अंग्रेजी के शब्द इन्टीरियर डेकोरेशन का हिन्दी अनुवाद आन्तरिक सज्जा माना जाता है- कुछ अंशों में इसे गृह सज्जा भी कहा जा सकता है। यह एक ऐसा क्षेत्र है जो सौन्दर्य वृद्धि से संबंध रखता है। दार्शनिकों के अनुसार सौन्दर्य शाश्वत आनन्द का स्त्रोत माना गया है।
प्राकृतिक सौन्दर्य मानव के लिये ईश्वर का बहुत बड़ा उपहार है, जिसके लिए कई कवियों ने चित्ताकर्षक कवितायें लिखी हैं। जॉन कीट्स, शैली, शेक्सपीयर, चाइरन, वर्डसवर्थ के नाम प्रमुखता से लिये जाते हैं- इनके साथ ही सौन्दर्य के उपासक भारतीय कवि सुमित्रानन्दन पंत को भी नहीं भुलाया जा सकता। इन कवियों ने सुन्दरता के मनोहारी चित्र प्रस्तुत किये हैं। सुन्दरता में रची-बसी यह प्रकृति कवियों तथा गीतकारों को लुभाती रही है। वडर््सवर्थ प्रकृति के महान पुजारी के रूप में जाना जाता है, वह कहता है कि पहाड़ों तथा झीलों का देखना किसी भी प्रकार ईश्वरोपासना से कम नहीं है। शैली पश्चिमी हवा को संरक्षक तथा संहारक के रूप में देखता है, वाइरन समुद्र को ईश्वर के रूप में लेता है, शेक्सपीयर ऊंचे-ऊंचे पहाड़ों से उपदेश सुनता था। इस प्रकार मनुष्य द्वारा निर्मित किसी भी वस्तु की सुन्दरता प्राकृतिक सौन्दर्य की बराबरी नहीं कर सकती।
आज भौतिक विकास की चकाचौंध में तथा प्राकृतिक साधनों के बेतहाशा उपयोग से प्राकृतिक सौन्दर्य भुलाया जा रहा है और मनुष्य का प्रकृति से संबंध टूटता जा रहा है। पर मानव मन इसको प्रभावित नहीं करता हो, ऐसा भी नहीं माना जा सकता। मनुष्य कहीं भी प्रवेश करे वह वहां की व्यवस्था से नि:सन्देह प्रभावित होता ही है। बैठक में फूलदान के साथ टेबल के चारों ओर उपयुक्त कोण बनाते हुए सोफा तथा अन्य कुर्सियां आपको प्रभावित किये बिना नहीं रहते। कुर्सी पर पीठ का कपड़ा किस रंग का है- सोफे पर गद्दी का गिलाफ किस रंग का है, उस पर काढ़े गये फूल किस रंग के है, क्या ये सह रंग दीवार की पुताई के रंग से मेल खाते हैं? खिड़कियों के पर्दों का रंग कैसा है, दीवार रंग कैसा है, फर्श का कालीन किस रंग का है या सामान्य दरी किस रंग की है, कुर्सी टेबल, मेज, फूलदान उपयुक्त स्थान पर सही दिशा में ठीक कोण पर ठीक दूरी पर रखी है, फूलदान में फूलों की संख्या तथा उनका रंग भी अपना अनोखा प्रभाव डालते हैं, आदि किसी मनुष्य का मन मोहे बिना नहीं रह सकती। इन सब वस्तुओं का प्रभाव चाहे निवास गृह हो या किसी उद्योगपति के व्यवसाय का कार्यालय या किसी होटल का स्वागत कक्ष या किसी विचार गोष्ठी का सभाकक्ष हो, दर्शकों पर उनके मन पर प्रभाव पड़ता ही है। और हां, इस सब सजावट का प्रभाव व्यवसाय पर भी सकारात्मक रूप से पड़ता है और तो और, आज तो सामान्य नागरिकों के घरों में भी सजावट पर भी ध्यान दिया जाने लगा है।
नीला आकाश, समुद्र की लहरें, नालों में कल-कल करता पानी, बहुंरगी फूदकनी तितली, आसमान में उमड़ते घुमड़ते बादल, सप्तरंगी इन्द्रधनुष, खेतों की हरियाली, सूर्य की चमकीली किरणें, पवित्र ओस की बून्दें, फूलों पर बैठती हुई मधु मक्खियां, डूबते या उगते सूर्य का दृश्य, पेड़ों की झुरमुट में पक्षियों का कलरव मानव को प्रसन्नता प्रदान करते हैं तथा सजावट विद्या की शिक्षा प्राप्त एक विद्यार्थी अपने अनुभव से इन सब दृश्यों को अपनी कलम चित्रित कर देता है। कौन ऐसा अभागा मनुज होगा जो प्रकृति के इन उपादानों को देखकर सौन्दर्यनुभूति के साथ अपने आपको न भुला है। निश्चय ही वह प्रकृति के साथ तादात्म्य स्थापित कर चरम सीमा की प्रसन्नता से भर जायेगा। एक उदास तथा गमगीन मनुष्य को भी प्रकृति के यह दृश्य प्रसन्नता, उत्साह तथा प्रेरणा से भर देता है। आन्तरिक सज्जा का विद्यार्थी घर बैठे मानव को प्रकृति के दर्शन करा देता है, उसको आनन्दतिरेक की स्थिति में ला देता है। इन सब बातों से लगता है कि प्रकृति का सौन्दर्य मनुष्य तथा ईश्वर में लोक कल्याणकारी तादात्म्य स्थापित कर देता है।
सजावट के विद्यार्थी के लिए वांछित व्यक्तित्व – सौन्दर्य के प्रशंसक विद्यार्थियों के लिए यह पाठ्यक्रम अधिक उपयुक्त रहता है, सुन्दर वस्तु की प्रशंसा करने का अभ्यास ही नहीं वरन् बात की बात में तुलिकाबद्ध करने की क्षमता विकसित करने के लिए भी तत्पर रहना चाहिए। पाठ्यक्रम समाप्त करने के बाद भी कुछ नया जानने-सीखने की जिज्ञासा बनी रहनी चाहिए क्योंकि संस्थान में प्राप्त शिक्षा से कोई विशेषज्ञ नहीं बन जाता, फिर सौन्दर्य पारखी बनना तो दूर, अत: व्यक्ति में कुछ नया करने की बलवती इच्छा बनी रहनी चाहिए। जो व्यक्ति अपने में इस इच्छा को जितनी अधिक तथा जितने अधिक समय तक जीवित रख सकेगा, वह उतना ही अधिक सफल होगा, तथा मिलने वाला पारिश्रमिक भी उसी अनुपात में बढ़ा सकेगा।
इस पाठ्यक्रम से विद्यार्थी को सूत्र रूप में यह सिखाया जाता है कि उपलब्ध स्थान को अधिकाधिक आकर्षक तथा सुविधाजनक कैसे बनाया जाये तथा कैसे उसकी उपयोगिता में वृद्धि की जाये?
प्रवेश की विधि – यह एक व्यावसायिक पाठ्यक्रम है अत: प्रवेश बड़ा कठिनाई से होता है। प्रवेश समाचार-पत्रों में प्रवेश सूचना की विज्ञप्ति के माध्यम से होता है। प्रवेश का आधार पूर्व की परीक्षा में प्राप्तांक होते हैं अत: प्रवेश के इच्छुक विद्यार्थियों को उच्च अंकों के साथ उत्तीर्ण होना चाहिए। सेकेण्डरी या हाईस्कूल परीक्षा उत्तीर्ण विद्यार्थी इस पाठ्यक्रम में प्रवेश के लिए पात्र होते हैं।
पाठ्यक्रम की अवधि, शुल्क तथा छात्रवृत्ति- इस पाठ्यक्रम की अवधि तीन वर्ष होती है तथा सफलतापूर्वक परीक्षा उत्तीर्ण करने पर डिप्लोमा प्रदान किया जाता है। दिल्ली में यह पाठ्यक्रम महिलाओं के लिए दो राजकीय संस्थाओं में संचालित है जहां शुल्क नाम मात्र का लिया जाता है, जिससे अच्छी उच्च स्तरीय शैक्षिक सम्प्राप्ति वाली पर निर्धन छात्रायें भी प्रवेश पा सकती हैं। बहुत कम प्रतिशत छात्राओं को छात्रवृत्ति तथा कुछ को शुल्क मुक्ति की सुविधा भी उपलब्ध है।
सजावट की शिक्षा देने वाले संस्थान- भारत में इस प्रकार की शिक्षा देने वाली संस्थायें अंगुलियों पर गिनी जा सकती हैं। इसका अर्थ अनिवार्यत: यह वही लिया जाना चाहिए कि भारतीय सौन्दर्यप्रेमी नहीं है। महिलाओं के में संस्थान है-
1. औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान, महारानी बाग तला
2. औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान, दक्षिणी परिसर (दोनों दिल्ली)।
इन राजकीय संस्थानों के सिवाय निम्नलिखित दो और स्थानों पर भी सह शिक्षा के रूप में यह पाठ्यक्रम उपलब्ध है।
1. राष्ट्रीय डिजाइन संस्थान, अहमदाबाद (गुजरात) और
2. जे.जे. स्कूल ऑफ आट्र्स, बम्बई (महाराष्ट्र)।
ऊपर दिये स्थानों के सिवाय अन्य स्थानों पर प्रवेश के इच्छुक विद्यार्थियों को समाचार-पत्रों के सम्पर्क में रहना चाहिए जिनमें प्रवेश विज्ञप्तियां प्रकाशित होती रहती हैं। अन्य स्थानों पर प्रवेश का एक अन्य तरीका यह भी हो सकता है कि इन ऊपर दिये संस्थानों के निर्देशकों से इस आशय का पत्राचार किया जाय या व्यक्तिश: सम्पर्क बनाया जाये।
सावधानी- राजकीय संस्थानों के सिवाय अन्य कोई संस्थान न तो समान रूप से विश्वसनीय है तथा न ही पढ़ाई की पूरी व्यवस्था कर पाते हैं, न उनकी उच्च स्तरीय साख होती है। ऐसी संस्थाएं शिक्षण शुल्क भी मनमाना वसूल करती है। इसलिये अच्छा यह होगा कि पूरी जांच पड़ताल के बाद ही प्रवेश लिया जाये।
पाठ्यक्रम के विषय- कला व बुनियादी प्रारूपण (डिजाइन), वास्तुकला प्रारूपण के सिद्धान्त, कागज पर रेखांकन, उपस्कर (टेबल, कुर्सी, मेज, भोजन शाखा की उपस्कर, सजाने के उद्देश्य से गोल या और अन्य टेबल) के लिए उचित स्थान का चयन तथा प्रारूप बनाना, उपस्कर का प्रारूपण तैयार करना, जरूरत के अनुसार अधिकतम तथा न्यूनतम सामग्री का चयन, उनकी रचना या निर्माण, सजावट की वस्तुओं का चुनाव तथा उनका उपयुक्त स्थान निर्धारण, लागत खर्च का अनुमान तैयार करना, उपस्कर रचना का आधार तैयार करना, उपस्कर के प्रारूप की दृष्टि से सही हैण्डल, ताले, पर्दे तथा कालीन या दरी पट्टी का चयन तथा निर्धारण तथा कुछ अंशों में कार्यालय या तथा निजी व्यवसाय की प्रारंभिक शिक्षा, आदि-आदि।
अध्यापन का माध्यम- इस पाठ्यक्रम में शिक्षा का माध्यम हिन्दी तथा अंग्रेजी है। हां, कुछ स्थानीय स्तर की संस्थाओं में यह माध्यम वहां की प्रादेशिक भाषा भी है।
परीक्षा का माध्यम- विद्यार्थी अपनी सुविधाआनुसार परीक्षा में उत्तर लिखने के लिए हिन्दी या अंग्रेजी किसी भी एक माध्यम को चुन सकता है।
रोजगार एवं उन्नति के अवसर- आन्तरिक सज्जा पाठ्यक्रम में शिक्षित व्यक्तियों के लिए राजकीय क्षेत्र में रोजगार के अवसर बहुत ही कम होते हैं। हां, यदि मुख्य या गौण विषय के रूप में आन्तरिक सज्जा चित्रकला या गृह विज्ञान विषयों के साथ पढ़ा है, परीक्षा उत्तीर्ण की है तो चित्रकला या गृहविज्ञान अध्यापक या अध्यापिका के रूप में कार्य मिल सकता है तथा कुछ अंशों में सर्विस हाउस, डाक बंगला, रेलवे स्टेशनों, दूतावासों तथा राजभवनों के सजाने के लिए भी कार्य मिल सकता है पर ये भी नगण्य अवसर ही होते हैं। ऐसी स्थिति में इस क्षेत्र में ज्यादातर रोजगार के अवसर निजी क्षेत्र में ही हैं।
विभिन्न सरकारी तथा अद्र्धसरकारी होटलों, विश्रामगृहों, विभिन्न उद्यमियों के कार्यालयों की सजावट का कार्य मिल सकता है। बड़े-बड़े उद्योगपतियों द्वारा आकर्षक हेण्ड बिल, कैलेण्डर, पोस्टर, प्रचार सामग्री, विज्ञापन के प्रारूप तैयार करने के लिए सदैव ही मांग बनी रहती है। इससे स्पष्ट है कि यह निजी व्यवसाय के रूप में शहरों तथा महानगरों में विकसित होने वाला अधिक लाभप्रद क्षेत्र है। इस क्षेत्र में कार्य करके प्रशंसा तथा भरपूर आर्थिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
आज के युग में सजावट तथा चमक-दमक का महत्व बढ़ गया है, आंखों को आकर्षक लगने वाली सजावट एकदम प्रभावित करती है। इसलिए इस क्षेत्र में रोजगार के अवसर दिन-प्रतिदिन बढऩे की सम्भावना निरन्तर बनी रहेगी।