केंद्र का प्रस्ताव : इलाहाबाद उच्च न्यायालय आगरा, मेरठ से वीडियो कांफ्रेंस से करे सुनवाई

नयी दिल्ली,  केंद्र ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर कुछ मामलों की मेरठ और आगरा से वीडियो कांफ्रेंस के जरिये सुनवाई करने का प्रस्ताव भेजा है तथा उसे उम्मीद है कि इस पर कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया मिलेगी।

कानून एवं विधि राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने राज्यसभा में बृहस्पतिवार को प्रश्नकाल के दौरान एक पूरक प्रश्न के जवाब में यह बात कही। उन्होंने कहा, ‘‘इलाहाबाद उच्च न्यायालय सबसे पुराना उच्च न्यायालय है, इसमें कोई शक नहीं है। इसकी पीठ मेरठ और आगरा में स्थापित हो, यह विषय लंबे समय से चल रहा है।’’

उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ‘ई-कोर्ट प्रोजेक्ट-तृतीय’ के माध्यम से ऐसा प्रयास कर रही है।

मेघवाल ने कहा, ‘‘हमने (इलाहाबाद उच्च न्यायालय के) मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर कहा है कि कुछ सुनवाई मेरठ से की जा सकती है, आगरा से की जा सकती है। उसका (पत्र का) जवाब अभी आया नहीं है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि सकारात्मक उत्तर आने की संभावना है।’’

मेघवाल ने उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु सीमा बढ़ाने के प्रश्न पर कहा कि इस तरह का कोई प्रस्ताव अभी सरकार के समक्ष विचाराधीन नहीं है।

इससे पहले कांग्रेस के प्रमोद तिवारी ने सरकार से जानना चाहा कि सरकार जब सर्किट बेंच या क्षेत्रीय पीठ बनाने पर विचार करेगी तो क्या वह देश के सबसे पुराने उच्च न्यायालयों में से एक इलाहाबाद उच्च न्यायालय की क्षेत्रीय पीठ बनाने पर विचार करेगी?

उन्होंने यह भी पूरक प्रश्न किया था कि क्या सरकार उच्च न्यायपालिका के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु सीमा 62 से बढ़ा कर 65 वर्ष और 65 से बढ़ाकर 70 वर्ष करने पर विचार करेगी, वेतन एवं भत्तों के साथ?

एक अन्य पूरक प्रश्न के उत्तर में मेघवाल ने कहा कि उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति भारतीय संविधान के अनुच्छेद 217 और 224 के तहत की जाती है, जिसमें किसी भी जाति या वर्ग के लोगों के लिए आरक्षण का प्रावधान नहीं है। इसलिए, उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों में ओबीसी, एससी, एसटी और अल्पसंख्यकों के प्रतिनिधित्व से संबंधित श्रेणीवार आंकड़े केंद्रीय रूप से नहीं रखे जाते हैं।

उन्होंने कहा कि 2018 से उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के पद के लिए अनुशंसित व्यक्तियों को उच्चतम न्यायालय के परामर्श से तैयार निर्धारित प्रारूप में अपनी सामाजिक पृष्ठभूमि के बारे में विवरण प्रदान करना आवश्यक है।

मेघवाल ने बताया कि 2018 से नियुक्त उच्च न्यायालय के 661 न्यायाधीशों में से 21 अनुसूचित जाति श्रेणी के हैं, 12 अनुसूचित जनजाति श्रेणी के हैं, 78 अन्य पिछड़ा वर्ग के हैं और 499 सामान्य श्रेणी के हैं ।