भारत में शिव मंदिरों एवं शिवलिंगों की संख्या हजारों में है। अनेक मुखों एवं आकार-प्रकार वाले शिवलिंग इस देश में पाए जाते हैं, परन्तु कई पुरातत्व शक्तियों का दावा है कि देश का विशालतम शिवलिंग, म.प्र. की राजधानी भोपाल से 32 किलोमीटर दूर भोजपुर गांव के भोजेश्वर मंदिर में हैं जो पुष्यसलिला वेत्रवती के तट पर स्थित है।
बलुआ पत्थर के सिर्फ एक खंड से निर्मित यह शिवलिंग नीचे छह मीटर की ऊंचाई तक वर्गाकार है, उसके ऊपर 3.85 मीटर ऊंची जलहरी (योनिपीठ) है तथा इस जलहरी के ऊपर 3.85 मीटर ऊंचा शिवलिंग है। इस प्रकार भूमि से इस शिवलिंग की ऊचाई 13 मीटर से अधिक है। कहा जाता है कि सोमनाथ के ज्योर्तिलिंग को महमूद गजनवी द्वारा खंडित किए जाने से दुखी परमार वंश के महान पराक्रमी एवं स्थापत्य कला के प्रेमी महाराजा भोज ने अपने ही राज्य की सीमा में एक और सोमनाथ की स्थापना का निर्णय किया था। इसलिए इस मंदिर को दूसरा सोमनाथ कहा जाता है। यह मंदिर सन् 1055 ई. में बनना शुरू हुआ था, परंतु इस मंदिर का निर्माण अधूरा ही रह गया।
अधूरा होने पर भी यह मंदिर कला एवं पुरातत्व की दृष्टि से अद्वितीय है। मंदिर एक चौड़े सोपानयुक्त ऊंचे चबूतरे के पूर्वी अद्र्धभाग पर स्थित है। शिव मंदिरों के प्रवेश द्वार आमतौर पर पूर्व दिशा में होते हैं, पर इस मंदिर का प्रवेश द्वार पश्चिम में है और प्राचीन मंदिरों के प्रवेश द्वारों की तुलना में ऊंचा एवं विशाल है। प्रवेश द्वार की ऊंचाई 8 मीटर तथा चौड़ाई 4.57 मीटर है।
प्रवेशद्वार पर दाहिनी ओर गंगा, कुबेर एवं परिचारिकाओं की तथा बांयी ओर यमुना, कुबेर एवं परिचारिकाओं की प्रतिमाएं हैं। ये प्रतिमाएं विविध प्रकार के आभूषणों से सज्जित है। प्रवेशद्वार के सोपान के दोनों ओर के गवाक्षों में शिव प्रतिहार प्रतिमाएं हैं।
इस मंदिर का मंडप भी अपूर्ण है। छत वर्गाकार रूप में है, जो भीमकाय स्तम्भों पर टिकी हुई है। ये स्तम्भ 12.20 मीटर ऊंचे है तथा इनका व्यास 6.50 मीटर है। प्रत्येक स्तम्भ तीन भागों में विभाजित है। नीचे के दो भागों में इनका अष्टकोणीय स्वरूप है। मंदिर की उत्तरी, पूर्वी एवं दक्षिणी दीवारों पर चार-चार चौकोर स्तम्भ हैं। इसके निचले भाग पर किन्नरों, गंधर्वो एवं अन्य देवी-देवताओं लक्ष्मी-नारायण, सीता-राम तथा ब्रह्मïा एवं ब्राह्मïणी की आकर्षक प्रतिमाएं उत्कीर्ण हैं।
यह मंदिर अपने पीछे अपने निर्माण की कहानी भी छोड़ गया है। मंदिर के पास पूर्वोत्तर कोने पर, मिट्टी एवं पत्थर से बनी एक ढलान आज भी मौजूद है, जिसके सहारे से मंदिर के लिए विशाल पत्थर लाए गए।
मंदिर के चारों ओर अर्ध तराशे पत्थर बिखरे पड़े हैं जो भोज के इस कलात्मक स्वप्न के अधूरे रहने की कहानी कहते हैं। महाराजा भोज को इतिहासकार सरस्वती का उपासक मानते हैं।
भोज स्वयं संस्कृत के कवि थे तथा शिल्पशास्त्र में भी उनकी गहरी रूचि थी। उनके समय में अनेक भव्य भवनों एवं मंदिरों का निर्माण हुआ। कई मंदिरों को उन्होंने सज्जित एवं अलंकृत कराया। मंदिरों के प्रति उनकी इस गहरी रूचि को अभिव्यक्त करने वाला एक शिलालेख विदिशा जिले के उदयपुर के नीलकंठेश्वर मंदिर में मिला है। इस शिलालेख की पंक्तियां भोज का यशोगान इस प्रकार करती हैं-
केदार-रामेश्वर-सोमनाथ
सुण्डरि कालानत रूद्र सत्र्क:-
सुराश्रंय-व्याप्य चय:
समन्तात यथार्थ संझा जगती चकार
‘ ताल तो भोपाल ताल और सब तलैयाÓ यह कहावत शायद आपने सुनी हो। यह कहावत सत्य है, पर इसे भोपाल के विशाल तालाब से मत जोडि़ए।
भोपाल के वर्तमान विशाल तालाब से काफी बड़ा तालाब भोज ने बनवाया था और यह तालाब इसी भोजपुर के पश्चिम में स्थित था। यह तालाब 250 वर्गमील में पर्वतों को बांधकर बनाया गया था। इन पर्वतों के बीच में दो दर्रो पर बांध बनाए गए थे। इनमें से एक बांध सौ फुट चौड़ा था तथा दूसरा पांच सौ फुट चौड़ा। ये बांध सिर्फ मिट्टी और पत्थर से बने थे तथा इनमें चूने का प्रयोग नहीं हुआ। इनमें से एक अब भग्नावस्था में हैं, पर दूसरा आज भी मजबूत है। इसी बांध के कारण ही कलियासोत नदी, बेतवा नदी की ओर मुड़ती है।
भोजपुर का अधूरा मंदिर ही नहीं, अपितु भारतीय इतिहास भी भोज की कीर्तिगाथा से भरा पड़ा है। राजा भोज के अंत के साथ ही इस देश में स्थापत्यकला की अवनति शुरू हो गई। राजा भोज के बाद परमार वंश में अनेक शासक हुए। बाद में भी इस क्षेत्र में अनेक शासक आए और चले गए, पर भोजपुर का यह अधूरा मंदिर आज भी अधूरा है, चारों और बिखरे अर्धतराशे पत्थर संस्कृत के एक कवि की इन पंक्तियों की पुष्टि करते हैं।
अद्य धारा निराधारा,
निरालम्बा सरस्वती
पण्डित खाण्डित सर्वो
भोजराजे दिवंगते।