियां होनी चाहिए, कल की महान शक्तियां नहीं । देखा जाये तो अपनी स्थापना के 78 वर्ष बाद भी संयुक्त राष्ट्र में कोई सुधार नहीं किया गया है जबकि इन वर्षों में दुनिया बहुत बदल गई है । वक्त के साथ संयुक्त राष्ट्र में बदलाव नहीं किया गया है, इसलिए यह संस्था अपना प्रभाव खोती जा रही है ।
उन्होंने भारत को स्थायी सीट देने का नया रास्ता बताया है क्योंकि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में विस्तार करने में समस्या आ रही है और ये बहुत सालों से टलता आ रहा है । सुरक्षा परिषद का विस्तार कब होगा, कहा नहीं जा सकता लेकिन उन्होंने बीच का रास्ता निकाल दिया है कि ब्रिटेन अपनी सीट भारत के लिए छोड़ दे । ब्रिटेन एक खत्म होती महाशक्ति है जबकि भारत उभरती हुई महाशक्ति है । सैन्य शक्ति के मामले में ब्रिटेन भारत के सामने कहीं टिकता ही नहीं है और उसकी आर्थिक शक्ति भी कम होती जा रही है । भारत जनसंख्या की दृष्टि से दुनिया का सबसे बड़ा देश बन चुका है । दो साल बाद भारत दुनिया की तीसरी आर्थिक महाशक्ति बन जायेगा । किशोर महबूबानी, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के चीफ रह चुके हैं इसलिए वो इस संस्था को अच्छी तरह से समझते हैं इसलिए उनका बयान बहुत महत्वपूर्ण है । संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के अगर पांच स्थायी सदस्य हैं तो इसके दस अस्थायी सदस्य भी होते हैं । अस्थायी सदस्य ज्यादा से ज्यादा दो साल तक ही सदस्य रहते हैं और इसके बाद इसमें नये सदस्य आ जाते हैं । दो साल बाद अस्थायी सदस्यों को बदल दिया जाता है लेकिन 78 वर्षों से स्थायी सदस्यों को बदला नहीं गया है ।
वीटो पावर के संबंध में किशोर महबूबानी ने जो कहा है कि ब्रिटेन ने दशकों से अपनी वीटो पावर का इस्तेमाल नहीं किया है, पूरी तरह से सच है । वास्तव में ब्रिटेन ने सोवियत संघ के विघटन के बाद अपनी वीटो पावर का इस्तेमाल किया ही नहीं है । सोवियत संघ के विघटन से पहले ब्रिटेन ने 32 बार अपनी वीटो पावर का इस्तेमाल किया था लेकिन इसके बाद उसने एक बार भी इसका इस्तेमाल नहीं किया है । इसी तरह फ्रांस ने भी सोवियत संघ के विघटन से पहले 18 बार वीटो पावर का इस्तेमाल किया था लेकिन सोवियत संघ के विघटन के बाद एक बार भी उसने वीटो पावर का इस्तेमाल नहीं किया है। इसके विपरीत देखा जाये तो चीन ने सोवियत संघ के विघटन से पहले सिर्फ तीन बार वीटो पावर इस्तेमाल की थी लेकिन इसके बाद उसने 17 बार वीटो पावर का इस्तेमाल किया है । सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिका ने 21 तथा रूस ने 35 बार वीटो पावर का इस्तेमाल किया है ।
इससे स्पष्ट हो जाता है कि ब्रिटेन और फ्रांस को वीटो पावर की जरूरत नहीं है । 33 साल में दोनों देशों ने एक बार भी इसका इस्तेमाल नहीं किया है जबकि अन्य तीन स्थायी सदस्य देशों द्वारा कई बार किया जा चुका है । वास्तव में सोवियत संघ के विघटन के बाद ब्रिटेन और फ्रांस पूरी तरह से अमेरिका के पीछे चलने वाले देश बन गये हैं । उन्हें वीटो पावर इस्तेमाल करने की जरूरत नहीं है क्योंकि उनकी जगह अमेरिका यह काम करता है । अगर भारत को यह ताकत मिल जाती है तो भारत अफ्रीका और एशिया के कमजोर देशों की ताकत बन सकता है । यह एक विडम्बना है कि एशिया और अफ्रीका में चीन को छोड़कर किसी दूसरे देश को सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता प्राप्त नहीं है । चीन एक कम्युनिस्ट तानाशाही वाला देश है जबकि भारत सबसे ज्यादा जनसंख्या वाला लोकतांत्रिक देश है लेकिन उसे स्थायी सदस्यता नहीं दी जा रही है । इसलिए सिर्फ ब्रिटेन ही नहीं बल्कि फ्रांस को भी अपनी स्थायी सदस्यता छोड़नी चाहिए ताकि भारत के अलावा अफ्रीकन यूनियन या दक्षिण अफ्रीका को स्थायी सदस्यता मिल सके । देखा जाये तो तर्क और तथ्यों के आधार पर ब्रिटेन और फ्रांस को सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता छोड़ देनी चाहिए क्योंकि अमेरिका ही उनके हितों के लिए संयुक्त राष्ट्र में काफी है । स्थायी सदस्यता की असली ताकत ही वीटो पावर है और इन दोनों देशों की इसकी जरूरत ही नहीं है ।
अंत में इतना कहा जा सकता है कि यूरोप में रूस के अलावा किसी और देश को स्थायी सदस्य बनाये रखना है तो फ्रांस को रखा जा सकता है लेकिन ब्रिटेन को यह सदस्यता छोड़ देनी चाहिए । रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद रूस की ऐसी हालत हो गई है कि वो कई दशकों तक किसी और देश के साथ पारंपरिक युद्ध नहीं लड़ सकता । भारत वैश्विक जिम्मेदारियों को निभा रहा है, इसलिए दुनिया को भारत को ताकतवर बनाने की जरूरत है । चीन के साथ शक्ति संतुलन के लिए भी दुनिया को चाहिए कि वो भारत को सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता प्रदान करे । इससे विश्व शांति की स्थापना में भी मदद मिल सकती है । भारत ग्लोबल साऊथ देशों सहित अन्य कमजोर देशों की आवाज बन सकता है । वैसे भी देखा जाये तो दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाला देश, जो दुनिया की चौथी सैन्य महाशक्ति भी है और अब दुनिया की तीसरी आर्थिक महाशक्ति बनने जा रहा है, उसे संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट देना बहुत जरूरी है । अगर ऐसा नहीं किया जाता है कि संयुक्त राष्ट्र का महत्व कम होता जाएगा । वैसे भी दुनिया में शांति स्थापित करने में यह संस्था असफल साबित हो रही है । अगर इस संस्था को बनाये रखना है तो इसमें सुधार बहुत जरूरी हैं और सुरक्षा परिषद से भारत जैसे शक्तिशाली देश को बाहर रखना किसी भी प्रकार से उचित नहीं है ।