बाल कहानी- सुधार

anbika

नीरज, स्कूल से आने के बाद राजू के साथ घूमने चला जाता था। यह बात नीरज की मां को पसन्द नहीं थी। वह जानती थी कि राजू अच्छा लड़का नहीं है। इसलिए वह नीरज को उसके साथ घूमने से मना करती थी परन्तु उस पर मां की बातों का कोई असर नहीं पड़ता था।
एक दिन नीरज जब राजू के साथ घूमने गया, तब एक जगह कुछ लड़कों ने उन लोगों को घेर लिया। उन लोगों की राजू से कहा-सुनी होने लगी। नीरज चुपचाप सुनता रहा। कुछ पल बाद इस कहा-सुनी ने मारपीट का रूप धारण कर लिया। यह देखकर नीरज बीच-बचाव करने लगा। इस पर दूसरे गुट के लड़के उसे भी मारने लगे। वह किसी प्रकार वहां से भागकर अपने घर पहुंचा। मार-पीट से उसके चेेहरे पर खरोंच आ गई थी और एक-दो जगह से खून भी निकल रहा था।
 उसकी इस हालत को देखकर मां ने पूछा- तुम्हें चोट कैसे लगी? परन्तु नीरज ने कोई उत्तर नहीं दिया और अपने कमरे में चला गया। पीछे-पीछे मां भी वहां पहुंच गई। उन्होंने कहा- नाराज क्यों होते हो? बताओ तुम्हें चोट कैसे लगी? पहले तो नीरज चुप रहा किन्तु मां के बार-बार पूछने पर उसने पीछा छुड़ाने के लिए पूरी बात बता दी।
मां ने कहा- मैं मना करती हूं परन्तु तुम नहीं मानते। आज उसके कारण तुम्हें चोट भी लग गई। अरे इससे क्या होता है? वे तो कई लोग थे अगर एक-दो लोग होते तो राजू जमकर उनकी पिटाई करता। जब वे लोग दिखाई देंगे, तब राजू भी उन्हें मारेगा। नीरज ने गर्व से कहा। मां ने कहा- राजू मारपीट करता है तो करने दो परन्तु तुम उसका साथ छोड़ दो, नहीं तो किसी दिन परेशानी में पड़ जाओगे। अब अगर तुम उसके साथ जाना बन्द नहीं करोगे तो मैं खुद उससे कह दूंगी। इस पर नीरज ने सोचा कि अगर मां, राजू से कहेगी तो वह बुरा मान जाएगा। इसलिए उसने स्वयं राजू को अपने घर आने से मना कर दिया और अपनी मजबूरी बता दी।
अब नीरज, शाम को किसी बहाने से राजू के पास चला जाता था। नीरज के पिताजी दूसरे शहर में नौकरी करते थे और अवकाश के दिन घर आया करते थे।
एक दिन जब वे घर आए, तो शाम को नीरज ने उनसे पूछा- पिताजी क्या आपको बाजार से कोई सामान मंगाना है? उसकी बात सुनकर पिताजी को बड़ा आश्चर्य हुआ। उन्होंने सोचा कि पहले तो यह कहने से भी कोई सामान नहीं लाता था। आज इसे क्या हो गया है, जो पूछ रहा है। उन्होंने उससे पूछा- क्या तुम बाजार जा रहे हो? हां, कुछ जरूरी काम है। नीरज ने उत्तर दिया। पिताजी चुप हो गए। नीरज के जाने के बाद मां ने उनसे कहा- यह कई दिनों से शाम को घर से चला जाता है और कई घंटे बाद लौटता है। पूछने पर ‘कोई काम थाÓ बताता है। मुझे उसकी बात समझ में नहीं आती है। पिताजी ने कहा- अच्छा आने दो, पूछेंगे। कुछ देर बाद नीरज तेजी से भागता हुआ घर पहुंचा। उसे हांफता देखकर पिताजी ने कहा- क्या बात है? क्यों इतना हांफ रहे हो? कुछ नहीं, कुछ नहीं- कहता हुआ वह जल्दी से अपने कमरे में चला गया।
कुछ क्षण बाद दरवाजे की कॉलबेल बजने पर पिताजी ने दरवाजा खोला तो आश्चर्यचकित रह गए। सामने एक दरोगा कुछ सिपाहियों के साथ खड़ा था। पिताजी ने उनसे पूछा- कहिए, क्या बात है? इस पर दरोगा ने पूछा, क्या नीरज घर में है? हां, वह घर में है परन्तु आप उसे क्यों पूछ रहे हैं? पिताजी ने कहा। दरोगा ने बताया कि नीरज और उसका दोस्त राजू अभी कुछ लड़कों से मारपीट कर रहे थे। हम लोगों को देखकर यह दोनों भागे हैं।
राजू तो पकड़ा गया और नीरज भागकर यहां चला आया। पिताजी ने जब नीरज को बुलाया तो सामने दरोगा जी को देखकर वह घबरा गया। उससे कुछ बोलते नहीं बना। पिताजी ने डांटते हुए पूछा तो उसने कहा- कुछ दिन पहले उन लड़कों ने राजू को मारा था, इसलिए आज राजू ने भी उन लोगों को मारा, वह राजू के साथ था। पिताजी ने कहा- तुम्हें दूसरे के झगड़े से क्या मतलब? तुम क्यों दूसरों के चक्कर में मारपीट करते हो? अब नीरज की मां ने कहा- एक दिन यह राजू के कारण मार खाकर घर आया था। मैंने इससे कई बार कहा कि राजू का साथ छोड़ दो परन्तु यह मानता ही नहीं है। इस पर पिताजी ने नीरज को डांटते हुए कहा- अगर फिर कभी तुम्हें राजू के साथ देखूंगा तो ठीक नहीं होगा। आज से तुम्हारा उससे मिलना-जुलना बिल्कुल बन्द। फिर उन्होंने दरोगा जी से कहा- लड़का है, इससे गलती हो गई। इसे माफ कर दीजिए। अब वह फिर कभी ऐसा गलत काम नहीं करेगा। दरोगा जी पिताजी की बातों से सन्तुष्टï होकर अपने साथी सिपाहियों के साथ चाय-नाश्ता करके चले गए।
उनके जाने के बाद पिताजी ने नीरज से कहा- आज अगर मैं घर पर नहीं होता तो पुलिस तुम्हें मारपीट के आरोप में पकड़कर थाने ले जाती और फिर हवालात में बन्द कर खूब मारती-पीटती। उनकी बात सुनकर नीरज रुंआसा हो गया। थाने जाने और वहां मार पडऩे की बात सोचकर वह घबरा गया।
उसने रुंधे हुए गले से कहा- पिताजी गलती हो गई। अब मैं राजू से न तो कभी मिलूंगा और न ही उसके साथ ही जाऊंगा। पिताजी ने कहा- गलत लोगों की संगत से आदमी स्वयं भी गलत काम करने लगता है, जिसके कारण उसे कभी-कभी निर्दोष होने के बावजूद सजा हो जाती है, इसलिए गलत लोगों का साथ तो करना ही नहीं चाहिए।