अच्छा नहीं होता काम को टालते रहना

मिताली की अंग्रेजी शुरू से कमजोर है। वह ऐसे परिवार को बिलांग करती है, जहां घर के किसी सदस्य को अंग्रेजी नहीं आती। इसलिए मिताली का माहौल भी कुछ जिम्मेदार है, कुछ उसकी अपनी अरुचि, लेकिन मिताली क्या करे बिना अंग्रेजी के तो सब शिक्षा आज के जमाने में सून है। परसों अंग्रेजी का पेपर है चिंता, तनाव और नर्वसनेस के कारण मिताली की हालत इतनी खराब हो गई कि उसे इलाज के लिए मनोचिकित्सक के पास ले जाना पड़ा।
 मिताली चाहती तो इस परेशानी से बच सकती थी। रोज यह कहकर बस कल से अंग्रेजी की तैयारी शुरू करूंगी। वह अंग्रेजी पढऩा टालती रहती थी। उसी का अंजाम था उसका इस हाल में पहुंचना।
सफलता उसी को मिलती है जो मेहनत और लगन से अपने ध्येय को प्राप्त करने की ओर अग्रसर होता है। टालने की आदत के चलते इंदिरा नुई, किरन मजूमदार, सानिया मिर्जा, असीम प्रेमजी, नारायणमूर्ति, के.पी. सिंह, लता मंगेशकर, आशा भोंसले, सोनू निगम क्या उस मुकाम पर पहुंच पाते जिस पर आज वे हैं?
आज का युग गहरी प्रतिस्पर्धा का है, यहां रुकने का काम नहीं बस एक चूहा दौड़ है, जिसमें दौड़ते ही जाना है।
काम को टालते रहने की आदत धीरे-धीरे नेचर बन जाती है इसलिए इससे पहले कि यह स्वभाव में गहरे जड़ जमा लें, इसे बदल डालिए। आपको कुछ बातों का खासतौर से ध्यान रखना होगा:-
व्यक्तित्व दृढ़ बनाएं
ढुलमुल व्यक्तित्व वाले इंसान को कोई पसंद नहीं करता। अपनी इस कमजोरी के चलते उसका सेल्फ एस्टीम भी लो लेवल पर ही रहता है। उसी प्रकार तुरंत निर्णय लेने की जहां सख्त जरूरत होती है, वहां उसे टालते हुए देर कर देने से गाड़ी छूट जाती है और व्यक्ति हाथ मलता रह जाता है।
मान्यता के लिए एक बहुत अच्छा रिश्ता आया था। परिवार में सभी को लड़का बेहद पसंद था। लड़के ने जब मान्यता की राय जाननी चाही, मान्यता ने जवाब के लिए एक हफ्ते का समय मांगा। हफ्ता बीत जाने पर उसने फिर कुछ समय मांगा। फिर भी जब वह हां या नहीं कह सकी तो लड़के ने स्वयं ही मना कर दिया। वह ऐसी लड़की से विवाह नहीं करना चाहता था, जिसे जीवन का अहम् फैसला भी टालते रहने में संकोच न था।
बचपन से ही ध्यान दें
हर काम समय पर करने की आदत बचपन से ही डाल दी जाए तो बेहतर है। इससे जिन्दगी में काफी कुछ ऑर्गेनाइज्ड रहेगा और कम प्राब्लम्स का सामना करना पड़ेगा।
काम को टालते रहने की आदत होने पर व्यक्ति को उस समय तो राहत मिल जाती है। यह सोचकर कि चलो अभी तो जान छूटी फिर की फिर देखेंगे, लेकिन फिर तो फिर ही है।
चिराग से कोई जिन निकलकर नहीं आने वाला है, काम करने के लिए। स्वयं अगर समय पर काम निपटा लेंगे तो स्ट्रैसफ्री रहेंगे। खुश रहेंगे।