भारत और रूस की दोस्ती दशकों पुरानी है। दुनिया भले इधर से उधर हो जाए, मगर यह दोस्ती फेविकोल की जोड़ से भी मजबूत है। मगर बीते कुछ सालों के वैश्विक हालात ने एक अलग समीकरण को जन्म दे दिया है। इसकी वजह से अब सवाल उठने लगे हैं कि चीन या भारत… रूस की किसके साथ पक्की यारी है? मगर अब प्रधानमंत्री मोदी ने रूस जाकर दुनिया को बता दिया है कि भारत ही रूस का असली दोस्त है। प्रधानमंत्री मोदी जब रूस की धरती पर उतरे तो पूरी दुनिया टकटकी भरी निगाहों से देखने लगी। क्या अमेरिका और क्या चीन, सभी की नजर इस बात पर टिकी रही कि आखिर मोदी रूस में क्या करेंगे, पुतिन के साथ किन-किन मसलों पर बातचीत होगी? मोदी की पुतिन संग मुलाकात की जो तस्वीर आई, उसने यह दिखा दिया कि भारत और रूस की दोस्ती दमदार है। इस दोस्ती की तस्वीरों को देख खुद ड्रैगन के दिल में दर्द उठ गया होगा।
सबसे पहले बात करते हैं कि आखिर मोदी के रूस जाने से ड्रैगन के दिल में दर्द क्यों उठेगा? प्रधानमंत्री मोदी से पहले पिछले साल शी जिनपिंग मॉस्को गए थे। मोदी और जिनपिंग के स्वागत में रूस ने जो भेद दिखाया है, उससे ही यह साबित हो रहा कि रूस के लिए भारत अधिक अहमियत रखता है। प्रधानमंत्री मोदी सोमवार को जब मॉस्को उतरे तो एयरपोर्ट पर उनकी अगवानी के लिए रूस के पहले डिप्टी प्रधानमंत्री खड़े थे। प्रधानमंत्री मोदी से स्वागत में पुतिन ने पलकें बिछा दीं। उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी के स्वागत के लिए खुद रूस के पहले डिप्टी प्रधानमंत्री को भेजा।
ज्ञात हो कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दो दिवसीय रूस यात्रा के दौरान, नई दिल्ली और मॉस्को ने व्यापार, ऊर्जा, जलवायु और अनुसंधान सहित कई क्षेत्रों में 9 समझौतों पर हस्ताक्षर किए। इस दौरान दोनों देशों के बीच कई बड़ी परियोजनाओं को लेकर सहमति बनी, जिसमें महत्वपूर्ण है रूस के सहयोग से भारत में 6 नए न्यूक्लियर पावर प्लांट्स बनाने पर भी बातचीत । रूस की परमाणु ऊर्जा एजेंसी रोसाटॉम इन न्यूक्लियर पावर प्लांट्स को बनाने में भारत की मदद करेगी। बता दें कि रूसी एजेंसी इसके पहले भी कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा संयंत्र को स्थापित करने में भारत की मदद कर चुकी है।
भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मॉस्को की अपनी दो दिवसीय यात्रा के दौरान रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से उनके आधिकारिक निवास स्थान क्रेमलिन में मुलाकात की थी। दोनों नेताओं ने यहां चाय पर चर्चा की और बाद में द्विपक्षीय वार्ता में हिस्सा लिया, जिसमें रूसी सरकार के स्वामित्व वाले रोसाटॉम ने 6 नए न्यूक्लियर पावर प्लांट्स बनाने भारत की मदद करने की पेशकश की। इसके अलावा रूसी प्रत्यक्ष निवेश कोष ने फार्मा, जहाज निर्माण और शिक्षा क्षेत्र में भारत के साथ समझौतों पर हस्ताक्षर किए।
रूस के दूसरे सबसे बड़े बैंक ने दोनों देशों के बीच व्यापार बढ़ने पर पेमेंट फ्लो को आसान बनाने के प्रयासों पर भारत के साथ बात की। रोसाटॉम ने एक बयान में कहा कि भारत के साथ सहयोग के नए क्षेत्रों पर चर्चा की जा रही है- एक नई साइट पर रूसी डिजाइन की 6 और हाई-पावर न्यूक्लियर यूनिट्स का निर्माण और कुछ छोटे परमाणु ऊर्जा संयंत्र बनाने में भारत का सहयोग करने पर दोनों देशों की बातचीत हुई है। इसी साल मई महीने में रोसाटॉम ने भारत को फ्लोटिंग परमाणु ऊर्जा संयंत्र के निर्माण और संचालन की तकनीक ऑफर की थी।
गौरतलब है कि वर्तमान में रूस ही दुनिया का एकमात्र देश है जिसके पास पानी पर तैरता हुआ परमाणु ऊर्जा संयंत्र है। इस परमाणु संयंत्र को एकेडेमिक लोमोनोसोव जहाज पर असेंबल किया गया है। रूस के पेवेक में बिजली सप्लाई इसी फ्लोटिंग न्यूक्लियर पावर प्लांट से हो रही है। पेवेक नॉर्थ आर्कटिक में स्थित रूस का एक बंदरगाह शहर है। रूस के अलावा अन्य कोई देश अब तक फ्लोटिंग न्यूक्लियर पावर प्लांट की तकनीक विकसित नहीं कर सका है। इस तरह के संयंत्र से दूरदराज के क्षेत्रों या समुद्र में स्थित द्वीपों तक भी निर्बाध बिजली सप्लाई की जा सकती है।
रोसाटॉम और भारत उत्तरी समुद्री मार्ग की ट्रांजिट क्षमता को विकसित करने पर भी चर्चा कर रहे हैं। यह समुद्री मार्ग नॉर्वे के साथ रूस की सीमा के पास मरमंस्क से पूर्व की ओर अलास्का के पास बेरिंग जलडमरूमध्य तक फैला है। इस सी रूट का विशेष रूप से रूसी तेल, कोयला और लिक्विड नेचुरल गैस की आपूर्ति के लिहाज से काफी महत्व है। रूस को उम्मीद है कि एनएसआर के जरिए वह 2030 तक 150 मिलियन मीट्रिक टन का परिवहन कर सकेगा, जो इस वर्ष 80 मिलियन मीट्रिक टन से अधिक रहा है।
कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा संयंत्र भारत का सबसे बड़ा न्यूक्लियर पावर स्टेशन है, जो दक्षिणी भारतीय राज्य तमिलनाडु के तिरुनेलवेली जिले के कुडनकुलम में स्थित है। भारत और रूस के बीच हुए समझौते के तहत लगभग दो दशक पहले 2002में इस संयंत्र की पहली दो इकाइयों का निर्माण शुरू हुआ था, लेकिन स्थानीय मछुआरों के विरोध के कारण इसे देरी का सामना करना पड़ा। इस न्यूक्लियर पावर प्लांट में रूसी द्वारा डिजाइन किए गए VVER-1000 रिएक्टरों का उपयोग होता है।
कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा संयंत्र से 6,000 मेगावाट बिजली पैदा करने की योजना है। इस संयंत्र में रूस की सरकारी कंपनी एटमस्ट्रॉयएक्सपोर्ट और न्यूक्लियर पावर कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड के सहयोग से छह VVER-1000 रिएक्टर बनाए जाने हैं, जिनमें से दो रिएक्टरों का निर्माण पहले ही पूरा हो चुका है और उनसे बिजली उत्पादन भी हो रहा है। यूनिट 1 को 22 अक्टूबर 2013 को दक्षिणी पावर ग्रिड के साथ सिंक्रनाइज किया गया था और तब से यह, 1000 मेगावाट की अपनी निर्धारित क्षमता के साथ बिजली पैदा कर रहा है।
यूनिट 2 का काम 10 जुलाई 2016 को पूरा हुआ था और इसी साल 29 अगस्त को इसे पावर ग्रिड के साथ सिंक्रनाइज किया गया। यूनिट 3 और 4 के निर्माण के लिए ग्राउंड-ब्रेकिंग सेरेमनी 17 फरवरी 2016 को किया गया था और ये दोनों रिएक्टर निर्माणाधीन है। यह भारत में सबसे बड़ा परमाणु ऊर्जा उत्पादन संयंत्र है जो अपने सभी 6 रिएक्टरों के चालू हो जाने के बाद 6 गीगावाट (1 गीगावाट = 1000 मेगावाट) इलेक्ट्रिसिटी का प्रोडक्शन करता है। कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा संयंत्र की दोनों इकाइयां वाटर-कूल, वाटर-मॉडरेटेड रिएक्टर हैं। स्थानीय लोग 1979 में प्रस्तावित होने के बाद से ही इस प्रोजेक्ट का विरोध कर रहे थे।
ज्ञात हो कि पहले विरोध के कारण इस परियोजना को रोक दिया गया था। हालांकि, वर्ष 2000 में इस पर दोबारा काम शुरू हुआ और अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के दौरान कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा संयंत्र का निर्माण शुरू हुआ। 2011 में, जापान के फुकुशिमा दाइची परमाणु दुर्घटना के बाद कुडुकुलम संयंत्र के आसपास के हजारों लोगों ने इसके खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया। उन्होंने तमिलनाडु में भी फुकुशिमा जैसी परमाणु आपदा की आशंका जतायी। हालांकि, 2012 में, भारत के परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम के प्रमुख डॉ। श्रीकुमार बनर्जी ने इस संयंत्र को दुनिया के सबसे सुरक्षित न्यूक्लियर प्लांट में से एक बताया था।
वर्ष 2011 में सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई थी जिसमें सुरक्षा चिंताओं का मूल्यांकन होने तक कुडुकुलम संयंत्र में नए रिएक्टरों के निर्माण और पहले से स्थापित रिएक्टर से बिजली उत्पादन रोकने की मांग की गई थी। 24 फरवरी 2012 को, तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इस परमाणु बिजली संयंत्र के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के पीछे कुछ विदेशी एनजीओ का हाथ बताया था। जांच में पता चला था कि तीन एनजीओ ने विदेशी मुद्रा नियमों का उल्लंघन करते हुए, धार्मिक और सामाजिक कारणों के लिए मिले डोनेशन का इस्तेमाल कुडुकुलम संयंत्र के खिलाफ विरोध भड़काने में किया।
बताया जाता है कि पहले दक्षिण भारत के चर्च और नेशनल काउंसिल ऑफ चर्च ने बिजली संयंत्र का विरोध किया और इसके खिलाफ विरोध प्रदर्शन का समर्थन किया। बिजली संयंत्र और सरकार के समर्थकों ने आरोप लगाया कि कुडुकुलम संयंत्र के खिलाफ विरोध चर्चों द्वारा उकसाया गया था और विदेशी स्रोतों द्वारा इसे वित्त पोषित किया गया था। तमिलनाडु सरकार ने चार सदस्यीय विशेषज्ञ पैनल का गठन किया जिसने संयंत्र की सुरक्षा सुविधाओं का निरीक्षण करने के बाद एक रिपोर्ट सौंपी। तमिलनाडु सरकार ने राज्य में बिजली की भारी कमी के मद्देनजर इस संयंत्र को चालू करने का आदेश दिया। मई 2013 में, सुप्रीम कोर्ट ने कुडुकुलम न्यूक्लियर पावर प्रोजेक्ट के पक्ष में फैसला सुनाया और कहा कि यह परमाणु ऊर्जा संयंत्र व्यापक जनहित में है।
बताया जाता है कि नए परमाणु ऊर्जा संयंत्र कथित तौर पर बीएचईएल और पावर मेक द्वारा बनाए जाएंगे। इससे पहले मई 2024 में, पावर मेक प्रोजेक्ट्स ने घोषणा की थी कि उसे परमाणु ऊर्जा संयंत्र के निर्माण के लिए सरकारी स्वामित्व वाली बीएचईएल से 563 करोड़ रुपये का ऑर्डर मिला है।