फिरोजपुर शहर एवं छावनी में गर्मी का प्रकोप बढऩे के साथ कुम्हारो के देसी फ्रिज कहे जाने वाले घड़ों की डिमांड मध्य और गरीब परिवारों में बढ़ती जा रही है। यहां का तापमान 46 डिग्री से भी ऊपर पहुंच रहा है, इसके पश्चात आधुनिक घड़ों से कुम्हार की दुकान सजी हुई दिखाई दे रही है।
मटके को गरीबों का फ्रिज भी कहा जाता है इसमें पानी की शुद्धता और शीतलता बनी रहती है, देखने में आया है कि अमीर वर्ग भी अब घड़ों के प्रति आकर्षित हो रहा है।
पिछले सालों से फ्रिज और वाटर कूलर आने से मटको की मांग में भारी पतन आया था ,परंतु जब बड़े बूढ़े लोग मटकों में पानी की शीतलता को याद करते हैं तो घड़े उनकी पहली पसंद पुन: बनते जा रहे हैं । बदलते जमाने के साथ-साथ घड़ों का स्वरूप भी पूर्ण रूप से बदल रहा है। साधारण घड़ों की बजाय अब लोग सजावटी घड़े खरीदने को प्राथमिकता दे रहे हैं।
आयुर्वेदिक डॉक्टरों का कहना है कि घड़े में प्राकृतिक रूप से पानी ठंडा रहता है। मिट्टी के घड़ों की खासियत यह है कि घड़े का पानी स्वास्थ्य के लिए काफी लाभदायक साबित होता है और पानी के मिनरल को भी बनाकर रखता है। इसलिए आज भी शहरों कस्बों में गर्मी के सीजन में स्थापित प्याऊ केन्द्रों में घड़ों का ही प्रयोग किया जाता है।
घड़े का पानी इतना ठंडा नहीं होता जो गले को खराब कर सके। बल्कि घड़े का पानी पीने से सुखद महसूस होता है और गला भी खराब नहीं होता।
मिट्टी के घड़े का पानी प्राकृतिक रूप से ठंडे और शीतल होता है जो मनुष्य को कई बीमारियों से भी बचाता है।
गीता प्रचार कमेटी के अध्यक्ष श्री प्रेम नाथ शर्मा का कहना है कि हमें बर्फ का पानी पीने से परहेज करना चाहिए। बर्फ जहां गले को खराब करती है। वहीं कई बीमारियों का कारण भी बनती है।
डॉक्टर के सी अरोड़ा का कहना है कि गर्मियों में ताजे पानी का सेवन करना सेहत के लिए लाभदायक होता है । मिट्टी में कई प्रकार के मिनरल होते हैं जो मनुष्य के लिए लाभदायक साबित होते हैं। मटके बनाने का काम करने वाले दीनानाथ प्रजापति का कहना है की कोई समय था जब घड़ों की बिक्री गर्मियों में हाथों-हाथ हो जाती थी।
फ्रिज और वाटर कूलर के पानियों से आदमी की प्यास बुझ नहीं सकती लेकिन एक बार घड़े का पानी पीने से ज्यादा प्यास नहीं लगती। अब हम बहुत कम घड़े बनाते, बाहर से घड़ों को मंगवाया जाता है।
अब उनके पास आधुनिक सजावटी घड़ों का भंडार है। आज टोंटी वाले घड़ों का प्रचलन भी मार्केट में बढ़ता जा रहा है। वह अधिकतर सामान गुजरात के धामगढ़ और कोलकाता से मंगवाते हैं। आज भी लोग बड़े धड़ले से घड़ों की खरीददारी करते हैं बल्कि टोंटी वाले घड़े और सुराही ज्यादा बिक रही है।
गुजराती घड़ों ने मार्केट में अपनी अलग पहचान कायम कर ली है। उन्होंने बताया की बढ़ती मंहगाई के कारण घड़ों के रेट भी आसमान को छू रहे हैं। आम घड़ा 100 रूपए से कम नहीं मिलता। जबकि टोटी लगे घड़ों की कीमत ढाई सौ से 400 तक होती है। अब गुजराती घड़े बड़ी-बड़ी कोठियां में भी विराजमान हो रहे हैं। लोग महंगे और सजावटी घड़ों को खरीदने में प्राथमिकता दे रहे हैं।
अबोहर के पास गांव खुईयाँ सर्वर में भी कुछ कुम्हार लोग रंगीन घड़ों का निर्माण करके दिल्ली व मुंबई की बड़ी-बड़ी मार्केट में बेच रहे हैं। गर्मियों में ऐसे घड़ों की मांग बढ़ जाती है।
खुईयां सरवर गांव रंगीन घड़ों और सुराहियों की एक बड़ी मार्केट बनता जा रहा है। पंजाब के बड़े-बड़े अधिकारी भी इसको खरीद रहे हैं यहां के रंगीन मटके और सुराहियां विदेशों में भी भेजे जा रहे हैं।