काल सर्प योग का विभिन्न भावों में फल और उनके उपाय

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जन्म लग्न में जब सभी ग्रह राहु और केतु के मध्य किसी एक स्थिति में आ जाते हैं, तो उसे काल सर्प योग कहा जाता है। यह एक अशुभ योग है। यह जातक को आर्थिक, सामाजिक और मानसिक कष्ट पहुंचाने वाला योग है।
प्रथम भाव में राहु और सप्तम भाव में केतु होने पर मानसिक तनाव ज्यादा रहता है और दांपत्य सुख में अड़चनें आती हैं। यह अनंत काल सर्प योग कहलाता है।
सर्प की चांदी की आकृति बनवाकर शिव पूजन के समय इसका भी पूजन कर, शिव महिम्न स्तोत्र का 51 दिन पाठ करना चाहिए और सोमवार को कौओं, गायों, पक्षियों को दाना डाल कर और गरीबों को यथाशक्ति दान देकर नाग को पवित्र नदी में प्रवाहित कर देना चाहिए।
– द्वितीय भाव में राहु और अष्टम भाव में केतु होने पर कुलिक काल सर्प योग बनता है। इस योग से जातक को आर्थिक और पारिवारिक क्षेत्र में बार-बार परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
अपने ग्रहों के अनुकूल काल सर्प योग यंत्र प्राप्त कर उसकी विधिवत पूजा और यज्ञ, दान आदि करने से योग के दुष्प्रभावों का नाश होता है।
-तृतीय भाव में राहु और नवम में केतु होने पर वासुकी नामक काल सर्प योग प्रतिष्ठा को हानि और भाई-बहनों की ओर से चिंता देने वाला होता है। इस योग के व्यक्तियों पर झूठे अपवाद बहुत लगते हैं।
नाग पंचमी को नागों का पूजन कर रुद्राभिषेक करना चाहिए और ब्राह्मण तथा कन्या भोजन करा कर, विकलांग और निराश्रित व्यक्तियों की सहायता करनी चाहिए।
-चतुर्थ भाव में राहु और दशम भाव में केतु होने पर शंखपाल नामक काल सर्प योग होता है। यह चल-अचल संपत्ति का नाश करने वाला, वाहन दुर्घटना का कारक तथा मां को कष्ट देने वाला होता है।
नाग-नागिन की मूर्ति का पूजन कर वृद्धाओं को भोजन कराना चाहिए। कुल देवता का पूजन कर नाग प्रतिमा दान कर देनी चाहिए।
अंतरिक्षे ये दिवितेभ्य: सर्पेभ्योनम: ú सर्पेभ्यो नम:। मंत्र के सवा लाख जाप नियमानुसार कराकर, दान धर्म करना चाहिए।
-पंचम भाव में राहु और एकादश भाव में केतु होने पर पदम नामक काल सर्प योग होता है। जातक शिक्षा, संतान और प्रतियोगिता परीक्षाओं में हानि प्राप्त करता है। इस योग से ग्रस्त अनेक जातक लॉटरी, सट्टे, जुएं आदि में हानि उठाकर कंगाल होते देखे गए हैं।
-छठे भाव में राहु और द्वादश भाव में केतु महापदम काल सर्प योग का निर्माण करते हैं। जातक का अपना और परिवार के अन्य सदस्यों का स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता। असाध्य रोग घेरे रहते हैं। अकारण धन का व्यय होता रहता है। ननिहाल पक्ष के सुख में कमी आती है।
-सप्तम भाव में राहु और लग्न भाव में केतु होने से तक्षक नामक काल सर्प योग होता है। जातक को सदा मानसिक तनाव रहता है। स्त्री झगड़ालू या कुछ दोषपूर्ण प्राप्त होती है अथवा अल्पायु होती है। दोनों के बीच संबंध बिच्छेद की संभावनाएं बनी रहती हैं।
-पंचम, षष्टम और सप्तम भाव में बनने वाले काल सर्प योग भयानक किस्म के होते हैं। अत: जातक को किसी विशेषज्ञ से जन्मपत्रिका दिखा कर नियमित उपाय करना चाहिए। ऐसे व्यक्तियों के लिए काल सर्प यंत्र पूजन और महामृत्युंजय मंत्र का नियमानुसार पाठ कर दान-धर्म करना शुभ रहता है।
– अष्टम भाव में राहु और द्वितीय भाव में केतु होने पर कर्कोटिक नामक काल सर्प योग होता है। जातक को बीमारी और दुर्घटना का भय रहता है। ऐसा व्यक्ति, पूर्वजों से प्राप्त धन और सुयश को खो कर अपयश का भागी होता है। दुश्मन गुप्त षडय़ंत्र कर हानि पहुंचाते हैं।
ऐसे व्यक्ति को गणेश, भैरव और दुर्गा का पूजन, जाप, होम और दान-पुण्य करते रहना चाहिए। उसे पशुओं या मनुष्यों के चिकित्सालयों के निर्माण में सहयोग देना चाहिए। शिव मंदिर का निर्माण आदि करना चाहिए। नवम् भाव में राहु और तृतीय भाव में केतु होने पर शंखचूड़ नामक काल सर्प योग बनता है। यह भाग्योदय में अड़चन उत्पन्न करने वाला होता है और शत्रुओं से अपमानित कराता है।
इस योग के जातक के व्यवसाय में बार-बार अवरोध आते हैं। नियमानुसार पूजा घर में अपनी जन्मपत्रिका के अनुरूप काल सर्प सिद्ध यंत्र स्थापित कर, सर्प शांति, गायत्री के सवा लाख जाप कर, दशांश होम, ब्राह्मण भोजन, दान-धर्म आदि करना हितकर रहता है। सर्प शांति गायत्री मंत्र इस प्रकार है:
 नव कुलाय विद्महे विषदंताय धीमहि तन्नो सर्प प्रचोदयात।
-दशम भाव में राहु और चतुर्थ भाव में केतु होने पर पातक काल सर्प योग होता है। यह पिता के सुख, राज्य कार्यों और चुनाव आदि कार्यों में अनिष्टकारक होता है।
पितृ और घर के देवता (जिसकी भी वंश में मान्यता हो) नियमानुसार पूजा कर, गायों, पक्षियों और साधु-संतों को दान देना चाहिए। शिव पूजन कर शिव महिम्न स्तोत्र के सवा लाख जाप नियमानुसार करने से योग की शांति होती है।
– एकादश में राहु और पंचम भाव में स्थित केतु विषधर नामक काल सर्प योग की रचना करते है। यह आय, शिक्षा और संतान क्षेत्र में हानि पहुंचाता है।
स्वामी कार्तिकेय और काल सर्प यंत्र का नियमानुसार नित्य पूजन कर धार्मिक स्थानों के निर्माण में सहयोग, औषधालय, निराश्रित रोगियों और विधवाओं या गरीब की कन्याओं की सहायता से इस योग का प्रभाव दूर किया जा सकता है।
– द्वादश भाव में राहु और छठे भाव में स्थित केतु शेषनाग नामक काल सर्प योग उत्पन्न करते हैं। इस योग के कारण व्यर्थ व्यय और मानसिक चिंताएं लगी रहती हैं। समाज या परिवार में व्यर्थ के विवाद होते रहते हैं। भलाई का बदला बुराई से प्राप्त होता है और मन की शांति जाती रहती है।
शिव-पार्वती का पूजन, दुर्गा सप्तशती का नियमानुसार पाठ और विष्णु सहस्र नाम का पाठ तथा पूजन कर दान-धर्म करने से योग का दुष्प्रभाव नष्ट होता है।