पेरिस ओलंपिक में महिला मुक्केबाजों से बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद : विजेंदर

vijender-singh

नयी दिल्ली, 26 जुलाई (भाषा) भारत के एकमात्र ओलंपिक पदक विजेता पुरुष मुक्केबाज विजेंदर सिंह को लगता है कि पेरिस ओलंपिक में देश की पदक की संभावनायें महिला मुक्केबाजों के प्रदर्शन पर निर्भर होंगी और उन्हें उम्मीद है कि निकहत जरीन की अगुआई वाली टीम कम से कम दो पोडियम स्थान हासिल करेगी।

जरीन (50 किग्रा), प्रीति पवार (54 किग्रा), जैस्मिन लम्बोरिया (57 किग्रा) और तोक्यो ओलंपिक की कांस्य पदक विजेता लवलीना बोरगोहेन (75 किग्रा) भारतीय महिला टीम में शामिल हैं जबकि अमित पंघाल (51 किग्रा) और पदार्पण कर रहे निशांत देव (71 किग्रा) पेरिस के लिए क्वालीफाई करने वाले दो पुरुष मुक्केबाज हैं।

‘पीटीआई संपादकों’ के साथ यहां समाचार एजेंसी के मुख्यालय में बातचीत के दौरान 38 वर्षीय विजेंदर ने कहा कि उन्हें महिला मुक्केबाजों के अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद है।

बीजिंग ओलंपिक 2008 के कांस्य पदक विजेता और भाजपा नेता विजेंदर ने कहा, ‘‘पुरुष मुक्केबाजों के बारे में मैं इतना ज्यादा नहीं जानता लेकिन मैंने महिला मुक्केबाजों के बारे में जो पढ़ा है, उससे उम्मीद जगती है कि लड़कियां अच्छा प्रदर्शन करेंगी, मुझे उम्मीद है कि हमें एक या दो पदक मिलेंगे। यह रजत हो सकता है और शायद स्वर्ण पदक भी हो सकता है। ’’

उन्होंने कहा, ‘‘ऐसा भी हो सकता है कि महिला मुक्केबाज अभी तक देश को मिले पदकों का रंग बदल दें। ’’

विजेंदर के अलावा केवल दो अन्य भारतीय महिला मुक्केबाज एमसी मैरीकॉम (लंदन 2012) और बोरगोहेन (तोक्यो 2021) ही अभी तक ओलंपिक में कांस्य पदक जीत सकी हैं। लेकिन देश का कोई भी मुक्केबाज फाइनल में पहुंचकर स्वर्ण पदक का मुकाबला नहीं खेल पाया है।

महिला मुक्केबाजों ने पेरिस ओलंपिक से पहले अच्छा प्रदर्शन किया है जिसमें जरीन और बोरगोहेन 2023 में विश्व चैम्पियन बनीं। पवार और लम्बोरिया ने एशियाई खेलों के अलावा राष्ट्रमंडल खेलों में कांस्य पदक जीतें।

वहीं अगर पुरुष मुक्केबाजों को देखा जाये तो देव को छोड़कर उनका प्रदर्शन निराशाजनक रहा है। देव ने पिछले साल विश्व चैम्पियनशिप में कांस्य पदक जीतकर पेरिस ओलंपिक के लिए क्वालीफाई किया था।

भारत के पहले पुरुष विश्व चैम्पियनशिप पदक विजेता विजेंदर ने कहा, ‘‘इस दफा काफी कम पुरुष मुक्केबाज हैं। पहले हम पांच से छह तक हुआ करते थे लेकिन इस बार बस दो ही पुरुष मुक्केबाज पेरिस गये हैं। ’’

भारत से सर्वाधिक सात पुरुष मुक्केबाज ही ओलंपिक के लिए क्वालीफाई कर सकते थे और ऐसा 2012 चरण में हुआ था। 2008 में तब रिकॉर्ड पांच मुक्केबाज क्वालीफाइंग अभियान में शानदार प्रदर्शन के बाद ओलंपिक पहुंचे थे।

विजेंदर ने कहा, ‘‘मैं नहीं जानता कि इसमें इतनी गिरावट क्यों हुई, शायद खुद मुक्केबाज ही इसके बारे में बेहतर तरीके से बता सकते हैं। ’’

तीन बार के ओलंपियन विजेंदर ने अमेच्योर मुक्केबाजी छोड़कर 2015 में पेशेवर मुक्केबाजी में आने का फैसला किया था। उन्होंने इसके बाद अभिनय, रिएलिटी टीवी और राजनीति में भी हाथ आजमाये। उन्हें खेल प्रशासक के तौर पर भी काम करने से गुरेज नहीं है और अगर उन्हें मौका मिलता है तो वह भारतीय मुक्केबाजी महासंघ (बीएफआई) का चुनाव लड़ने को भी तैयार हैं।

विजेंदर ने कहा, ‘‘अगर मुझे मौका मिलता है तो मैं भारतीय मुक्केबाजी महासंघ का अध्यक्ष बनने को तैयार हूं। मैं चुनाव लड़ना चाहूंगा क्योंकि मैं भारतीय मुक्केबाजों को बेहतर करते हुए देखना चाहता हूं। ’’

साथ ही उन्होंने कहा कि वे युवाओं को खेल के बारे में अच्छी जानकारी दे सकते हैं। विजेंदर ने कहा, ‘‘जो युवा अपने पहले ओलंपिक में हिस्सा ले रहे हैं तो मैं उनके साथ अपने पहले ओलंपिक का अनुभव साझा कर सकता हूं। मैं उन्हें बता सकता हूं कि मैंने भी इन्हीं दिक्कतों का सामना किया था और उन्हें बता सकता हूं कि क्या करना चाहिए और क्या नहीं। ’’

उन्होंने कहा, ‘‘अगर मुझे बीएफआई अध्यक्ष पद के लिए चुनाव लड़ने का मौका मिलता है तो मैं पीछे नहीं हटूंगा। अगर किसी को मेरी मदद चाहिए तो मैं उपलब्ध हूं। ’’

इस समय बीएफआई के अध्यक्ष अजय सिंह हैं जो स्पाइसजेट एयरलाइंस के मालिक भी हैं।

विजेंदर ने कहा कि मुक्केबाजी एक ‘अकेलेपन’ का खेल है जिसमें आपको बाहर रिंग में लड़ना पड़ता है जबकि एक द्वंद्व आपके अंदर भी चलता रहता है।

उन्होंने कहा, ‘‘आपको रिंग के अंदर मुकाबला लड़ना होता है और एक द्वंद्व आपके खुद के अंदर चल रहा होता है। खुद के अंदर की लड़ाई में आपको अपने दिमाग को अभ्यस्त करते हुए विश्वास दिलाना होता है कि तुम सर्वश्रेष्ठ हो और निडर बनो। ’’

विजेंदर ने कहा, ‘‘मुक्केबाजी ‘अकेलेपन’ का खेल है, जब आप मुकाबले के लिए जा रहे होते हो तो आप किसी से नहीं कह सकते कि ‘मैं डरा हुआ हूं’ इसलिये आपको खुद का आत्मविश्वास बढ़ाना होता है। हर कोई डरा होता है लेकिन आपको खुद को कहना होता है कि ‘तुम सर्वश्रेष्ठ हो’। ’’