जम्मू-कश्मीर में नए राजनीतिक संगठनों की संख्या बढ़ी, लेकिन नहीं छोड़ पाए कोई खास प्रभाव

श्रीनगर,  जम्मू-कश्मीर में बीते एक दशक में नए राजनीतिक संगठनों की संख्या में वृद्धि देखी जा रही है, लेकिन सियासी नेताओं और जानकारों का मानना है कि चुनाव के दौरान ये संगठन कोई खास प्रभाव छोड़ने में विफल रहे हैं।

कश्मीर में बीते दशक में जम्मू-कश्मीर नेशनलिस्ट पीपुल्स फ्रंट, भारत जोड़ो यात्रा, जेके पीपुल्स मूवमेंट, जम्मू-कश्मीर ऑल अलायंस डेमोक्रेटिक पार्टी, जम्मू-कश्मीर वर्कर्स पार्टी, जम्मू-कश्मीर पीस पार्टी और अवामी आवाज पार्टी समेत कई राजनीतिक दल व मोर्चे अस्तित्व में आए हैं। इनमें से कई ने या तो हाल में हुआ लोकसभा चुनाव नहीं लड़ा या उन्हें हार का सामना करना पड़ा।

मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के वरिष्ठ नेता मोहम्मद यूसुफ तारिगामी ने कहा कि इन नए राजनीतिक संगठनों के नेता अकसर धमाकेदार शुरुआत करते हैं, सुरक्षा व अन्य चीजों जैसे संरक्षण का आनंद लेते हैं, और फिर चुनाव में गायब हो जाते हैं।

उन्होंने कहा कि नए राजनीतिक संगठन शुरू करने के बजाय, “हमें पूरे जम्मू-कश्मीर में लोकतांत्रिक संस्थाओं को मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।”

पीडीपी नेता वहीद पारा ने इसी तरह के विचार व्यक्त करते हुए कहा कि इन नए संगठनों का लोकतांत्रिक व्यवस्था पर “नकारात्मक प्रभाव” पड़ रहा है तथा इनके पास समर्थन तथा वैधता का अभाव है।

पारा ने कहा कि ये संगठन लोकतांत्रिक व्यवस्था को केवल ध्वस्त और बदनाम करने का काम कर रहे हैं।

उन्होंने कहा, “हाल के लोकसभा चुनाव ने उन्हें स्पष्ट रूप से आईना दिखा दिया है।”

कारोबारी से राजनीतिक नेता बने अल्ताफ बुखारी की जेके अपनी पार्टी और कांग्रेस के पूर्व वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद की अगुवाई वाली डीपीएपी का परोक्ष रूप से जिक्र करते हुए पारा ने कहा कि पीडीपी को तोड़कर लगभग तीन दल बना दिए गए जिससे कश्मीर में लोकतांत्रिक व्यवस्था तहस-नहस हो गई।

उन्होंने कहा, “परिणाम दर्शाते हैं कि केवल लोग ही यह तय करते हैं कि किसे चुनाव जिताना है और किसे नहीं। हाइब्रिड तरीके से बने दलों के पास लोकप्रिय समर्थन या वैधता नहीं होती।”

जाने-माने कश्मीरी पंडित नेता एवं अधिवक्ता टीटू गंजू ने कहा कि अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 को हटाए जाने के बाद जम्मू-कश्मीर में शीर्ष स्तर पर नए राजनीतिक संगठनों का उदय हुआ, जिनमें स्वाभाविक विकास का अभाव रहा और वे स्थानीय जनता के साथ तालमेल बिठाने में विफल रहे।

उन्होंने कहा, “ये नयी संस्थाएं मुख्य रूप से असंतुष्ट राजनीतिक नेताओं ने बनाईं, जो नए प्रयोग में लगी थीं, लेकिन महत्वपूर्ण राजनीतिक समर्थन हासिल करने में विफल रहीं।”

गंजू ने कहा कि ये संगठन कभी भी स्थापित राजनीतिक व्यवस्था के लिए चुनौती पेश नहीं करते।

नए सियासी संगठन युवा कश्मीरियों को राजनीतिक प्रक्रिया में शामिल करने और स्थानीय चिंताओं के समाधान की बात करते रहे हैं, लेकिन क्षेत्र में मौजूदा राजनीतिक गतिशीलता व शांति प्रक्रिया पर उनके संभावित प्रभाव को लेकर सवाल बने हुए हैं।

निरंतर चुनौतियों और परिवर्तन की आकांक्षाओं से जूझते कश्मीर में नए राजनीतिक संगठनों का भाग्य अनिश्चित बने होने के साथ ही सार्थक राजनीतिक परिवर्तन लाने की उनकी क्षमता पर सवाल उठ रहे हैं।