हमारे मस्तिष्क में अनन्त शक्तियां सुषुप्त अवस्था में विद्यमान होती हैं। आधुनिक विज्ञान भी उस बात को स्वीकार करता है कि अधिकांश व्यक्ति अपने मस्तिष्क की 99 प्रतिशत से अधिक क्षमताओं का जीवनपर्यंत उपयोग किये बिना ही इस दुनिया से चले जाते हैं। आखिर ऐसा क्यों होता है? हम उन सुषुप्त शक्तियों को जाग्रत क्यों नहीं कर पाते? यदि मस्तिष्क की सुषुप्त क्षमताओं का पूर्ण उपयोग करना हम सीख लें तो हमारे जीवन की अधिकांश समस्याओं का समाधान सहज संभव हो सकता है।
प्रात:कालीन उदित सूर्यदर्शन से लाभ : सूर्योदय के समय लगभग एक घंटे के अंदर वायुमण्डल में अदृश्य पराबैगनी किरणों का विशेष प्रभाव होता है, जो विटामिन ‘डीÓ का सर्वोत्तम स्रोत होती है, जिससे नेत्र ज्योति बढ़ती है तथा शरीर के सभी आवश्यक तत्वों का पोषण होता है। हृदय रोग, मस्तिष्क विकार, आंखों के विकार आदि अनेक व्याधियां दूर होती हैं। ये किरणें रक्त में लाल और श्वेत कणों की वृद्धि करती हैं। श्वेत कण बढऩे से शरीर में रोग प्रतिकारात्मक शक्ति बढऩे लगती है। पराबैगनी किरणें तपेदिक, हिस्टिरिया, मधुमेह और महिलाओं के मासिक धर्म संबंधी रोगों में बहुत लाभकारी होती हैं।
सूर्य किरणें जीवनशक्ति बढ़ाती हैं, स्नायु दुर्बलता कम करती हैं, पाचन और मल निष्कासन की क्रियाओं को बल देती हैं, पेट की जठराग्नि प्रदीप्त करती हैं, रक्त परिभ्रमण संतुलित रखती हैं, हड्डियों को मजबूत बनाती हैं। रक्त में कैल्शियम, फास्फोरस और लोहे की मात्रा बढ़ाती हैं, अन्त:स्रावी ग्रन्थियों के स्राव बनाने में सहयोग करती हैं।
प्रकृति ने हमारे लिए सूर्य, जल, हवा, भोजन आदि ऊर्जा के अनेक विकल्प उपलब्ध कराये हैं, जिसमें सौर ऊर्जा ही एक ऐसा माध्यम है, जिसकी किरणों के विधिवत् नियमित सेवन से मस्तिष्क रूपी सुपर कम्प्यूटर को अधिक व्यवस्थित ढंग से संचालित किया जा सकता है।
मस्तिष्क को सोलेरियम बनाने में आंखों का योगदान : आधुनिक चिकित्सकों की ऐसी मान्यता है कि उदित होते हुए सूर्य की किरणों में नेत्रों के लिए स्वास्थ्यवर्धक गुण होते हैं। आंखें ही वह माध्यम हैं, जिनसे मस्तिष्क तक सौर ऊर्जा का प्रभाव सरलता से पहुंचाया जा सकता है। आंखें शरीर का बहुत ही नाजुक भाग होती हैं। अत: सूर्यदर्शन करते समय इस बात का विवेक और सावधानी आवश्यक है कि आंखों को किसी प्रकार की क्षति न हो और मस्तिष्क तक आवश्यक सौर ऊर्जा भी पहुंचायी जा सके। इसके लिए धीरे-धीरे प्रात:कालीन सूर्यदर्शन की अवधि बढ़ाकर आंखों को सूर्यदर्शन हेतु अभ्यस्त किया जा सकता है। प्रत्येक व्यक्ति प्रत्यक्ष-परोक्ष रूप से कम से कम अथवा ज्यादा सौर ऊर्जा का उपयोग करता ही है। उसके बिना हमारा जीवन चल ही नहीं सकता परन्तु सौर ऊर्जा के विधिवत् नियमित प्रयोग से ही मस्तिष्क की सुषुप्त शक्तियों को जाग्रत किया जा सकता है। शरीर की आवश्यकतानुसार इनका सेवन करने से हमें ऐसे चमत्कारी परिणाम मिल सकते हैं, जो बिना विधि प्राय: प्राप्त नहीं होते। यदि मनुष्य अपने शरीर को सोलेरियम (सौर ऊर्जा को संग्रह करने वाला सोलर कुकर) बना ले तो मस्तिष्क की सुषुप्त शक्तियों को सरलता से जाग्रत किया जा सकता है।
सूर्यदर्शन की विधि : प्रारम्भ में प्रथम दिन नंगे पैर धरती पर मिट्टी में सीधे खड़े होकर सूर्य को खुली आंखों से मात्र पांच सैकेण्ड के लिये निहारना प्रारम्भ करें। सूर्यदर्शन का समय प्रतिदिन अपनी अनुकूलता के अनुसार 5 सेकण्ड नियमित बढ़ाते जायें। सूर्यदर्शन के समय त्राटक करना आवश्यक नहीं है। इस प्रक्रिया की क्रमबद्ध अवधि बढ़ाने का यदि नियमित अभ्यास किया जाए तो कुछ महीनों में ही आश्चर्यजनक परिणाम मिलने लगते हैं।
मानसिक रोगों से मुक्ति : मात्र तीन महीनों के पश्चात सूर्य निहारने की अवधि का अभ्यास जब बढ़ाते-बढ़ाते 10 से 12 मिनट हो जाता है तो हमारे नेत्रों को मस्तिष्क से जोडऩे वाला हाइपोथेलेमस ट्रैक धीरे-धीरे सूर्य ऊर्जा से उत्प्रेरित (चार्जड) होने लग जाता है, जिससे व्यक्ति में आत्मविश्वास बढऩे लगता है तथा नकारात्मक सोच, तनाव, भय, निराशा आदि समाप्त होने लगती है। व्यक्ति का मनोबल मजबूत होने तथा सकारात्मक सोच विकसित होने से वह किसी को परेशान नहीं करता। उसकी दुष्प्रवृत्तियां एवं दुव्र्यसन स्वयं छूटने लगते हैं। सम्यक सोच होना ही आत्म विकास का प्रथम सोपान होता है।
शारीरिक रोगों से मुक्ति : सूर्य को निहारने से उसकी किरणों से व्याप्त सभी रंग मस्तिष्क ग्रहण करने लगता है। रंग चिकित्सा के सिद्धांतानुसार अलग-अलग रंगों का शरीर के अलग-अलग अंगों, उपांगों एवं अवयवों पर अलग-अलग विशेष प्रभाव पड़ता है। इन रंगों के संतुलन से ही मानव स्वस्थ तथा असंतुलन से रोगी बन जाता है। सूर्य की किरणों में वे सभी रंग होते हैं, जिनकी शरीर को आवश्यकता होती है। अत: उदित सूर्य के दर्शन की अवधि बढ़ाते-बढ़ाते लगभग 6 मास बाद जब 20 मिनट तक पहुंच जाती है तो सौर ऊर्जा के प्रभाव से मस्तिष्क में स्थित पीयूष और पिनियल ग्रन्थियां सक्रिय हो जाती हैं और अन्य ग्रन्थियों को भी सक्रिय बनाने लगती हैं। परिणामस्वरूप शरीर से सभी प्रकार के रोग दूर होने लगते हैं और व्यक्ति शारीरिक रोगों से मुक्त होने लगता है। जिस प्रकार प्राय: अधिकांश दवाइयां हम मुंह से लेते हैं, वे पेट में जाकर, जो रोग होता है, उस पर अपना प्रभाव डालती हैं, ठीक उसी प्रकार सूर्य की किरणों में होने वाले रंग मस्तिष्क के माध्यम से शरीर के अलग-अलग भागों में पहुंचकर उन सभी अंगों, उपांगों और अवयवों को संतुलित बना देते हैं। परिणामस्वरूप शारीरिक रोग ठीक होना प्रारम्भ हो जाते हैं।
भूख से मुक्ति : शारीरिक रोगों के ठीक होने के पश्चात्ï सूर्यदर्शन के समय की अवधि बढ़ाने से ग्रहण की गई सौर ऊर्जा शरीर में संग्रहित होने लगती है और शरीर सोलेरियम अथवा सोलर कुकर के समान बनने लगता है। सूर्यदर्शन की अवधि जब बढ़ाते-बढ़ाते लगभग 8 से 9 मास पश्चात 30 से 35 मिनट तक पहुंच जाती है तो सौर ऊर्जा के प्रभाव से भूख नहीं लगती।
व्यक्ति को आहार छोडऩे की आवश्यकता नहीं होती अपितु आहार ही उसे छोड़ देता है। जब ऐसी स्थिति 8-10 दिनों तक हो जाती है और कुछ न खाने के बावजूद शरीर में किसी प्रकार की कमजोरी अथवा थकावट नहीं आती तो शरीर सोलेरियम बन जाता है।
शरीर में हलन-चलन हेतु ऊर्जा की आवश्यकता होती है, जिसकी पूर्ति प्राय: हम भोजन, पानी और हवा के माध्यम से करते हैं। अनाज, सब्जियों और फलों अथवा अन्य माध्यम से जो भी भोजन हम ग्रहण करते हैं उसके उत्पादन में भी प्रत्यक्ष-परोक्ष रूप से सौर ऊर्जा का योगदान होता है। शरीर को ऊर्जा की आवश्यकता होती है। यदि उसकी पूर्ति किसी भी माध्यम द्वारा होती रहे तो आहार की आवश्यकता नहीं रहती। शरीर को ऊर्जा मिल जाने पर भूख का अनुभव नहीं होता, क्योंकि भूख और ऊर्जा का परस्पर संबंध होता है। सौर ऊर्जा मिलने से शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता। इस प्रकार उदित सूर्य को निहारने से मानव शरीर भी पेड़-पौधों की भांति सौर ऊर्जा को ग्रहण कर उसे शरीर के लिए आवश्यक अवयवों एवं पौष्टिïक तत्वों में बदलने की क्षमता प्राप्त कर लेता है। उसके पश्चात्ï प्रात:कालीन सूर्यदर्शन की आवश्यकता नहीं रहती। मात्र धूप में नंगे पैर कम से कम 45 मिनट चलने से शरीर में संग्रहित सौर ऊर्जा पुन: क्रियाशील हो जाती है।
लगभग एक साल तक ऐसा धीरे-धीरे नियमित अभ्यास करने से शरीर का सूर्य के प्रकाश के साथ बराबर तालमेल हो जाता है और उसके बाद मात्र थोड़ी देर धूप में चलने-फिरने से शरीर का सोलेरियम पुन: क्रियाशील हो जाता है।
सूर्यदर्शन सूर्योदय के 45 मिनट के अन्दर पूर्ण हो जाना चाहिए। उसके बाद सूर्यदर्शन से आंखों को क्षति पहुंचने की संभावना रहती है। सूर्यदर्शन की अवधि एक साथ जल्दी-जल्दी नहीं बढ़ानी चाहिए। आंखों के तालमेल के साथ-साथ हाइपोथेलेमस ट्रैक को उत्प्रेरित होने में जो समय लगता है वह भी अनिवार्य है। मस्तिष्क को सोलेरियम बनने में वैसा ही निर्धारित समय लगता है जैसे कि बीज को वृक्ष बनने में।
इस प्रकार सौर ऊर्जा के विधिवत प्रयोग से व्यक्ति के मानसिक एवं शारीरिक रोग दूर हो जाते ही हैं तथा सम्यक्ï सोच विकसित होने से वह किसी भी प्रकार की गलत प्रवृत्ति नहीं करता, जिससे उसको इस जीवन में शांति, समाधि के साथ अगला जीवन भी सुखद प्राप्त होता है। आज विश्व में हजारों व्यक्ति हीरा, रतन, माणक एवं सौर ऊर्जा के विधिवत प्रयोग द्वारा तनाव से मुक्ति तथा दुव्र्यसनों एवं दुष्प्रवृत्तियों से छुटकारा प्राप्त कर विवेक जाग्रत कर रहे हैं तथा सुखी जीवन जी रहे हैं।