मेटत कठिन कुअंक भाल के

श्री रामचरित मानस में संत महाकवि तुलसीदास ने मंत्र शक्ति के सम्बन्ध में वर्णन किया है।
मंत्र महामणि विषय ब्याल के।
मेटत कठिन कुअंक भाल के॥
आज के व्याधि, रोग-शोक, कलह-क्लेश, ईष्र्या-द्वेष, बेर-हिंसा, अकाल-अभाव, अनाचार-स्वेच्छाचार आदि से पीडि़त मानव को भगवदुपासना, ईश्वराधन मंत्र जप से धर्म अर्थ काम मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है।
शारदा तिलक एवं मंत्र महोदधि में मंत्र तीन प्रकार के बताये गये हैं। पुल्लिंग-स्त्रीलिंग-नपुंसक लिंग।
जिस मंत्र के अंत में ‘हुं फट्’ हो उसे पुरुषमंत्र कहते हैं जैसे ‘ऊं हं हनुमते रुद्रात्मकाय हूं फट्’ यह हनुमान जी का मंत्र है। इस मंत्रानुष्ठान से साधक को तत्काल फल मिलता है।
 मंत्र महार्णव पूर्व खण्ड में मंत्रोल्लेख मिलता है। जिस मंत्र के अंत में ‘स्वाहा’ शब्द हो उसे स्त्री मंत्र अर्थात् स्त्री लिंग कहा जाता है ‘यथोक्तं ऊं पूर्व कपि मुखायच्च मुख हनुमते टं टं टं टं  टं सकल शत्रु संहारणाय स्वाहा’। यह शत्रु संकट निवारणार्थ हनुमद्-मंत्र है। जिस मंत्र के अंत में ‘नम:’ हो वह नपुंसक लिंग कहलाता है जैसे- ‘रां रामाय नम: अथवा कृष्णाय नम:’। श्रीकृष्ण पंचाक्षर मंत्र या श्री गणेशाय नम:।‘
एक ही परमतत्व परम प्रभु को शिव अथवा राम या विष्णु, रुद्र, सदाशिव, परब्रह्म परमेश्वर महेश्वर, सवेश्वर कहा गया है। परब्रह्म परमात्मा शिव महेश्वर रुद्र नर भी है नारी भी हैं। अत: उनके उपासकों के लिए उनके पुल्लिंग मंत्र भी है स्त्रीलिंग और नपुंसक लिंग मंत्र भी है, क्योंकि शिव से भिन्न कुछ है ही नहीं, शिव से भिन्न शक्ति नहीं है। और शक्ति से भिन्न शिव नहीं है। तभी उन्हें भगवान अद्र्धनारीश्वर भी कहा जाता है। वह भगवान है वही भगवती भी है तभी कहा गया है शिव नर उमा नारी तस्मै तस्यै नमो नम:। भगवान के लिए कहा गया है त्वम्ï स्त्री त्वम् पुमान्। शिव कुटस्थ तत्व है और आद्यशक्ति  परिणामिनी तत्व है जैसे पुष्प में गंध, सूर्य में प्रभा नित्य और स्वभाव सिद्ध है उसी प्रकार शिव में शक्ति भी, भगवान में भगवती स्वभाव सिद्ध है। सदाशिव का अर्थ है नित्य मंगल त्रिकाल मंगल अर्थात्ï मंगलमय कल्याण कर्ता शंकर। श्वेताश्वतरी-परिषद में पूछा गया जगत का कारण जो ब्रह्म है वह कौन है? कि कारणम् ब्रह्म। वेद ने ब्रह्म शब्द के स्थान पर रुद्र, शिव शब्द प्रयोग किया किं कारणं ब्रह्मा। का उत्तर श्रुति में दिया एको हिरूद्र, स शिव:।
लीला भेद से अवतार भेद से भगवान एक रूप से अनेक रूपों में भाषित होता है, दर्शन देता है। अत: आराधक उपासक रुचि के अनुरूप भिन्न-भिन्न रूपों में मूर्तियों में भगवदुपासना मंत्रानुष्ठान करता है, क्योंकि प्रेम में रुचि का अत्यधिक महत्व है अत: उपासकों के हित के लिए उनकी रुचि के अनुसार ईश्वर भिन्न रूपों में प्रकट हो भक्तों का उपासकों का कल्याण करता है कामनाएं पूर्ण करता है। अनन्तानन्त ब्रह्माडों में संसार में बहुत मंत्र हैं। जिनमें सात करोड़ महामंत्रों की संख्या है अत: इस प्रकार असंख्य अनन्त मंत्र है जिनमें दो महामंत्र दिव्याति दिव्य विशिष्टाति विशिष्ट है। वह हैं श्री राम अथवा श्री शिव यह दो अक्षर वाले सभी मंत्रों में राम मंत्र श्रेष्ठाति श्रेष्ठ है। महामंत्र सोई जपत महेसू।
अभ्यात्म रामायण में भगवान शिवजी पार्वती जी से कहते हैं में श्री राम नाम जपता हूं। यथा-
अहं भवन्नाम गुणन कृतार्थो,
वसामि काश्यामनिशे भवान्य।
मुमूर्षमाणस्य विमुक्त ये हं,
दिशामि मंत्र तब राम नाम। अ.रा. 15/62
भगवान विष्णु देवर्षि नादर से कहते हैं-
जपहु जाई संकर सतनामा।
मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम ने रामेश्वर ज्योतिर्लिंग की स्थापना पूजा अर्चना की और कहा-शिव समान प्रिय मोहि न दूजा।
मंत्रानुष्ठान भगवन्नाम जप से अनेक ऋषि, मुनि, नर-नारियों को परम लाभ हुआ, भगवद्ïदर्शन हुआ जो पुराणों महाभारत, रामायणादि ग्रन्थों में पढ़ा जा सकता है।
भगवान शंकर के अनेक  मंत्र हैं, जिनमें नम: शिवाय पंचाक्षर मंत्र परम प्रसिद्ध परमोपयोगी सिद्धिदायक महामंत्र है। ऊं मंत्र के पहले लगाने से ऊं नम: शिवाय। षडाक्षर हो जाता है। इसकी महिमा अत्यधिक संक्षेप में इतना कहना है कि इस पंचाक्षर या षडाक्षर शिव मंत्र का अनुष्ठान जप छत्तीस लाख का होता है।
इस मंत्र के जाप से व्यक्ति धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की प्राप्ति कर सकता है। सकल कामनाओं की सिद्धि प्राप्त कर सकता है। इस मंत्र के वामदेव ऋषि हैं, पंक्ति छन्द हैं और ईशान देवता हैं।
 विश्वासपूर्वक मंत्रानुष्ठान करने से सभी सिद्धियां साधक को प्राप्त हो सकती हैं। विधिवत् अनुष्ठान करना चाहिए।
श्रीराम का षडक्षर मंत्र भी अति लाभकारी है।
षडक्षर राम मंत्र- ‘ रां रामाय नम:’ है जिसे चिन्तामणि भी कहा जा सकता है, किसी भी कामना को पूर्ण करने के लिए इस राम मंत्र का साधक को, उपासक को अनुष्ठान करना चाहिए। इस मंत्र के ब्रह्मा ऋषि हैं, गायत्री छन्द है श्रीराम देवता है रां बीज और नम: शक्ति है। विधिवत न्यास ध्यानार्चन करते हुए साधक को राममंत्रोनुष्ठान करना चाहिए। पूरा अनुष्ठान छह लाख जप का होता है। यह परम सिद्धदाता कल्याणकारी श्रीराम का महामंत्र है। इसकी अपार महिमा है, इससे अनेक लाभ हैं। परमोपयोगी अति विशिष्ट मंत्र है। अनुष्ठान विधिवत शास्त्रोक्त रीति से निष्ठापूर्वक करना चाहिए। मन एकाग्र करने हेतु अभ्यास करे। नाम जप बुद्धि से-राम जप करना भी अतिश्रेष्ठ एवं परम कल्याणकारी है। राम नाम आनन्दोल्लासवद्र्धक जन सुखकारी है। कहत सुनत सब कर हित होई। अपार राम नाम की महिमा है नाम जप चलते-फिरते, उठते-बैठते राम-राम कहा जा सकता है। द्वय अक्षर राम-जप किया जा सकता है। नाम बुद्धि जप में विधि की छूट है नियम की भी आवश्यकता नहीं। कर से करो काम मुख से बोलो राम। यहां तक राम जपने के लिए तुलसीदास ने वर्णन किया-
‘भाव कुभाव अनख आलस हूं।
नाम जपत मंगल दिसि दसहू॥‘
ईश्वराधन भगवदुपासना में मन की एकाग्रता तल्लीनता होना परमावश्यक है। स्त्रोव गान से एकाग्रता आती है। अत: साधक शिव महिम्र: स्त्रोत जो सिद्धि स्त्रोत कहा जाता है, इस महिम्र:स्त्रोत का गान करें अथवा श्रीराम रक्षास्त्रोत् या तुलसी कृत रुद्राष्टक स्त्रोत की पाठ गान स्तुति करें।
उपासना में स्त्रोत पाठ का अत्यधिक महत्व दिया गया है। अत: साधक भगवान के मंत्र का जप अथवा भगवन्नाम के कीर्तन से भगवत् स्त्रोत के आश्रय से सिद्धि प्राप्त कर सकता है।