रिजर्व बैंक का निर्यात, आयात लेनदेन पर विनियमनों को युक्तिसंगत बनाने का प्रस्ताव

मुंबई, दो जुलाई (भाषा) भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने निर्यात और आयात लेनदेन से संबंधित विनियमनों को युक्तिसंगत बनाने का प्रस्ताव किया है।

इसका मकसद कारोबार को सुगम बनाने पर जोर देना और बैंकों को अपने विदेशी मुद्रा ग्राहकों को अधिक कुशल सेवा प्रदान करने के लिए सशक्त बनाना है।

केंद्रीय बैंक ने इस संबंध में मंगलवार को ‘विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (फेमा), 1999 के अंतर्गत विदेशी व्यापार का विनियमन मसौदा विनियम तथा निर्देश’ जारी किए हैं।

मसौदे के अनुसार, प्रत्येक निर्यातक को निर्दिष्ट प्राधिकारी के समक्ष एक घोषणा प्रस्तुत करनी होगी, जिसमें माल या सेवाओं के पूर्ण निर्यात मूल्य का उल्लेख होगा।

इसमें कहा गया, ‘‘ वस्तुओं तथा सेवाओं के पूर्ण निर्यात मूल्य को दर्शाने वाली राशि, वस्तुओं के निर्यात की तारीख और सेवाओं के बिल की तारीख से नौ महीने के भीतर वसूल की जाएगी तथा भारत को वापस भेजी जाएगी।’’

मसौदे में यह भी प्रस्ताव है कि यदि कोई निर्यातक निर्धारित समय के भीतर निर्यात का पूरा मूल्य प्राप्त नहीं कर पाता है तो उसे प्राधिकृत डीलर द्वारा सतर्कता सूची में डाला जा सकता है।

निर्यातक जिसे सतर्कता सूची में रखा जाएगा वह केवल अग्रिम भुगतान की पूर्ण प्राप्ति के आधार पर या प्राधिकृत डीलर की संतुष्टि के लिए अपरिवर्तनीय ऋण पत्र के आधार पर ही निर्यात कर सकता है।

मसौदे के अनुसार, सोने तथा चांदी के आयात के लिए उस समय तक अग्रिम धन प्रेषण की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए, जब तक कि भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा विशेष रूप से अनुमोदन न किया जाए।

आरबीआई ने कहा कि प्रस्तावित विनियमनों का मकसद विशेष रूप से छोटे निर्यातकों तथा आयातकों के लिए कारोबार सुगमता को बढ़ावा देना है।

केंद्रीय बैंक ने कहा कि इनका उद्देश्य प्राधिकृत डीलर बैंकों को अपने विदेशी मुद्रा ग्राहकों को तेजी से तथा अधिक कुशल सेवा प्रदान करने के लिए सशक्त बनाना भी है।

आरबीआई ने फेमा के तहत मसौदा विनियमनों और अधिकृत डीलर बैंकों को निर्देश देने के लिए एक सितंबर तक टिप्पणियां मांगी हैं।