बच्चो! बेशक बहुत से ऐतिहासिक स्थान ऐसे हैं, जिनकी जानकारी पुस्तकों में होने के कारण, जन साधारण तक पहुंचती है और वही जन इस ज्ञान को पीढ़ी-दर-पीढ़ी आगे बढ़ाता है। पर कुछ बदनसीब स्थान ऐसे भी होते हैं, जिनकी जानकारी न लोगों तक पहुंची और न ही उन्हें स्थान मिला पुस्तकों के पन्नों में।
अब मैं एक ऐसे ही स्थान के विषय में बताने जा रही हूं। जिसकी यादें काल के गर्व में खो चुकी है। उस स्थान का नाम है, बीरबल का छत्ता व गुफा।
नारनौल के पुराने शहर में जाने के लिए एक गली में प्रवेश करेंगे तो थोड़ा चलने के बाद गली के ऊपर छत नजर आएगी। इसे ही कहते हैं बीरबल का छत्ता और इसी छत्ते के दायीं ओर एक खण्डहरनुमा हवेली है, जो कभी बीरबल की थी।
इस हवेली की खस्ता हालत को देखकर लगता है कि अपने जमाने में इसकी भी निराली शान रही होगी और वहीं बीरबल के सगे-संबंधियों के बाल-गोपालों की किलकारियां गूंजती होंगी।
अब की तरह उस जमाने में भी, गर्मी तो बहुत पड़ती होगी अत: उसी झुलसती लू के थपेड़ों से अपने नन्हें-मुन्नों को बचाने के लिए, बीरबल ने हवेली के मुख्य द्वार के सामने वाली गली पर छत्त डलवा दी होगी, जिसे अब कहते हैं बीरबल का छत्ता। एक विचित्र बात कि बेशक अब यह हवेली खण्डहर बन चुकी है पर कुछ हिस्सा रहने योग्य है और वही एक-कमरे में कुछ प्राचीन दस्तावेज है, जिनके लेखों का संबंध बीरबल व अकबर के आपसी सौहाद्र्र व तत्कालीन राजनैतिक गतिविधियों की जानकारी है तथा उन दस्तावेजों की संरक्षक थी एक बुजुर्ग महिला जो अपने आप को बीरबल की वंशवेल की सदस्य बताती थी। अब एक अन्य बात कि वहीं कुछ आस-पास ही एक गुफा भी है जो सीधी दिल्ली तक जाती है। कहते हैं अकबर बादशाह ने इसे बनवाया था और बीरबल के साथ गुप्त संदेशों का आदान-प्रदान संदेशवाहक इसी रास्ते से करते थे। अब तो इसकी हालत भी उस हवेली की तरह खस्ताहाल है। बीरबल की हवेली के करीब वाला इसका रास्ता तो कुछ ठीक है, पर जो रास्ता दिल्ली में खुलता था उसकी जानकारी मटिया मेल हो चुकी है। अर्थात किसी को कुछ भी पता नहीं।
कहते हैं इसको ओर-छोर जानने के लिए कुछ मनचले दुस्साहसी युवकों ने इसमें प्रवेश किया पर उनका गुफा के भीतर ही दम घुट गया। यह भी सुनने में आया कि दूल्हे सहित एक बारात भी भीतर गई पर वह भी बाहर नहीं आई।
टिप्पणी- कुछ वर्ष पूर्व मैं नारनौल अपनी बड़ी बहन के पास गई और देखा बीरबल का छत्ता और खस्ताहाल हवेली। यह सब देख दु:ख हुआ कि इस स्थान पर यहां कभी राजसी ठाठ से बीरबल का परिवार रहता था, अब उसकी ऐसी दुर्दशा। पर एक बात और कि उस खंडहरनुमा हवेली के आसपास कुछ पीलू (एक फल) के पेड़ जिन्हें वन भी कहते हैं, अवश्य देखें, जिन पर मीठे रसीले फल लगे हुए थे और उन पर भांति-भांति के पक्षी, चह-चहा रहे थे मानो कह रहे हों, मनुष्य होकर भी तुम भूल गए उस स्थली को पर हम परिनदे होकर भी पीढ़ी-दर-पीढ़ी संजोए हुए हैं उस समय की यादों की धरोहर को।