दीदी को अधिक स्नेह क्यों

दो या इससे अधिक बहनों के बीच अक्सर इस बात को लेकर आन्तरिक तनाव पलते रहते हैं कि दीदी को अधिक स्नेह क्यों दिया जाता है? दीदी के स्नेह की अधिकता को लेकर अधिकांशत: छोटी लड़कियां अपने माता-पिता को या परिवार के अन्य सदस्यों के प्रति रूखा व्यवहार अपना लेती हैं या फिर मन ही मन में आंतरिक तनाव पाले रहती हैं।
वीणाजी की चार बेटियां हैं। बेटा छोटा है। सबसे बड़ी बेटी को वीणा जी बहुत प्यार करती हैं। छोटी बहिनें अक्सर बड़ी बहन से कटी रहती हैं और अवसर पाते ही ताने मारती रहती हैं. मैंने चिन्तित वीणाजी से उनके बेटियों में आपसी तनाव का कारण पूछा। वीणाजी कहती हैं। बड़ी बेटी बचपन से बहुत संतोषी और जिम्मेदार है। सभी बहनों के लिये कपड़े बनाना, स्वेटर बनाना, सबको स्कूल के लिये तैयार करना, घर का पूरा कार्य करना, बाजार का सब सामान लाना, ये सारे कार्य उसके जिम्मे हैं। वह किसी कार्य के लिये कभी ना नहीं कहती है। अन्य बेटियां अक्सर स्वतंत्र रहती हैं। जिम्मेदारी देने पर या तो ना कर देती हैं या फिर तबीयत खराब होने का बहाना बनाकर कार्यों को टाल देती हैं। इसी से बड़ी बेटी आकर्षण का केन्द्र बन गई है।
ध्यान देने की बात है कि अक्सर माता-पिता उन औलादों के प्रति ज्यादा आकर्षण रखते हैं जो उनका अधिक सम्मान और ख्याल रखते हैं। यदि बड़ी बेटी जिम्मेदारी निभाती हो और संतोष भी रखती हो तो स्वाभाविक तौर पर माता-पिता के आकर्षण का केन्द्र वही होती है। बड़ी बेटी का पहले पीहर जाने का एहसास भी माता-पिता में उसके प्रति ज्यादा लगाव भर देता है।
माता-पिता को चाहिये कि प्यार और अपनत्व से छोटी बेटियों के अंदर भी जिम्मेदारी की भावना भरें। उन्हें उनके कार्यों के प्रति चेतना जगायें। साथ ही दीदी के किन गुणों के कारण उसे सबसे आदर मिलता है। यह बात उनके दिमाग में डालकर आपसी तनाव को कम करें।
प्रिया जी बेहद दु:खी हैं कि जब भी बड़ी बेटी के लिये वे कोई गहना या कपड़ा बनवाती हैं तो छोटी बेटी लड़ पड़ती है कि उसे क्यों नहीं बना। प्रियाजी का कहना है कि – बड़ी बेटी की शादी करनी है। हम एक-एक वस्तुएं पूर्व से एकत्र करते हैं, ताकि शादी  के समय उसे दिया जाए, पर छोटी बेटी उसे अपनी उपेक्षा समझती है और बार-बार कहती है कि वह सौतेली बेटी है।
अब प्रियाजी को चाहिये कि बेटियों को पास बैठाकर उनके बीच की गलतफहमियों को दूर करें। इस सत्यता को खोलें कि वह ऐसा किस कारण से करती हैं। बेटियों के समक्ष अपनी आर्थिक समस्या को रखें। छोटी बेटी को स्नेह से यह बतायें कि उसकी दीदी के शादी के उपरांत पुन: इसी प्रक्रिया से उसके गहने  भी बनेंगे। जब भी बड़ी बेटी के लिये कुछ बनवायें तो छोटी  बेटी की  अनिवार्य आवश्यकता को पूर्ण करने के उपरांत ही ऐसा करें, या फिर जो कुछ भी वस्तु शादी के उद्देश्य से बनवायें उसे गुप्त रखें, ताकि आपसी तनाव का मौका ही नहीं मिले।
अरुणा जी का मानना है कि उनकी तीन बेटियों में दोनों छोटी बेटियां आरोप लगाती हैं कि मम्मी सिर्फ दीदी की ही चर्चा करती हैं इससे लोग हमें उपेक्षा की दृष्टिï से देखते हैं। उसका कारण वे बताती हैं कि जब भी मेहमान आते हैं छोटी बेटियां खिसक  लेती हैं, ताकि उन पर आवभगत की जिम्मेदारी न आ पड़े। अकेले बड़ी बेटी ही उस जिम्मेदारी को पूरा करती है। आने-जाने वाले उसके इस व्यावहारिक ज्ञान की प्रशंसा करते हैं। इस बात को बिना समझे छोटी बेटियां बड़ी बेटी से चिढ़ी रहती हैं।
अरुणा जी को चाहिये कि इस बात को छोटी बेटियों को बैठाकर समझायें कि किसी के आने-जाने पर इस गैरजिम्मेदारी पूर्ण व्यवहार से वे अनाकर्षण का पात्र बनती जाती हैं। कर्तव्य ही वह सुन्दरता है जिससे लड़की सबके बीच आकर्षण का केन्द्र बनी रहती है। वह गुण दीदी ने स्वयं में विकसित किया है, उन्हें भी ऐसे गुणों को अपने अन्दर विकसित करना चाहिये।
अक्सर विनोद बाबू को छोटी बेटियों से यह शिकायत रहती है कि वे कोई कार्य करने को कह कर जायें तो वे भूल जाती हैं। इस विषय में उन्हें बड़ी बेटी से कोई शिकायत नहीं रहती। वह उनकी आज्ञा का पर्याप्त ध्यान रखती हैं। इससे वे सबसे ज्यादा बड़ी बेटी को प्यार करते हैं।
प्रभु जी का मानना है कि उनकी दो बेटियों में छोटी बेटी सदैव पढ़ाई में लापरवाह रहती है। उसका पढऩे में मन नहीं लगता। बड़ी बेटी को पढऩे के लिये कभी टोकना नहीं पड़ता। वह अपनी पढ़ाई स्वयं ही पूरी तन्मयता से करती है। कक्षा में प्रथम आती है। इसलिये वे बड़ी बेटी से सदैव प्रसन्न रहते हैं। उन्हें चाहिये कि छोटी बेटी से निराश होने के बजाय उसमें पढ़ाई के प्रति हो रहे है निरूत्साह का कारण तलाशें। वे अगर बड़ी बेटी के समान छोटी बेटी को इस कारण से प्यार नहीं कर पा रहे तो यह छोटी बेटी के साथ अन्याय होगा। प्रारब्ध से जीवन रचना एक-सी नहीं होती अवश्य ही छोटी बेटी का रूझान किसी अन्य क्षेत्र में होगा। लेकिन यह खोज करना तथा उस क्षेत्र में उसे लगाना प्रभु जी का काम है।  इस तरह आजकल शादी-विवाह के अंतर को लेकर भी बड़ी बेटी और छोटी बेटी या दोनों बेटियों के बीच आपसी तनाव बढ़ते जाते हैं। यदि बड़ी बेटी की शादी अच्छी हो जाये, आर्थिक सम्पन्नता अधिक हो और छोटी बेटी में कमी का एहसास हो तो उसे माता-पिता से न केवल शिकायत होती है बल्कि वह इसे मायके के दुर्भावनात्मक व्यवहार की देन समझ कर सदा के लिये दुखी रहती है। होना यह चाहिये कि वह कुछ हद तक माता-पिता की मजबूरी ही नहीं अपने भाग्य को भी समझे। स्वयं में संतोष की भावना को जन्म दे। माता-पिता के लिये अपनी कोई संतान अप्रिय नहीं होती। बच्चों में जिस प्रकार माता-पिता का स्नेह कम होते ही दुर्भावना का विकास होता है ठीक उसी प्रकार से अपने बच्चों के अंदर अपने प्रति सम्मान में कमी के कारण भी आकर्षण की कमी हो जाती है।
 माता-पिता या अन्य सगे संबंधियों सबमें वही प्रिय होता है जो अपने दैनिक कर्तव्य पूर्णत: निष्ठïा से पूरा करता हो। इस हेतु बहानेबाजी की कोई गुंजाइश नहीं होती। यदि बड़ी बेटी या बेटा इस जिम्मेदारी को ज्यादा मात्रा में समझ लेते हैं तो माता-पिता को उनके प्रति स्वयं कर्तव्यशील एवं सेवा भावना से प्रेरित होना चाहिये, जिससे वे सदैव खुश रहें। यही कर्तव्य भावना भावी जीवन का आधार बनती है।