रांची, 30 अगस्त (भाषा) झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) छोड़ने के दो दिन बाद पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन शुक्रवार को यहां भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल हो गए। राज्य की सत्तारूढ़ पार्टी की वर्तमान कार्यप्रणाली पर सवाल उठाने और खुद को ‘अपमानित’ किए जाने का आरोप लगाते हुए सोरेन ने झामुमो से दशकों पुराना नाता तोड़ लिया था।
केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान और असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व शर्मा की मौजूदगी में सोरेन बड़ी संख्या में अपने समर्थकों के साथ भाजपा में शामिल हुए। इस दौरान उनका जोरदार स्वागत किया गया, जिससे सोरेन कुछ समय के लिए भावुक भी हो गए।
राज्य की प्रमुख विपक्षी पार्टी में शामिल होने के बाद उन्होंने कहा, ‘‘दिल्ली और कोलकाता में झारखंड सरकार द्वारा निगरानी में रखे जाने के बाद, भाजपा में शामिल होने का मेरा संकल्प और मजबूत हो गया।’’
उन्होंने यह भी कहा कि भाजपा आदिवासियों की पहचान बचा सकती है और झारखंड के संथाल परगना में घुसपैठ रोक सकती है।
कांग्रेस द्वारा आदिवासी पहचान को दांव पर लगाने का आरोप लगाते हुए चंपई सोरेन ने कहा, ‘‘मैं लोगों को न्याय दिलाने के लिए प्रतिबद्ध हूं।’’
उन्होंने कहा, ‘‘मैंने अपने खून-पसीने से झामुमो का आगे बढ़ाया, लेकिन मुझे अपमानित किया गया। मुझे भाजपा में शामिल होने के लिए मजबूर किया गया है। अब मुझे दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी का सदस्य होने का गर्व है। मैं अपमान और जासूसी बर्दाश्त करने की स्थिति में नहीं था।’’
आदिवासी नेता (67)के भाजपा में शामिल होने को राज्य की मुख्य विपक्षी पार्टी की बड़ी सफलता के रूप में देखा जा रहा है। माना जा रहा है कि इससे राज्य के अनुसूचित जनजाति वर्ग में भाजपा को अपनी स्थिति मजबूत करने के प्रयासों में बल मिलेगा। यह समुदाय झामुमो का मुख्य आधार रहा है।
चंपई सोरेन को झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन का सबसे निकट सहयोगी माना जाता था।
धन शोधन के एक मामले में प्रवर्तन निदेशालय द्वारा गिरफ्तारी और फिर हेमंत सोरेन के इस्तीफे के बाद सोरेन को दो फरवरी को मुख्यमंत्री नियुक्त किया गया था।
हेमंत सोरेन को जमानत मिलने के बाद उन्हें 3 जुलाई को पद छोड़ना पड़ा था। हेमंत सोरेन 4 जुलाई को फिर से राज्य के मुख्यमंत्री बने।
पार्टी सुप्रीमो शिबू सोरेन को बुधवार को लिखे पत्र में चंपई ने कहा कि झामुमो के कामकाज की वर्तमान शैली और उसकी नीतियों से दुखी होने के बाद वह इस्तीफा देने के लिए मजबूर हुए हैं।
उन्होंने कहा था, ‘‘मैंने कभी कल्पना नहीं की थी कि मैं झामुमो छोड़ूंगा, एक ऐसी पार्टी जो मेरे लिए एक परिवार की तरह है… अतीत की घटनाओं के मोड़ ने मुझे बहुत दर्द के साथ यह निर्णय लेने के लिए मजबूर किया … मुझे यह कहते हुए दुख हो रहा है कि पार्टी अपने सिद्धांत से भटक गई है।’’
चंपई ने इससे पहले नयी दिल्ली में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात कर भाजपा में शामिल होने के अपने फैसले की घोषणा की थी।
चंपई ने मंगलवार को जोर देकर कहा था कि वह आदिवासी पहचान और अस्तित्व को बचाने के लिए वह भाजपा में शामिल हो रहे हैं, जो बांग्लादेश से बड़े पैमाने पर घुसपैठ के कारण राज्य के संथाल परगना में दांव पर है।
उन्होंने दावा किया था कि ये घुसपैठिए स्थानीय लोगों को आर्थिक और सामाजिक नुकसान पहुंचा रहे हैं और अगर इन्हें नहीं रोका गया तो संथाल परगना में इस समाज का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा।
चंपई ने आरोप लगाया कि पाकुड़ और राजमहल सहित कई क्षेत्रों में घुसपैठियों की संख्या आदिवासियों की तुलना में अधिक हो गई है।
झारखंड के सरायकेला-खरसावां जिले के जिलिंगोला गांव में 11 नवंबर 1956 को जन्मे सोरेन ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत 1991 में सरायकेला सीट पर निर्दलीय विधायक के रूप में हुए उपचुनाव जीतकर की थी।
बाद में उन्होंने 1995 में झामुमो उम्मीदवार के रूप में फिर से चुनाव लड़ा और सीट जीती। चार साल बाद उन्होंने झामुमो के टिकट पर इस सीट से विधानसभा चुनाव लड़ा और भाजपा के पंचू टुडू को हराया।
चंपई सोरेन ने बुधवार को झामुमो छोड़ दिया था। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार की वर्तमान कार्यशैली और नीतियों ने उन्हें पार्टी को छोड़ने के लिए मजबूर किया है जिसकी उन्होंने कई वर्षों तक सेवा की है।
अलग झारखंड राज्य के लक्ष्य से 1990 हुए आंदोलन में उनके योगदान के लिए उन्हें ‘झारखंड का टाइगर’ भी कहा जाता है।
झारखंड को 2000 में बिहार के दक्षिणी हिस्से से अलग करके बनाया गया था।
राज्य की 81 सदस्यीय विधानसभा के लिए इस साल के अंत में चुनाव होने हैं।