डिजिटल युवा पीढ़ी ‘जनरेशन जेड’ की बदलती मनोवृत्ति से प्रभावित होने लगे हैं, इंफ्लुएंसर्स की बढ़ी पूछ
Focus News 27 July 2024देश–दुनिया में डिजिटल डिवाइस के साथ बड़ी होने वाली पहली पीढ़ी को अब जनरेशन जेड (जेन जेड) कहा जाने लगा है। दरअसल वर्ष 1997 से 2012 के बीच जन्मे या फिर उसके बाद के भी बच्चे इसके हिस्सा समझे जाते हैं। चूंकि इस दौर की पीढ़ी अब आत्मनिर्भर हो चुकी है और उसकी सोच–समझ से हमारा सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक व्यवहार भी प्रभावित होने लगा है, इसलिए इनकी सामूहिक मनोवृत्ति पर तरह–तरह के शोध सामने आ रहे हैं। इन विषयों पर हमलोग बाद में चर्चा करेंगे क्योंकि जेन जेड में अंग्रेजी भाषी लोगों की बहुतायत है।
हालांकि अब हिंदी व क्षेत्रीय भाषा–भाषी भी इनके बीच सम्मानजनक जगह बनाते प्रतीत हो रहे हैं, इस पर भी हमलोग फिर कभी चर्चा करेंगे। आज की चर्चा में जेन जेड के आर्थिक या बाजारू व्यवहार को मैंने इसलिए शामिल किया है क्योंकि इस बाबत एक रिपोर्ट भी सामने आई है। यह हमलोगों के बीच उत्सुकता भी जगाती है और सावधान भी करती है।
बताया जाता है कि डिजिटल युग में जन्मे और बड़े होने के कारण आज की युवा पीढ़ी सट्टा लगाने, जोखिम का आकलन करने और बजट बनाने के लिए तकनीक पर निर्भर करती है। वहीं, हालिया एक रिपोर्ट के अनुसार, ये भी बात सामने आई है कि वे मोबाइल ऐप के माध्यम से अपना निवेश करते हैं।
सवाल है कि जहां पुरानी पीढ़ी के लोग अपनी पसंद की चीजें खरीदने के लिए डिपार्टमेंटल स्टोर या शॉपिंग मॉल के चक्कर काटते थे, वहीं नई पीढ़ी इंफ्लूएंसर और ऑनलाइन सर्च पर अधिक जोर देती है। यह बात मैं नहीं कह रहा हूँ बल्कि ऐसा खुलासा हालिया एक अध्ययन में हुआ है, जिसमें निष्कर्ष निकाला गया है कि एशिया–पैसिफिक की जेन जेड की पसंद इंफ्लूएंसर से प्रभावित होती है। इससे उनकी यानी इंफ्लुएंसर्स कि चांदी हो गई है। अब तो इंफ्लूएंसर की सलाह पर वे उसकी तरह के कपड़े, हेयर स्टाइल आदि की भी नकल करते हैं।
मसलन, केपीएमजी की नई रिपोर्ट में बताया गया है कि इस तरह का चलन इंस्टाग्राम जैसे सोशल कॉमर्स प्लेटफॉर्म के आने से बढ़ा है, जहां इंफ्लूएंसर की सलाह युवाओं के मत यानी विचार निर्धारित करने अहम भूमिका निभाती है। दरअसल, विभिन्न देशों के 14 बाजारों पर किये गए सर्वे के आधार पर यह रिपोर्ट तैयार की गई, जिसके तहत 7000 से अधिक यूजर का सर्वे किया गया। सर्वे के निष्कर्ष के मुताबिक, जापान के सर्वाधिक 45 प्रतिशत युवक स्टोर में खरीदारी करते हैं, वहीं चीन में सबसे कम मात्र 12 प्रतिशत युवक स्टोर में खरीदारी करते हैं।
जहां तक भारत का सवाल है तो यहां स्टोर में खरीदारी करने वाली नई पीढ़ी महज 19 प्रतिशत है, जिसके तेजी से बढ़ने के आसार हैं। इसी प्रकार ऑस्ट्रेलिया में 38 प्रतिशत, न्यूजीलैंड में 34 प्रतिशत, ताइवान में 30 प्रतिशत, मलेशिया में 27 प्रतिशत, थाईलैंड में 24 प्रतिशत, फिलीपीन में 22 प्रतिशत, सिंगापुर और दक्षिण कोरिया में 21 प्रतिशत, वियतनाम में 15 प्रतिशत और इंडोनेशिया में 13 प्रतिशत युवक स्टोर में खरीदारी करते हैं। भले ही इस रिपोर्ट में अमेरिका, इंग्लैंड, फ्रांस, जर्
स्वाभाविक है कि इंटरनेट–डिजिटल डिवाइस के साथ बड़ी हो रही पीढ़ी पर खरीदारी का असर पड़ रहा है, क्योंकि वो ऑनलाइन ट्रेंड को देखकर खरीदारी करते हैं। इसके इजाफे से भारत में भी कारोबारी असंतुलन बढ़ेगा, क्योंकि जैसे जैसे डिजिटल कारोबार बढ़ेगा, भारतीय बाजार यानी हाट व मंडी ही नहीं, बल्कि पाश्चात्य संस्कृति के अनुरूप विकसित आधुनिक मॉल्स भी प्रभावित हुए बिना नहीं रहेंगे। इससे एक ओर जहां डिजिटल कामों में इजाफा होगा और डिलीवरी बॉय की नौकरी बढ़ेगी, वहीं दूसरी ओर हाट–बाजार बंद होने से या उनकी निरन्तर बिक्री घटने से, जैसी की आए दिन खबरें मिलती रहती हैं, पुराने जमे–जमाये कारोबार और उसमें रोजगार रत लोगों के समक्ष आजीविका का संकट खड़ा हो जाएगा।
इसलिए अब युवाओं को भी देश व समाज के समग्र नजरिये से सोचने की जरूरत है, ताकि सबका भला हो सके। उन्हें यह भी समझना होगा कि उनके बदलते आर्थिक व्यवहार से पुराने बाजार ही नहीं बल्कि समाज और संस्कृति भी अछूती नहीं बचेगी, जिन्हें संरक्षित रखते हुए अगली पीढ़ी को हस्तांतरित करने की जिम्मेदारी उनकी भी है। वैसे तो पिछले ढाई–तीन दशक में कम्प्यूटर और मोबाइल ने राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक जीवन को बहुत ज्यादा प्रभावित किया है।
लेकिन इसके प्रशासनिक सदुपयोग और बाजारू सहूलियत से न केवल आम जनजीवन सरल व सुविधा संपन्न हुआ है बल्कि जो बाजारू क्रांति दिखाई पड़ रही है, उससे “डिजिटल ब्राह्मणवाद” का आसन्न संकट भी मंडराता दिख रहा है। क्योंकि इस आधुनिक रेस में पिछड़े लोग निकट भविष्य में यही आरोप लगाएंगे, जैसी कि आशंका है। यहां के इंफ्लुएंसर्स भी इसी ताक में बैठे हैं।
खासकर 2014 का चुनाव परिणाम और 2024 का चुनाव परिणाम समाज के ऐसे ही छुपे हुए रुस्तमों को पहचानने और तदनुरूप नई नीति बनाने को उत्प्रेरित करता है। इसलिए पूरे समाज को शिक्षित बनाना, उनको डिजिटल रूप में प्रशिक्षित करना अब सरकार की जिम्मेदारी है। यदि वह इससे बचेगी तो नादान लोग कुछ भी कर सकते हैं या उनसे करवाया जा सकता है। विदेशी खिलाड़ी तो बस इसी मौके की तलाश में हैं। जैसे देश के बाहर बैठकर वह भारतीय उद्यमियों को चुना लगा रहे हैं, वही हाल जीवन के हर क्षेत्र में हो जाये तो कोई हैरत की बात नहीं होगी।