दिल्ली में अनुपचारित ठोस अपशिष्ट से जन स्वास्थ्य के लिए आपात स्थिति उत्पन्न हो सकती है: न्यायालय

नयी दिल्ली,  उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियमों के खराब क्रियान्वयन पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि दिल्ली में प्रतिदिन 3,000 टन से अधिक अनुपचारित ठोस अपशिष्ट के कारण ‘‘जनस्वास्थ्य के लिए आपात स्थिति’’ उत्पन्न हो सकती है।

उच्चतम न्यायालय ने दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) को “दयनीय स्थिति” के लिए फटकार लगाते हुए कहा कि राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में प्रतिदिन 11,000 टन से अधिक ठोस अपशिष्ट उत्पन्न होता है, जबकि निगम द्वारा उपलब्ध कराए गए निस्तारण संयंत्रों की दैनिक क्षमता केवल 8,073 टन है।

न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा कि एमसीडी के हलफनामे के अनुसार, प्रतिदिन उत्पन्न होने वाले 11,000 टन ठोस कचरे से निस्तारण के लिए 2027 तक भी उपचार इकाइयां निर्मित होने की कोई संभावना नहीं है।

ठोस अपशिष्ट प्रबंधन से संबंधित मामले में न्याय मित्र के तौर पर शीर्ष अदालत की सहायता कर रहीं वरिष्ठ अधिवक्ता अपराजिता सिंह ने पीठ से कहा कि इससे जन स्वास्थ्य के लिए आपातकाल की स्थिति उत्पन्न हो सकती है, क्योंकि भारतीय और विदेशी पत्रिकाओं में इसके आंकड़े मौजूद हैं कि देश में प्रदूषण के कारण लोगों की मौत हो रही है।

पीठ ने कहा, “हम इस बारे में चिंतित हैं। राजधानी दिल्ली में, 2016 के नियमों की यह स्थिति है, जहां हम प्रतिदिन 3,000 टन से अधिक अनुपचारित ठोस अपशिष्ट उत्पन्न कर रहे हैं और हर दिन इसमें वृद्धि होगी।”

पीठ ने कहा कि (एमसीडी के) हलफनामे को देखते हुए और यह मानते हुए कि इसमें उल्लिखित समयसीमा का पालन किया जाएगा, उसे उम्मीद की कोई किरण नहीं दिखती। अदालत ने कहा कि दिल्ली में 2027 तक भी (अतिरिक्त उपचार) सुविधाएं उपलब्ध कराए जाने की कोई संभावना नहीं है जिसके पास प्रतिदिन 11,000 टन ठोस अपशिष्ट से निपटने की क्षमता हो।

पीठ ने कहा कि यह कहने के लिए किसी अनुमान की आवश्यकता नहीं है कि उस समय तक उत्पन्न होने वाला ठोस अपशिष्ट कई गुना बढ़ जाएगा।

पीठ ने कहा, “हम न्यायमित्र से सहमत हैं कि इससे जनस्वास्थ्य से जुड़ी आपात स्थिति उत्पन्न होगी।” पीठ ने कहा, “राजधानी दिल्ली में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 के क्रियान्वयन के मामले में यह एक खेदजनक स्थिति है।”

पीठ ने केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के सचिव को इस मुद्दे का तत्काल समाधान निकालने के लिए एमसीडी और दिल्ली सरकार के अधिकारियों की बैठक बुलाने का निर्देश दिया।

पीठ ने सचिव से तत्काल उपायों के बारे में एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि 2016 के नियमों का पालन न करने से दिल्ली में गंभीर आपात स्थिति उत्पन्न न हो।

पीठ ने आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय की ओर से दायर एक अलग हलफनामे का भी हवाला दिया।

पीठ ने कहा कि इसमें कहा गया है कि एमसीडी ने ठोस अपशिष्ट प्रबंधन परियोजनाओं से संबंधित पांच करोड़ रुपये से अधिक के एजेंसी के अनुबंधों को मंजूरी देने के लिए निगम को वित्तीय शक्ति प्रदान करने के लिए दिल्ली सरकार से संपर्क किया है।

पीठ ने दिल्ली सरकार को 10 जुलाई के प्रस्ताव पर तुरंत विचार करने का निर्देश दिया, जो ठोस अपशिष्ट प्रबंधन परियोजनाओं तक सीमित है और तीन सप्ताह के भीतर उचित निर्णय लेने का निर्देश दिया।

अदालत ने गुरुग्राम, फरीदाबाद और ग्रेटर नोएडा में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के मुद्दे पर भी विचार किया और कहा कि वहां की स्थिति भी उतनी ही खराब है।

पीठ ने कहा कि गुरुग्राम में प्रतिदिन कुल 1,200 टन ठोस अपशिष्ट उत्पन्न होता है लेकिन दैनिक उपचार क्षमता केवल 254 टन है। पीठ ने कहा कि फरीदाबाद में प्रतिदिन 1,000 टन ठोस अपशिष्ट उत्पन्न होता है, जबकि उपचार क्षमता प्रतिदिन 400 टन तक सीमित है।

पीठ ने केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के सचिव को गुरुग्राम और फरीदाबाद नगर निगमों के आयुक्तों, ग्रेटर नोएडा विकास प्राधिकरण के अधिकारियों और अन्य लोगों की बैठक बुलाने का निर्देश दिया ताकि इस संकट से निपटने के लिए समाधान निकाला जा सके, क्योंकि इससे स्वास्थ्य आपात स्थिति पैदा हो सकती है। पीठ ने मामले की अगली सुनवाई के लिए छह सितंबर की तारीख तय की है।