न्यायालय ने विधेयकों को लेकर बंगाल, केरल के राज्यपालों के सचिवों एवं केंद्र से जवाब मांगा

नयी दिल्ली, उच्चतम न्यायालय एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम के तहत विपक्षी दलों द्वारा शासित केरल और पश्चिम बंगाल की उन अलग-अलग याचिकाओं पर विचार करने पर शुक्रवार को सहमत हो गया जिनमें आरोप लगाया गया है कि संबंधित विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों को मंजूरी नहीं दी गई।

केरल ने यह भी आरोप लगाया कि राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने कुछ विधेयक राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को भेजे थे और उन्हें अभी तक मंजूरी नहीं मिली है।

शीर्ष अदालत ने याचिकाओं पर संज्ञान लेते हुए केंद्रीय गृह मंत्रालय और केरल के राज्यपाल खान एवं पश्चिम बंगाल के राज्यपाल सी. वी. आनंद बोस के सचिवों को नोटिस जारी कर तीन सप्ताह के भीतर उनसे जवाब मांगा है।

प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने तृणमूल कांग्रेस नीत पश्चिम बंगाल सरकार को भी निर्देश दिया कि वह याचिका में गृह मंत्रालय को भी पक्ष बनाए।

केरल में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) नीत वाम लोकतांत्रिक मोर्चा सरकार ने मार्च में शीर्ष अदालत का रुख किया था और आरोप लगाया था कि विधानसभा द्वारा पारित कुछ विधेयकों को राज्यपाल ने राष्ट्रपति के पास भेज दिया था और ये अब भी मंजूरी के लिए लंबित हैं।

पश्चिम बंगाल ने अपनी याचिका में आरोप लगाया कि राज्यपाल आठ विधेयकों पर मंजूरी नहीं दे रहे हैं।

केरल की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता के के वेणुगोपाल ने कहा , ‘‘यह सबसे दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है।’’

पीठ ने कहा, ‘‘हम दोनों मामलों में राज्यपालों के सचिव और केंद्र को नोटिस जारी कर रहे हैं।’’

वेणुगोपाल ने कहा, ‘‘यह विधेयक पिछले आठ महीनों से लंबित हैं। मैं राष्ट्रपति को (विधेयक) भेजे जाने को ही चुनौती दे रहा हूं… राज्यपालों के बीच भ्रम की स्थिति है। वे विधेयकों को लंबित रखते हैं। यह संविधान के खिलाफ है।’’

पश्चिम बंगाल की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक सिंघवी ने कहा कि वह केंद्र को पक्ष बनाएंगे और याचिका पर निर्णय लेने में अदालत की सहायता के लिए एक लिखित टिप्पणी दाखिल करेंगे।

उन्होंने तमिलनाडु समेत अन्य राज्यों का हवाला देते हुए कहा कि जैसे ही शीर्ष अदालत ने सुनवाई के लिए मामले निर्धारित किए, कुछ विधेयकों को या तो मंजूरी दे दी गई या राष्ट्रपति के पास भेज दिया गया।

वेणुगोपाल ने कहा कि शीर्ष अदालत को इस बारे में दिशा-निर्देश तय करने की जरूरत है कि राज्यपाल कब विधेयकों को लौटा सकते हैं या राष्ट्रपति के पास भेज सकते हैं।

पश्चिम बंगाल की ओर से ही पेश जयदीप गुप्ता ने कहा कि शुक्रवार सुबह जब दूसरे पक्ष को सूचित किया गया कि मामला शीर्ष अदालत में सुनवाई के लिए आने वाला है, तो राज्यपाल ने कुछ विधेयक राष्ट्रपति को भेज दिए।

उन्होंने कहा, ‘‘हालांकि इस बारे में कोई आधिकारिक सूचना नहीं है, लेकिन हमें इसके बारे में पता चला है।’’

केरल ने अपनी याचिका में कहा कि राज्यपाल ने उन सात विधेयकों को राष्ट्रपति को भेज दिया जिन्हें उन्हें स्वयं देखना था।

उसने कहा कि इस सातों विधेयकों में से किसी का केंद्र-राज्य संबंधों से कोई लेना-देना नहीं है।

पश्चिम बंगाल ने अपनी याचिका में कहा कि विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों को बिना कोई कारण बताए मंजूरी देने से इनकार करना संविधान के अनुच्छेद 200 के विपरीत है।