नयी दिल्ली, एनसीएईआर की महानिदेशक पूनम गुप्ता ने कहा कि भारत का सार्वजनिक ऋण सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का करीब 82 प्रतिशत के बराबर है, लेकिन उच्च वृद्धि दर तथा भारतीय मुद्रा में ऋण अधिक होने से देश को ऋण स्थिरता की समस्या का सामना नहीं करना पड़ रहा है।
एनसीएईआर द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में गुप्ता ने कहा कि भारत का उच्च ऋण स्तर फिलहाल सतत है, क्योंकि वास्तविक या नाममात्र जीडीपी अधिक है और अधिकतर कर्ज रुपये में है।
गुप्ता ने कहा कि कुल ऋण में से एक तिहाई राज्यों के पास है। ‘‘सामान्य स्थिति’’ में, अगले पांच वर्षों में उनके ऋण स्तर में और वृद्धि ही होगी।
उन्होंने कहा, ‘‘ पंजाब और हिमाचल प्रदेश जैसे कुछ राज्यों में ऋण-जीडीपी अनुपात 50 प्रतिशत तक बढ़ सकता है।’’
गुप्ता ने कहा कि सबसे अधिक कर्जदार राज्यों सहित अन्य राज्यों को भी स्थिरता की समस्या का सामना नहीं करना पड़ता है, क्योंकि उनके पास केंद्र की अंतर्निहित गारंटी होती है और राज्य विदेशी मुद्रा या ‘फ्लोटिंग’ दर पर ऋण नहीं रख सकते हैं।
‘राज्यों की राजकोषीय चुनौतियां’ विषय पर आयोजित चर्चा में हिस्सा लेते हुए तक्षशिला संस्थान के पार्षद एम. गोविंद राव ने राज्यों पर बढ़ते कर्ज का एक कारण ‘‘चुनाव में फायदे के लिए सब्सिडी बढ़ाने’’ को भी बताया।
वित्त वर्ष 2022-23 तक पंजाब, हिमाचल प्रदेश तथा बिहार शीर्ष तीन सबसे अधिक ऋणी राज्य थे जबकि सबसे कम कर्ज ओडिशा, महाराष्ट्र और गुजरात राज्य पर था।